Saturday, December 28, 2024

विभाजन के बाद हरिद्वार में बसे थे मनमोहन सिंह का परिवार, महाकुंभ के संतों ने जताया शोक

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पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन की खबर ने संगम नगरी प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में पहुंचे संतों को गहरे शोक में डाल दिया। सिखों के श्री पंचायती अखाड़े के सचिव महंत देवेंद्र शास्त्री इस घटना से अत्यधिक भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि डॉ. मनमोहन सिंह से उनकी दो बार मुलाकात हुई थी, जो उनकी आत्मीयता और सरलता को दर्शाती थीं।

महंत शास्त्री ने बताया कि जैसे ही उन्हें मनमोहन सिंह के निधन की सूचना मिली, वह आधे घंटे तक रोते रहे। उनकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी मुलाकातों और डॉ. मनमोहन सिंह से जुड़ी यादों को साझा किया।


देश विभाजन के बाद हरिद्वार की कुटिया में बितााए दो साल
महंत देवेंद्र शास्त्री ने बताया कि देश विभाजन के बाद जब डॉ. मनमोहन सिंह का परिवार भारत आया, तो उन्हें हरिद्वार के निर्मल अखाड़े की विरक्त कुटिया में शरण मिली। उनका परिवार वहां दो साल तक रहा। बाद में वे एक रिफ्यूजी कॉलोनी में शिफ्ट हो गए।

महंत शास्त्री के अनुसार, जब उनकी मुलाकात प्रधानमंत्री निवास में डॉ. मनमोहन सिंह से हुई, तो उन्होंने निर्मल अखाड़े के प्रति आभार व्यक्त किया। मनमोहन सिंह ने कहा था, “निर्मल अखाड़े ने हमें और हमारे परिवार को जो जगह दी, उसका कर्ज मैं कभी नहीं चुका सकता। मैं अखाड़े का हमेशा ऋणी रहूंगा।”


संतों का सम्मान करते थे मनमोहन सिंह
महंत शास्त्री ने यह भी बताया कि उनकी पहली मुलाकात मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री निवास में हुई थी। उस मुलाकात में डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी सादगी और संतों के प्रति सम्मान का परिचय दिया। उन्होंने शास्त्री जी को अपना व्यक्तिगत मोबाइल नंबर भी दिया था।

महंत शास्त्री ने कहा, “हम भगवा वस्त्र पहनकर संत बने हैं, लेकिन मनमोहन सिंह अपने स्वभाव और व्यवहार से सच्चे संत थे। उनके जैसा इंसान मिलना मुश्किल है।”


महाकुंभ में संत करेंगे श्रद्धांजलि सभा
महंत शास्त्री ने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से महाकुंभ में मौजूद संत गहरे दुख में हैं। इस शोक को व्यक्त करने के लिए निर्मल अखाड़ा शनिवार को महाकुंभ क्षेत्र में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करेगा। इस सभा में अन्य अखाड़ों और संप्रदायों के साधु-संत भी शामिल होंगे।


सारांश
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन सादगी और मानवीयता का प्रतीक था। विभाजन के कठिन समय में हरिद्वार के निर्मल अखाड़े ने उन्हें शरण दी थी, जिसका आभार वे जीवनभर मानते रहे। उनके निधन से संत समाज में गहरा शोक व्याप्त है।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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