AIN NEWS 1 | रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को शुरू हुए लंबा समय हो गया है, लेकिन अब तक इस खून-खराबे का अंत नहीं हो सका। लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं, हजारों जानें जा चुकी हैं और विश्व की राजनीति इस युद्ध के कारण दो ध्रुवों में बंटती नजर आ रही है। कई बड़े देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने युद्ध रोकने की कोशिश की, लेकिन नतीजा सिफर रहा।
अब अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस मामले में सीधा हस्तक्षेप किया है। माना जा रहा है कि वे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से 18 अगस्त को मुलाकात करने वाले हैं। इस मीटिंग से पहले ही उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की को एक ऐसा संदेश दिया है जिसने सबको चौंका दिया।
अमेरिका की दोहरी चाल?
जब युद्ध शुरू हुआ था तब अमेरिका ने यूक्रेन को हथियार और फंड देकर युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। पश्चिमी देशों ने मिलकर रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाए और लगातार हथियारों की सप्लाई होती रही। इससे यह साफ संकेत गया कि अमेरिका और उसके सहयोगी यूक्रेन की जीत देखना चाहते हैं।
लेकिन अब तस्वीर बदलती दिख रही है। ट्रंप ने संकेत दिया है कि युद्ध समाप्त करने का एक ही तरीका है – यूक्रेन को कुछ समझौते करने होंगे। ये समझौते सीधे रूस के पक्ष में जाते नजर आते हैं।
ट्रंप की शर्तें
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप ने कहा कि अगर जेलेंस्की चाहें तो युद्ध तुरंत खत्म हो सकता है। लेकिन इसके लिए दो अहम शर्तें हैं:
क्रीमिया छोड़ना होगा – 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था। अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक क्रीमिया यूक्रेन का हिस्सा है, लेकिन रूस इसे अपने नक्शे का हिस्सा मान चुका है। अमेरिका और यूरोप हमेशा इसे यूक्रेन का क्षेत्र बताते रहे हैं। अब ट्रंप का कहना है कि अगर यूक्रेन क्रीमिया छोड़ देता है तो युद्ध खत्म हो सकता है।
नाटो में शामिल नहीं होना – यूक्रेन लंबे समय से नाटो (NATO) में शामिल होने की कोशिश कर रहा है। रूस इससे हमेशा असहज रहा है क्योंकि उसे लगता है कि नाटो का विस्तार उसकी सीमाओं के लिए खतरा है। ट्रंप का कहना है कि अगर यूक्रेन नाटो सदस्यता छोड़ देता है तो शांति स्थापित हो सकती है।
जेलेंस्की के लिए मुश्किल स्थिति
यहां सबसे बड़ी दिक्कत यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की की है। उन्होंने अपने देशवासियों से वादा किया है कि रूस से एक इंच जमीन भी नहीं छोड़ी जाएगी। लेकिन अब ट्रंप जैसे दिग्गज नेता कह रहे हैं कि शांति के लिए त्याग करना होगा।
अगर जेलेंस्की ट्रंप की बात मानते हैं, तो यह उनके देश की संप्रभुता और जनता के आत्मसम्मान पर बड़ा सवाल होगा। वहीं, अगर वे इन शर्तों को ठुकराते हैं, तो युद्ध और लंबा खिंच सकता है।
रूस की स्थिति
रूस शुरुआत से ही कहता रहा है कि वह यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं होने देगा। पुतिन बार-बार यह दावा कर चुके हैं कि नाटो के विस्तार से रूस की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। 2014 में क्रीमिया पर कब्जा और 2022 में बड़े पैमाने पर यूक्रेन पर हमला इसी सोच का हिस्सा रहे हैं।
अब ट्रंप की शर्तें लगभग वही हैं जो पुतिन चाहता था। यानी अगर यह समझौता होता है तो सबसे बड़ा फायदा रूस को होगा।
अमेरिका का असली इरादा क्या है?
यह सवाल उठना लाजमी है कि अमेरिका ने पहले यूक्रेन को हथियार क्यों दिए और अब अचानक शांति के नाम पर रूस के पक्ष में शर्तें क्यों रखी जा रही हैं। कई जानकारों का मानना है कि अमेरिका की रणनीति हमेशा से यही रही है – पहले युद्ध को बढ़ावा दो, फिर बातचीत के जरिए उसे अपने तरीके से सुलझाओ।
इससे अमेरिका को दो फायदे होते हैं:
एक तरफ हथियारों की बिक्री से अरबों डॉलर की कमाई।
दूसरी तरफ युद्ध खत्म करने वाले “शांति दूत” के रूप में छवि।
आगे क्या?
18 अगस्त को होने वाली ट्रंप और पुतिन की मुलाकात बेहद अहम मानी जा रही है। अगर ट्रंप पुतिन से सीधा समझौता कर लेते हैं तो यूक्रेन पर दबाव और बढ़ जाएगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि जेलेंस्की इस पूरे मामले में क्या रुख अपनाते हैं।
फिलहाल इतना साफ है कि रूस-यूक्रेन युद्ध केवल दो देशों के बीच का संघर्ष नहीं रह गया है। यह अब वैश्विक राजनीति का खेल बन चुका है, जिसमें अमेरिका, यूरोप, रूस और नाटो सबके अपने-अपने हित जुड़े हुए हैं।