AIN NEWS 1 | यूरोप और रूस के बीच जारी तनाव का सबसे बड़ा शिकार यूक्रेन बना हुआ है। सालों से यह देश नाटो (NATO) में शामिल होने की कोशिश करता रहा है, लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से उसे निराशा ही हाथ लगी। अब एक बार फिर यही स्थिति बनी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता नहीं मिलेगी।
हालांकि, ट्रंप ने यूक्रेन को भरोसा दिलाया है कि अमेरिका उसके साथ खड़ा रहेगा और उसे नाटो जैसी सुरक्षा गारंटी उपलब्ध कराएगा। यानी अगर रूस दोबारा हमला करता है, तो यूक्रेन अकेला नहीं होगा, बल्कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश उसके साथ मिलकर कार्रवाई करेंगे। यह प्रस्ताव नाटो सदस्यता से अलग है, लेकिन यूक्रेन के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच साबित हो सकता है।
पुतिन के साथ बातचीत के बाद बड़ा ऐलान
यह घटनाक्रम तब हुआ जब ट्रंप ने हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ एक शिखर वार्ता की। वार्ता के बाद ट्रंप ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की और यूरोपीय नेताओं से फोन पर बातचीत की। इस बातचीत में ट्रंप ने एक नई संयुक्त सुरक्षा डील का प्रस्ताव रखा, जो नाटो के आर्टिकल-5 की तरह होगी।
नाटो का आर्टिकल-5 यह कहता है कि अगर किसी सदस्य देश पर हमला होता है तो बाकी सभी सदस्य देश उसे अपनी सुरक्षा मानकर कार्रवाई करेंगे। इसी तरह अमेरिका ने यूक्रेन को आश्वासन दिया है कि उसे भी सामूहिक सुरक्षा का लाभ मिलेगा, भले ही वह नाटो का औपचारिक हिस्सा न हो।
यूरोपीय नेताओं की प्रतिक्रिया
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि इस कदम का मकसद सामूहिक सुरक्षा की परिभाषा को मजबूत करना है ताकि यूक्रेन खुद को असुरक्षित महसूस न करे। मेलोनी ने साफ किया कि अमेरिका और यूरोपीय सहयोगी देश, यूक्रेन को भविष्य में होने वाले किसी भी हमले के खिलाफ मदद करेंगे।
पुतिन की अप्रत्याशित सहमति
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी इस प्रस्ताव को लेकर नरमी दिखाई है। रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने इसे लेकर शुरुआती सहमति के संकेत दिए हैं। यह अजीब इसलिए माना जा रहा है क्योंकि पुतिन अब तक नाटो विस्तार के खिलाफ सबसे मुखर नेता रहे हैं। वह कई बार कह चुके हैं कि यूक्रेन का नाटो में शामिल होना रूस के लिए अस्वीकार्य है।
तो सवाल उठता है कि आखिर पुतिन क्यों इस नए प्रस्ताव पर नरम दिख रहे हैं? विशेषज्ञों का कहना है कि पुतिन यह समझते हैं कि यूक्रेन को नाटो सदस्यता नहीं दी जा रही, बल्कि एक सीमित सुरक्षा गारंटी दी जा रही है। यह स्थिति रूस के लिए नाटो विस्तार जितनी खतरनाक नहीं है। शायद इसी कारण उन्होंने इस पर खुलकर आपत्ति नहीं जताई।
यूक्रेन की जटिल स्थिति
यूक्रेन पिछले एक दशक से रूस के हमलों और कब्जे का सामना कर रहा है। 2014 में क्रीमिया पर कब्जे से शुरू हुई जंग 2022 में और भी खतरनाक हो गई, जब रूस ने पूर्ण पैमाने पर सैन्य आक्रमण कर दिया। तब से यूक्रेन लगातार पश्चिमी देशों से मदद मांगता रहा है।
नाटो की सदस्यता यूक्रेन का सबसे बड़ा सपना रही है क्योंकि उसे लगता है कि तभी वह सुरक्षित रहेगा। लेकिन नाटो देश बार-बार इस पर टालमटोल करते रहे। अब ट्रंप का यह नया प्रस्ताव यूक्रेन के लिए एक वैकल्पिक सुरक्षा व्यवस्था की तरह सामने आया है।
अमेरिका की रणनीति
ट्रंप और उनकी टीम इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि अगर यूक्रेन को औपचारिक तौर पर नाटो में शामिल किया गया तो रूस के साथ सीधी जंग छिड़ सकती है। यही वजह है कि अमेरिका ने नाटो जैसी सुरक्षा गारंटी देने का रास्ता निकाला है। इससे अमेरिका अपनी साख भी बचा सकेगा और सीधे नाटो विस्तार के खतरे से भी बच जाएगा।
ट्रंप ने जेलेंस्की को फोन पर यह बात पहले ही समझा दी थी और बाद में यूरोपीय नेताओं के साथ बातचीत में इसे दोहराया। इससे यह साफ हो गया कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश मिलकर एक नई सुरक्षा संरचना खड़ी करना चाहते हैं।
आगे का रास्ता
फिलहाल, इस प्रस्ताव को लेकर काफी सवाल खड़े हो रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि यह गारंटी वास्तव में कैसे काम करेगी? क्या यह केवल कागज पर रहेगा या फिर वास्तविक सुरक्षा तंत्र भी तैयार होगा?
दूसरा बड़ा सवाल यह है कि रूस क्यों इस पर सहमत हुआ। क्या यह उसकी रणनीतिक चाल है या फिर वह वाकई इस व्यवस्था को स्वीकार कर रहा है? इन सवालों के जवाब आने वाले महीनों में ही साफ हो पाएंगे।
कुल मिलाकर, एक बात तो साफ है कि यूक्रेन का नाटो सदस्य बनना अभी भी दूर की कौड़ी है। लेकिन अमेरिका और यूरोप का यह संयुक्त प्रस्ताव यूक्रेन को उम्मीद देता है कि वह रूस के खिलाफ अकेला नहीं रहेगा। पुतिन की सहमति भले ही रहस्यमय लगे, लेकिन यह यूक्रेन संकट को नए मोड़ पर ले जाने वाला कदम हो सकता है।
अगर यह प्रस्ताव हकीकत में बदलता है तो यह यूक्रेन की सुरक्षा और यूरोपीय स्थिरता दोनों के लिए अहम साबित होगा। अब पूरी दुनिया की नजर इस पर है कि आने वाले दिनों में अमेरिका, यूरोप, रूस और यूक्रेन इस समझौते को किस तरह से आगे बढ़ाते हैं।



















