AIN NEWS 1: आज 15 जनवरी को बसपा सुप्रीमो मायावती का 69वां जन्मदिन है। इस मौके पर बसपा कार्यकर्ता इसे ‘जन कल्याणकारी दिवस’ के रूप में मना रहे हैं। प्रदेशभर में जिला स्तर पर सेमिनार आयोजित किए जा रहे हैं। मायावती लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय से कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संदेश जारी करेंगी। साथ ही अपनी पुस्तक ‘मेरे संघर्षमय जीवन एवं बसपा मूवमेंट का सफरनामा’ (भाग-20) का हिंदी और अंग्रेजी संस्करण लॉन्च करेंगी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें बधाई देते हुए ट्वीट किया, “प्रभु श्रीराम की कृपा आप पर बनी रहे। आप दीर्घायु और स्वस्थ रहें।” वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी हरिद्वार से उन्हें शुभकामनाएं दीं।
संघर्षों से भरा बचपन
मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली में हुआ। उनके पिता प्रभुदास डाक विभाग में क्लर्क थे। परिवार में मायावती तीसरी बेटी थीं। लगातार तीन बेटियों के जन्म से उनके पिता नाखुश थे और दूसरी शादी करने का विचार कर रहे थे। मायावती के दादा मंगलसेन ने इस विचार का विरोध किया और परिवार को संभाला।
निडरता का उदाहरण: लकड़बग्घे का किस्सा
बचपन में मायावती अपनी नानी के घर सिमरौली गई थीं। वहां पास की काली नदी के किनारे एक लकड़बग्घा दिखाई दिया। उनके नाना ने उन्हें बचाया, लेकिन मायावती ने निडरता दिखाते हुए कहा, “यह मुझे खाएगा नहीं, मैं ही इसे खा जाऊंगी।” यह किस्सा अजय बोस की किताब ‘बहनजी’ में दर्ज है।
10 साल की उम्र में छोटे भाई की जान बचाई
मायावती की मां ने एक बेटे को जन्म दिया, जो निमोनिया से बीमार हो गया। पिता की गैरमौजूदगी में 10 साल की मायावती अपने छोटे भाई को 6 किलोमीटर दूर सरकारी डिस्पेंसरी ले गईं। पैदल सफर के दौरान उन्होंने पानी की बूंदें देकर भाई को जिंदा रखा। डॉक्टरों ने उनकी हिम्मत की सराहना की।
IAS बनने का सपना और राजनीति में कदम
मायावती पढ़ाई में अव्वल थीं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस और इकॉनॉमिक्स में बीए किया और बीएड की डिग्री हासिल कर स्कूल में टीचर बन गईं। उनका सपना IAS अधिकारी बनकर समाज की सेवा करना था।
कांशीराम से मुलाकात: राजनीति की ओर रुख
एक सम्मेलन में मायावती ने स्वास्थ्य मंत्री राज नारायण के भाषण का विरोध किया, जिससे उनकी फायरब्रांड छवि उभरी। कांशीराम ने उनकी काबिलियत पहचानी और कहा, “मैं तुम्हें ऐसे मुकाम पर ले जाऊंगा, जहां दर्जनों IAS अधिकारी तुम्हारे सामने खड़े होंगे।”
मायावती ने कांशीराम के आंदोलन से जुड़ने का फैसला किया, लेकिन इसके लिए उन्हें अपने परिवार का विरोध सहना पड़ा। उन्होंने घर छोड़कर संगठन के कार्यालय में रहना शुरू किया और कांशीराम के साथ आंदोलनों में सक्रिय हो गईं।
राजनीतिक सफर की शुरुआत और संघर्ष
1984 में बसपा की स्थापना के बाद मायावती कोर टीम का हिस्सा बनीं। पहली बार उन्होंने 1984 में कैराना लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। 1985 और 1987 में भी चुनाव हारने के बाद 1989 में बिजनौर सीट से पहली बार संसद पहुंचीं।
एनकाउंटर की कोशिश और संघर्षों का दौर
1991 में बुलंदशहर में एक घटना के दौरान उनका एनकाउंटर करने की कोशिश हुई। आर्मी के जवानों की मदद से उनकी जान बची। यह घटना उनके संघर्षों का प्रतीक बन गई।
पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनने का सफर
1993 में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर मायावती ने यूपी में सरकार बनाई। 1995 में वह बीजेपी के समर्थन से यूपी की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। इसके बाद 1997, 2002 और 2007 में भी उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभाला।
लोकतंत्र का चमत्कार
1995 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें मुख्यमंत्री बनने पर ‘लोकतंत्र का चमत्कार’ कहा। मायावती ने सियासत में अपनी छवि मजबूत की और 2003 में बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं।
मायावती की सियासत: संघर्ष और उपलब्धियां
मायावती ने राजनीति में अपनी पहचान बनाई और दलित समुदाय के उत्थान के लिए काम किया। उनके नेतृत्व में बसपा ने कई चुनाव जीते। हालांकि, हाल के वर्षों में पार्टी का जनाधार कमजोर हुआ है।
आज का दिन और आगे का संदेश
69वें जन्मदिन पर मायावती ने अपने कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देते हुए संदेश दिया है। उनकी नई पुस्तक का विमोचन उनके जीवन और संघर्षों को समझने का एक और माध्यम बनेगा।
मायावती की कहानी प्रेरणा का स्रोत है। उनका संघर्ष, निडरता और समाज के प्रति समर्पण उन्हें एक अनूठी नेता बनाते हैं। वह न केवल दलित राजनीति का चेहरा हैं, बल्कि भारतीय राजनीति में साहस और दृढ़ता का प्रतीक भी।