Ainnews1.com : बताते चले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले दिनों मुस्लिम बुद्धिजीवियों और कुछ मौलानाओं से मुलाकात की। इस मुलाकात को आरएसएस की मुस्लिम विरोधी छवि को सुधारने और मुसलमानों के एक बड़े तबके को अपने साथ जोड़ने की संघ की एक बड़ी कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। इन्हीं सब मुद्दों पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष कमाल फारूकी से जब सवाल-जवाब हुए।
सवाल: पिछले दिनों में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों और मौलानाओं से मुलाकात कर संवाद किया है। आप इसे किस रूप में देखते हैं
जवाब: बातचीत और संवाद तो किसी भी समाज के लिए बहुत ही अच्छी बात है। यह होना चाहिए। युद्ध के दौर में भी संवाद कायम किया जाता है। इसलिए यह एक अच्छी पहल है। वैसे भी संवाद हमारी परंपरा रहा है। कोई भ्रम जैसी स्थिति हो या देश से जुड़े मुद्दे व समस्याएं हों तो उनका समाधान अक्सर बातचीत से ही होता है। लेकिन यह संवाद किससे हो रहा है और जिससे हो रहा है उसकी क्या कोई अहमियत है, यह भी बहुत मायने रखता है।
जहां तक उनकी पहली मुलाकात का ताल्लुक है तो वह बहुत अच्छे लोगों से हुई। इसमें ऐसे लोग शामिल थे जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है। उन्होंने हमेशा हिंदुस्तान के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। इस मुलाकात में कुछ अच्छे मुद्दे भी उन्होने उठाए जिन पर किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती। कुछ मौलवियों से भी वह मिले। सवाल यह पैदा होता है कि आप राह चलते किसी से मिलेंगे तो उसका कोई ख़ास मतलब नहीं होता है। मोहन भागवत जी बहुत नफीस आदमी हैं। शायद, उनको सही तरह से नहीं बताया गया कि उन्हें किन-किन लोगों से मिलना चाहिए? किन संगठनों पर मुसलमान भरोसा करते हैं? इससे, जाहिर होता है कि आप संवाद को लेकर भी गंभीर नहीं हैं या फिर आपके सलाहकार कमजोर हैं।
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सवाल: भागवत का यह संवाद ऐसे समय हुआ है जब कांग्रेस ‘भारत जोड़ो’ यात्रा पर निकली है और इसका मकसद भी भाईचारा और सामाजिक सौहार्द बढ़ाना बताया गया है। आपकी राय?
जवाब: हम तो समझते हैं कि यह राहुल गांधी की कामयाबी है कि कम से कम मोहन भागवत जी को इस बात का एहसास हुआ कि उन्हें संवाद करना चाहिए। अभी तक तो लग रहा था कि मुल्क में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है और कहीं कोई समस्या ही नहीं है। बहरहाल, यह पहल अच्छी है लेकिन इस पहल को जारी रखना होगा। पहल करने का दिखावा नहीं होना चाहिए, अच्छा करते हुए नजर भी आना चाहिए।
सवाल: क्या मुस्लिम समुदाय का भाजपा या आरएसएस के प्रति दृष्टिकोण बदल रहा है। आपको क्या लगता है?
जवाब: यह कहना बहुत जल्दबाजी होगा। क्योंकि मुझे कभी-कभी ऐसा भी लगता है जो आरएसएस का मुकाम पहले हुआ करता था, उसमें कमी आई है। मोहन भागवत ने पहल की है। हम उनका साथ देते हैं और उनको मुबारकबाद भी देते हैं। हम चाहते हैं कि यह प्रतीकात्मक न हो। अगर वाकई में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई को साथ कर सामाजिक सौहार्द की जो एक अपनी संस्कृति है, उसको बनाए रखने के लिए पहल की गई तो अच्छी बात है। लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो यह धोखा है। मुसलमानों के साथ धोखा है।
सवाल: मदरसों के सर्वेक्षण के बाद उत्तर प्रदेश की सरकार अब वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सर्वेक्षण करवा रही है। इस पर क्या कहेंगे आप?
जवाब: वक्फ बोर्ड सेंट्रल वक्फ अधिनियम से संचालित होता है। वक्फ, बाकायदा मुसलमानों की शरीयत का एक अहम हिस्सा है क्योंकि वक्फ का मतलब यह होता है कि अगर मैंने कोई चीज वक्फ (दान) कर दी तो वह वक्फ की संपत्ति होती है। अगर सरकार की जमीन पर वक्फ कुछ करता है तो कान पकड़ लीजिए लेकिन यदि संपत्ति किसी ने दान दी है तो आपको क्या। ऐसा करके आप साबित क्या करना चाह रहे हैं।
सवाल: ऑल इंडिया इमाम ऑर्गनाइजेशन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी ने मोहन भागवत को ‘राष्ट्रपिता’ बताया है। आप इससे कितना इत्तेफाक रखते हैं?
जवाब: राष्ट्रपिता तो महात्मा गांधी को कहते हैं। उन्होंने मोहन भागवत को महात्मा गांधी के बराबर ला दिया। मैं किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करता। हम तो अभी तक बापू को ही राष्ट्रपिता जानते हैं और मानते हैं।