AIN NEWS 1: गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने हाल ही में एक बयान में गोवा की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के विषय पर महत्वपूर्ण बातें साझा की। उन्होंने कहा कि, “गोवा में सबसे ज्यादा मंदिर नष्ट हुए हैं, सबसे ज्यादा कन्वर्जन हुआ है और सबसे ज्यादा वर्षों तक गुलामी का सामना गोवा ने किया है। इन सब कठिनाइयों के बावजूद, गोवा ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखा है।”
गोवा में मंदिरों का नष्ट होना
डॉ. प्रमोद सावंत ने यह कहा कि गोवा में कई ऐतिहासिक मंदिरों को नष्ट किया गया, खासकर उस समय जब विदेशी शासकों ने यहां पर शासन किया। इन मंदिरों का नष्ट होना केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर के नुकसान के रूप में भी देखा जाता है। बावजूद इसके, गोवा की संस्कृति ने इन कठिनाइयों का सामना किया और अपनी पहचान बनाए रखी।
कन्वर्जन की प्रक्रिया
गोवा में विशेष रूप से पुर्तगाली शासन के दौरान कन्वर्जन की प्रक्रिया काफी तेज रही। कई लोगों ने अपनी धार्मिक पहचान बदलकर ईसाई धर्म अपनाया। यह प्रक्रिया गोवा के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने पर गहरे असर डालने वाली थी। लेकिन, इसके बावजूद गोवा की संस्कृति और परंपराओं ने जीवित रहने का संघर्ष जारी रखा।
गुलामी का दौर
गोवा ने लगभग 450 वर्षों तक पुर्तगाली शासन का सामना किया, जिसके दौरान गोवा को न केवल राजनीतिक और आर्थिक गुलामी का सामना करना पड़ा, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता भी सीमित हुई। इस गुलामी के दौरान गोवा की सांस्कृतिक पहचान को दबाने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन गोवा के लोग कभी भी अपनी सांस्कृतिक पहचान से समझौता नहीं कर पाए।
सांस्कृतिक पहचान की मजबूती
मुख्यमंत्री ने कहा कि इन कठिनाइयों के बावजूद, गोवा ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में सफलता पाई है। यहां के लोग अपनी पारंपरिक भाषा, त्यौहार, संगीत, नृत्य और कला को आज भी प्राथमिकता देते हैं। गोवा का विशेष लोक संगीत, डांस और शिल्प की परंपराएं आज भी जीवित हैं और यहां के लोग इसे गर्व से मनाते हैं।
डॉ. प्रमोद सावंत ने गोवा के इतिहास और संस्कृति के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि गोवा ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद अपनी पहचान बनाए रखी। उनका यह बयान गोवा की सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने और उसे संरक्षित रखने के प्रयासों को प्रोत्साहित करता है।
गोवा की ये संघर्षपूर्ण यात्रा न केवल भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाती है कि किसी भी कठिन परिस्थिति में अपनी सांस्कृतिक पहचान और मूल्यों को बचाए रखना कितना आवश्यक है।