AIN NEWS 1 ढाका: बांग्लादेश ने आज 16 दिसंबर को विजय दिवस के अवसर पर उन वीर जवानों को श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने 1971 के मुक्ति संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी। विजय दिवस समारोह की शुरुआत ढाका में सुबह 31 तोपों की सलामी के साथ हुई। बांग्लादेश सेना की एक आर्टिलरी रेजिमेंट के छह तोपों ने यह सलामी दी, जो बलिदानी सैनिकों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक है।
विजय दिवस का ऐतिहासिक महत्व
16 दिसंबर 1971 का दिन बांग्लादेश और भारतीय इतिहास में गौरवपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है। इस दिन पाकिस्तान की सेना के प्रमुख जनरल अमीर अब्दुल्ला नियाज़ी ने भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्तिबाहिनी के सामने आत्मसमर्पण किया था। इस ऐतिहासिक आत्मसमर्पण में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिए, जिससे बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरा।
ढाका में कार्यक्रमों की शुरुआत
आज सुबह ढाका में विजय दिवस समारोह का शुभारंभ 31 तोपों की सलामी के साथ हुआ। इस आयोजन में बांग्लादेश सेना, वरिष्ठ अधिकारी, और नागरिक बड़ी संख्या में शामिल हुए। तोपों की यह सलामी उन लाखों सैनिकों और नागरिकों के बलिदान की याद दिलाती है, जिन्होंने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान अपनी जान गंवाई।
भारत-बांग्लादेश की साझी जीत
1971 के इस युद्ध में भारतीय सेना ने बांग्लादेश की मुक्तिबाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक जीत हासिल की। इस युद्ध ने न केवल बांग्लादेश की स्वतंत्रता सुनिश्चित की, बल्कि भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक संबंधों को भी मजबूत किया।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
विजय दिवस न केवल बांग्लादेश बल्कि भारत के लिए भी गर्व का विषय है। यह दिन भारत और बांग्लादेश के संयुक्त प्रयासों और बलिदानों का प्रतीक है, जिसने एक नए राष्ट्र को जन्म दिया।
समारोहों की व्यापकता
बांग्लादेश में विजय दिवस का उत्सव पूरे देश में आयोजित किया जाता है। स्कूलों, सरकारी संस्थानों, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से इस दिन को मनाया जाता है। ढाका के अलावा अन्य शहरों में भी इस दिन विशेष आयोजन किए जाते हैं।
1971 की इस ऐतिहासिक जीत ने दक्षिण एशिया के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदल दिया। विजय दिवस हर साल हमें बलिदान, सहयोग और स्वतंत्रता के महत्व का एहसास कराता है।