AIN NEWS 1 | हाल ही में केंद्र सरकार ने नया इनकम टैक्स बिल संसद में पेश कर पारित किया है। इस कानून का उद्देश्य पुराने आयकर अधिनियम की जटिलताओं को दूर कर इसे सरल और लोगों के लिए अधिक पारदर्शी बनाना है। इसमें टैक्स रिफंड से लेकर वित्तीय निपटारे तक कई बदलाव किए गए हैं।
लेकिन इस बीच, एक समलैंगिक जोड़े ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए कानून के एक प्रावधान को चुनौती दी है। उनका कहना है कि यह प्रावधान उनके साथ आर्थिक और संवैधानिक रूप से भेदभाव करता है।
समलैंगिक कपल की आपत्ति क्या है?
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कपल का तर्क है कि इनकम टैक्स कानून पार्टनर्स के बीच दिए जाने वाले गिफ्ट्स पर टैक्स लगाता है। जबकि विषमलैंगिक (heterosexual) जोड़ों के बीच ऐसे गिफ्ट्स पर टैक्स नहीं लगता, क्योंकि उन्हें शादीशुदा मान लिया जाता है।
बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस बी.पी. कोलाबवाल्ला और जस्टिस फिरदौस पूनीवाला ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया और अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने यह भी माना कि मामला केवल टैक्स प्रावधान का नहीं है, बल्कि इसमें संवैधानिक अधिकारों और समानता से जुड़े प्रश्न भी उठते हैं।
याचिकाकर्ता कौन हैं?
यह याचिका पायियो आशिहो और उनके पार्टनर विवेक दीवान ने दाखिल की है। दोनों पेशे से वकील हैं और बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र (United Nations) से भी जुड़े हैं।
इस मामले में उनकी पैरवी वरिष्ठ वकील डॉ. ध्रुव जैनस्सेन-सिंघवी कर रहे हैं। उन्होंने अदालत को समझाया कि वर्तमान टैक्स कानून, विषमलैंगिक और समलैंगिक जोड़ों के बीच असमानता पैदा करता है।
दलील में क्या कहा गया?
विषमलैंगिक जोड़े – यदि कोई महिला और पुरुष साथ रहते हैं, भले ही उन्होंने औपचारिक रूप से शादी न की हो, तब भी उन्हें समाज और कानून में “पति-पत्नी” जैसा दर्जा मिल जाता है। ऐसे में उनके बीच दिए गए गिफ्ट्स पर टैक्स नहीं लगता।
समलैंगिक जोड़े – भारत में समलैंगिक विवाह को अब तक कानूनी मान्यता नहीं मिली है। इसलिए जब दो समान लिंग के लोग साथ रहते हैं और एक-दूसरे को गिफ्ट देते हैं, तो उस पर इनकम टैक्स विभाग टैक्स लगाता है।
भेदभाव का आरोप – यह स्थिति न केवल अनुचित है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का भी उल्लंघन है।
संवैधानिक सवाल क्यों अहम हैं?
भारत का संविधान हर नागरिक को समानता और भेदभाव से मुक्त जीवन का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में धारा 377 को खत्म कर समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। लेकिन विवाह और उससे जुड़े कानूनी अधिकार अब तक केवल विषमलैंगिक जोड़ों को ही प्राप्त हैं।
यह केस सीधे-सीधे इस मुद्दे को उठाता है कि जब समलैंगिक रिश्तों को वैध माना जा चुका है, तो उन्हें शादी, गिफ्ट टैक्स, उत्तराधिकार और अन्य वित्तीय मामलों में समान अधिकार क्यों नहीं दिए जा रहे?
सामाजिक और कानूनी पृष्ठभूमि
2018 का ऐतिहासिक फैसला – सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
2023 की याचिकाएं – सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग पर बहस हुई, लेकिन अदालत ने यह कहते हुए फैसला सरकार पर छोड़ दिया कि कानून बनाना संसद का काम है।
वर्तमान स्थिति – समलैंगिक जोड़े साथ रह सकते हैं, लेकिन उन्हें शादीशुदा जोड़ों जैसे अधिकार नहीं मिले हैं।
इस केस का असर
यदि हाईकोर्ट याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला देता है, तो यह समलैंगिक जोड़ों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल (landmark) होगी। इससे उन्हें आर्थिक और कानूनी मामलों में बराबरी का दर्जा मिल सकता है।
वहीं, सरकार का रुख देखना भी दिलचस्प होगा। यदि सरकार इस प्रावधान को बदलती है तो यह भारत में LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।
आम जनता के लिए इसका महत्व
यह केस केवल समलैंगिक जोड़ों का मामला नहीं है, बल्कि यह सवाल उठाता है कि कानून को हर नागरिक के लिए समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। भेदभाव चाहे किसी भी रूप में हो, लोकतंत्र में उसका कोई स्थान नहीं।
समलैंगिक जोड़े द्वारा दायर यह याचिका केवल टैक्स प्रावधान का विरोध नहीं, बल्कि बराबरी और न्याय की मांग है। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या आधुनिक भारत में कानून हर नागरिक को समान अवसर और अधिकार दे रहा है?
आने वाले समय में बॉम्बे हाईकोर्ट और संभवतः सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न केवल टैक्स कानून बल्कि भारत में LGBTQ+ अधिकारों के भविष्य की दिशा तय करेगा।
A same-sex couple has filed a petition in the Bombay High Court challenging a provision of the Income Tax Act 2025 that imposes gift tax on partners in same-sex relationships, while heterosexual couples are exempt. The petition highlights discrimination, constitutional rights, equality, and LGBTQ rights in India, raising questions of fairness in financial and legal matters. This case could set a landmark precedent for same-sex marriage, equal treatment under tax laws, and LGBTQ equality in India.