Delhi Judge Removed After SHO Alleges Misuse of Power for Personal Tasks
SHO के गंभीर आरोपों के बाद साकेत कोर्ट के जज कार्तिक टपारिया को हटाया गया, हाई कोर्ट ने दी सख्त कार्रवाई
AIN NEWS 1: दिल्ली के न्यायिक तंत्र में हाल ही में एक बड़ा मामला सामने आया है, जहां एक जज पर अपने पद का दुरुपयोग करने और पुलिस अधिकारियों से निजी काम करवाने के गंभीर आरोप लगे हैं। ये मामला उस वक्त तूल पकड़ गया जब हजरत निजामुद्दीन थाने के एसएचओ पंकज कुमार ने अपने अनुभव साझा करते हुए साकेत कोर्ट के जज कार्तिक टपारिया पर सीधी उंगली उठाई।
क्या हैं आरोप?
एसएचओ पंकज कुमार का दावा है कि जज टपारिया ने कोर्ट में उनके साथ बदसलूकी की और इसके अलावा उन्हें तथा अन्य पुलिसकर्मियों को व्यक्तिगत कामों के लिए इस्तेमाल किया। पंकज कुमार ने आरोप लगाया कि जज ने न सिर्फ शादी में पुलिस कर्मियों को बुलाकर निजी आयोजनों में लगाया, बल्कि उनसे जिम की मेंबरशिप और क्रिकेट किट तक के पैसे भी वसूले।
शादी में करवाया ‘सरकारी काम’
पंकज कुमार ने बताया कि दिसंबर 2023 में जज कार्तिक टपारिया की शादी राजस्थान में हुई थी। इस शादी में हजरत निजामुद्दीन थाने से कुछ पुलिसवाले उनके निर्देश पर राजस्थान भेजे गए, जो पूरी शादी के दौरान उनके निजी सहयोगी की तरह काम करते रहे। इस बात का कोई आधिकारिक आदेश नहीं था, लेकिन थाने के अधीनस्थ पुलिसकर्मी दबाव में थे।
क्रिकेट किट और जिम मेंबरशिप भी SHO से?
एसएचओ का कहना है कि शादी के बाद भी व्यक्तिगत मांगों का सिलसिला नहीं रुका। जज ने उनसे क्रिकेट खेलने के लिए किट खरीदवाई और एक स्थानीय जिम की सालाना मेंबरशिप का भुगतान भी करवाया गया। यह सब सरकारी ड्यूटी के नाम पर नहीं, बल्कि पूरी तरह व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया।
डेली डायरी में दर्ज की गई घटनाएं
इन सभी घटनाओं को एसएचओ पंकज कुमार ने पुलिस की डेली डायरी में क्रमवार दर्ज किया। डेली डायरी यानी रोजाना की कार्यवाही का लेखा-जोखा, जिसे पुलिस विभाग में प्रमाणिक दस्तावेज माना जाता है। यही दस्तावेज दिल्ली हाई कोर्ट तक पहुंचा और इसके आधार पर कड़ी कार्रवाई की गई।
हाई कोर्ट की सख्ती, जज को हटाया गया
जैसे ही ये जानकारी दिल्ली हाई कोर्ट के संज्ञान में आई, न्यायालय ने तुरंत गंभीरता दिखाई। 15 जुलाई 2025 को हाई कोर्ट ने आदेश पारित कर जज कार्तिक टपारिया को साकेत कोर्ट से हटा दिया। यह कार्रवाई असामान्य नहीं, बल्कि ऐतिहासिक मानी जा रही है क्योंकि एक पुलिस अधिकारी द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार पर किसी न्यायाधीश के खिलाफ इतनी तेज़ कार्रवाई होना दुर्लभ है।
क्या बोले जानकार?
इस मामले पर वरिष्ठ वकीलों और रिटायर्ड न्यायाधीशों ने भी अपनी राय रखी है। उनका मानना है कि यह मामला दर्शाता है कि न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही कितनी ज़रूरी है। अगर जज जैसे संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपने प्रभाव का दुरुपयोग करने लगें, तो न केवल पुलिस तंत्र बल्कि पूरी कानून व्यवस्था चरमरा सकती है।
क्या SHO पर बनेगा दबाव?
पुलिस महकमे के भीतर कुछ अफसरों का कहना है कि पंकज कुमार का यह कदम साहसी जरूर है, लेकिन इसके पीछे का मानसिक दबाव समझा जाना चाहिए। एक न्यायाधीश के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाना आसान नहीं होता। इससे SHO की नौकरी और करियर पर भी असर पड़ सकता है। हालांकि अब जब हाई कोर्ट ने उनकी बातों को गंभीरता से लिया है, तो पुलिस विभाग में भी उनके पक्ष में समर्थन दिखाई दे रहा है।
आगे क्या?
अब सवाल यह है कि क्या जज टपारिया के खिलाफ कोई विभागीय या कानूनी जांच होगी? क्या इस मामले में एफआईआर दर्ज की जाएगी? या सिर्फ स्थानांतरण को ही पर्याप्त माना जाएगा? कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आरोप साबित होते हैं, तो यह मामला सेवा नियमों के उल्लंघन के तहत भी आ सकता है और कार्रवाई आगे बढ़ सकती है।
यह मामला सिर्फ एक SHO और एक जज के बीच का विवाद नहीं है। यह एक उदाहरण है कि जब सिस्टम के भीतर ही एक व्यक्ति अपने अधिकारों का अनुचित लाभ उठाता है, तो उसका विरोध कैसे करना चाहिए। SHO पंकज कुमार ने निडर होकर अपनी बात रखी और न्यायपालिका ने भी तत्परता से कार्रवाई की। यह घटना न केवल पुलिस और न्यायपालिका के रिश्ते को आईना दिखाती है, बल्कि आम जनता को यह भरोसा भी देती है कि व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
अगर आपको यह रिपोर्ट पसंद आई हो, तो इसे शेयर करें और हमारी वेबसाइट पर ऐसे और भी ईमानदार और सरल लेख पढ़ते रहें।
Delhi High Court has removed Saket Court judge Kartik Taparia following serious allegations made by SHO Pankaj Kumar of Hazrat Nizamuddin police station. The SHO claimed that the judge misused police officers for personal tasks including arranging gym memberships, buying cricket kits, and sending staff to his wedding. The matter highlights the concerning misuse of power by judiciary members and Delhi High Court’s swift action has raised public discussion around police-judiciary relations.