Monday, December 23, 2024

जहां स्वयं बुद्ध हार गए, वहां अंबेडकर किस झाड़ की पत्ती हैं-सावरकर ने यह बाबा साहब अम्बेडकर को बोला था

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AIN NEWS 1: संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री डॉ भीमराव अंबेडकर की पूरी राजनीति हिंदू दक्षिणपंथ के ही खिलाफ थी। वह हिंदू धर्म की कुरीतियों के बेहद कड़े विरोधी थे।जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव के दंश से विक्षोभित अम्बेडकर ने यह स्पष्ट कहा था कि ‘मैं हिंदू धर्म में पैदा ज़रूर हुआ, लेकिन हिंदू रहते हुए मरूंगा नहीं’ बाद में वह धर्म बदलकर बौद्ध भी हो गए। धर्मांतरण के दौरान उन्होंने कुल 22 प्रतिज्ञाएँ ली थीं। उन प्रतिज्ञाओं में से कुछ इस प्रकार हैं:

1.मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।

2.मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।

3.मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा।

4.मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ।

5.मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे।

6. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ।

अपनी प्रतिज्ञाओं में उन्होंने हिंदू धर्म के लिए कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया। बावजूद इसके मौजूदा हिंदू दक्षिणपंथी दल अम्बेडकर के प्रति वो सम्मान व्यक्त करते हैं।

लेकिन स्थिति हमेशा ऐसी नहीं थी। हिंदू दक्षिणपंथ के पुराने अगुआ रहे विनायक दामोदर सावरकर खुलेआम डॉ अम्बेडकर की आलोचना करते थे।अंबेडकर किस झाड़ की पत्ती हैं’

सावरकर समग्र के खंड सात में सावरकर के एक लेख का शीर्षक है, ‘बौद्ध धर्म स्वीकार कर तुम असहाय हो जाओगे’। इसी लेख में यह सावरकर ने लिखा है, ”अत: डॉ. अंबेडकर नामक व्यक्ति भिक्षु अंबेडकर हो जाए तो भी किसी हिंदू को किसी तरह का सूतक नहीं लगने वाला है। न हर्ष, न विमर्श, जहां स्वयं बुद्ध हार गए वहां अम्बेडकर किस झाड़ की पत्ती हैं?”अशोक कुमार पाण्डेय अपनी किताब ‘सावरकर काला पानी और उसके बाद’ में सावरकर की एक और टिप्पणी का जिक्र करते हैं।

बता दें साल 1956 में डॉ. अंबेडकर द्वारा अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लेने के बाद सावरकर ने 30 अक्टूबर 1956 को ‘केरसी’ में लिखा था, ”डॉ. अम्बेडकर ने अपने कुछ लाख अनुयायियों के साथ जो सम्प्रदाय बदल किया था या उसे वे चाहें तो धर्मान्तरण कहें, बौद्ध धर्म के लिए उनके मन में कोई प्रगाढ़ भक्ति उत्पन्न हुई, यह इसलिए नहीं किया। उनके मन के अंधियारे कूप में एक हिंदू राष्ट्रघाती महत्वाकांक्षा छिपी बैठी है।”

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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