Sunday, December 29, 2024

परिवर्तन को अपनाएं: गीता का संदेश “प्रकृति अपरिवर्तनीय है, पर बदलाव स्वीकारना हमारी शक्ति है।”?

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AIN NEWS 1: भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का यह श्लोक (2.14) जीवन में परिवर्तन को समझने और उसे अपनाने का महत्व सिखाता है। श्रीकृष्ण अर्जुन को यह समझाने का प्रयास करते हैं कि जीवन में सुख-दुःख, गर्मी-सर्दी जैसे अनुभव अस्थायी हैं। ये अनुभव प्रकृति के नियम के अनुसार आते और जाते रहते हैं।

श्लोक का अर्थ

“मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुः खदाः।

आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।”

इस श्लोक में भगवान कृष्ण कहते हैं:

“हे कौन्तेय (अर्जुन), इंद्रियों और बाहरी वस्तुओं का स्पर्श ही सुख-दुःख और गर्मी-सर्दी का कारण है। ये अनुभव अस्थायी और परिवर्तनशील हैं। इन्हें सहन करना सीखो।”

प्रकृति और अनुभव

श्रीकृष्ण बताते हैं कि प्रकृति को बदला नहीं जा सकता। यह सदा अपने नियमों का पालन करती है। जैसे मौसम बदलते हैं—गर्मी आती है और फिर ठंड—उसी प्रकार जीवन में सुख और दुःख के पल भी आते-जाते रहते हैं। ये अनुभव न तो स्थायी हैं और न ही पूर्णतः हमारे नियंत्रण में।

प्रकृति का यह चक्र निरंतर चलता रहता है। यदि हम इसे समझ लें और इसके साथ सामंजस्य स्थापित कर लें, तो जीवन में मानसिक संतुलन बनाए रखना आसान हो जाता है।

परिवर्तन का विरोध क्यों न करें

परिवर्तन का विरोध करना या उसे नकारने की कोशिश करना हमारे लिए पीड़ा का कारण बन सकता है। भगवान कृष्ण यहां एक सरल और गहन संदेश देते हैं:

परिवर्तन को अपनाना सीखें।

सुख और दुःख, दोनों ही जीवन का हिस्सा हैं।

इन अनुभवों को बिना किसी शिकायत के सहन करें।

श्रीकृष्ण का यह संदेश हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में स्थायी कुछ भी नहीं है। जब भी कोई कठिनाई या दुःख सामने आए, हमें इसे अस्थायी मानते हुए धैर्य के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

जीवन का संतुलन बनाए रखने का उपाय

धैर्य और सहनशीलता का अभ्यास करें।

प्रकृति के नियमों को समझें और उनके अनुसार जीवन जीने का प्रयास करें।

अपनी मानसिकता को स्थायी रूप से सकारात्मक बनाए रखें।

समकालीन संदर्भ में संदेश

आज के जीवन में, जब हम चुनौतियों और अस्थिरता से घिरे रहते हैं, गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि बदलाव जीवन का हिस्सा है। हमें अपने दृष्टिकोण को सुधारते हुए हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखना चाहिए।

श्रीकृष्ण का यह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए था, बल्कि हर युग के लोगों के लिए एक अमूल्य संदेश है। अगर हम इसे अपनाएं, तो जीवन की कठिनाइयों को सहजता से पार कर सकते हैं और एक शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं।

 

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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