Sunday, December 22, 2024

चाणक्य नीति: कभी भूलकर भी ना करें विश्वास दुश्मन दोस्त पर, होंगे घातक परिणाम, जाने आगे की पूरी खबर

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AIN NEWS 1 : दोस्त हर इंसान की लाइफ में काफी अहम होते हैं क्योंकि हर सच्चा दोस्त सुख-दुख में उनके साथ खड़े होता है. कई लोगों के सीमित दोस्त होते हैं तो कुछ लोगों की फ्रेंड लिस्ट ही काफी बढ़ी होती है. जो लोग अनजाने में किसी को भी अपना दोस्त बना लेते हैं कई बार उनको बाद में बहुत पछताना पड़ता है. 2500 ई. पू. आचार्य चाणक्य ने अर्थशास्त्र, लघु चाणक्य, वृद्ध चाणक्य, चाणक्य-नीति शास्त्र में इस बारे में भी बताया है कि इंसान को कैसे दोस्तों से दूर रहना चाहिए और कैसे दोस्त शत्रु से कम भी नहीं होते.

अश्विनी पाराशर की बुक ‘चाणक्य नीति’ के मुताबिक, चाणक्य-नीति शास्त्र के द्वितीय अध्याय में आचार्य चाणक्य ने यह भी बताया है कि दोस्त बनाते समय कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए ,ताकि आगे चलकर आपका कोई अहित ना हो. तो आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य कैसे दोस्तों से दूर रहने के लिए बताते हैं.

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम् ।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥5॥

आचार्य चाणक्य का कहना है कि पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाले तथा सामने प्रिय बोलने वाले मित्रों से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि ऐसे दोस्त जहर के समान हो सकते हैं.
विस्तार से समझाते हुए आचार्य चाणक्य यह भी कहते हैं कि जिस तरह विष से भरे घड़े के ऊपर यदि थोड़ा-सा दूध भी डाल दिया जाए तो भी उसे विष का घड़ा ही कहा जाता है. उसी प्रकार आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाला और पीठ पीछे काम बिगाड़ने वाला मित्र भी विष से भरे हुए घड़े के ही समान होता है. इसलिए इस प्रकार के मित्र को त्याग देना ही उचित है. सच तो यही है कि ऐसे व्यक्ति को मित्र कहा ही नहीं जा सकता है, उन्हें तो शत्रु समझना ही ठीक है.

न विश्वसेत्कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।
कदाचित्कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत् ॥6॥

आचार्य चाणक्य का कहना है कि कुमित्र और मित्र दोनों में से किसी भी पर भी कभी जल्दी से विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही कभी भी आपके राज किसी अन्य को बता सकते हैं.

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आचार्य चाणक्य विस्तार से यह समझाते हैं कि दुष्ट-चुगलखोर मित्र का भूलकर विश्वास कभी नहीं करना चाहिए और अपनी राज की बातें नहीं बतानी चाहिए. हो सकता है कि वह आपसे नाराज हो जाए और आपका कच्चा चिट्ठा सबके सामने खोल कर रख दे. इससे बाद में आपको पछताना पड़ भी सकता है क्योंकि आपका भेद जानकर वह मित्र स्वार्थ में आकर आपका भेद खोल देने की धमकी देकर आपको गलत काम करने के लिए विवश भी कर सकता है. अतः आचार्य चाणक्य का विश्वास है कि जिसे आप अच्छा मित्र समझते हैं उसे भी कभी भी अपने राज ना बताएं क्योंकि कुछ बातों को पर्दे में रखना भी आवश्यक होता है.

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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