AIN NEWS 1 | हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में एक कड़वाहट साफ देखी जा सकती है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% का भारी-भरकम टैरिफ लगाया है, जिसने दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को एक नई चुनौती दी है। इस फैसले पर ट्रंप के करीबी सलाहकार पीटर नवारो ने भारत के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया दी है।
नवारो के अनुसार, भारत को रूस से तेल खरीदने की कोई वास्तविक आवश्यकता नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत यूक्रेन युद्ध का फायदा उठा रहा है। नवारो ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भारत रूस से लगभग न के बराबर (करीब 1%) तेल खरीदता था, लेकिन अब यह बढ़कर 35% हो गया है। उनके मुताबिक, भारत रूस से सस्ता तेल खरीदकर उसे रिफाइन करता है और फिर ऊंचे दाम पर बेचकर मुनाफा कमा रहा है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि भारत क्रेमलिन (रूस) के लिए ‘वॉशिंग मशीन’ का काम कर रहा है।
ट्रंप के फैसले का अमेरिका में ही विरोध
यह दिलचस्प है कि ट्रंप के इस फैसले का विरोध उन्हीं की पार्टी के नेताओं द्वारा किया जा रहा है। दक्षिण कैरोलिना की पूर्व गवर्नर निक्की हेली ने ट्रंप के टैरिफ को गलत ठहराया है। हेली ने तर्क दिया कि इस तरह की टैरिफ नीति से भारत और अमेरिका के दशकों पुराने मजबूत संबंध प्रभावित होंगे। उन्होंने ट्रंप को सलाह दी कि वे भारत के साथ जल्द से जल्द रिश्ते सुधारें। यह दिखाता है कि अमेरिकी प्रशासन में भी इस मुद्दे पर एक राय नहीं है।
चीन और पाकिस्तान को मिली राहत, भारत पर दबाव
भारत पर यह टैरिफ ऐसे समय में लगाया गया है जब वह रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है। इस टैरिफ का 25% हिस्सा पहले ही लागू हो चुका है, जबकि बाकी 25% 27 अगस्त से लागू होगा। वहीं, दूसरी ओर, ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने वाले चीन और पाकिस्तान को इस टैरिफ से काफी हद तक राहत दी है, जिससे भारत पर भेदभाव का आरोप लग रहा है। यह नीतिगत असंतुलन भारत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।
क्या भारत की विदेश नीति पर सवाल उठाना सही है?
भारत का रूस से तेल खरीदना उसकी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों से जुड़ा हुआ है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव को देखते हुए, भारत अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न स्रोतों से तेल खरीदता है। भारत की विदेश नीति हमेशा से स्वतंत्र रही है और वह किसी एक देश के दबाव में नहीं आता। रूस से तेल खरीदना कोई नया कदम नहीं है, और यह भारत की आत्मनिर्भरता की नीति का हिस्सा है। ऐसे में, भारत को ‘वॉशिंग मशीन’ कहना या उस पर मुनाफा कमाने का आरोप लगाना शायद पूरी तरह से सही नहीं है। यह मुद्दा केवल व्यापार का नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक संबंधों और राष्ट्रीय संप्रभुता का भी है।
भारत-अमेरिका के बीच इस तनावपूर्ण स्थिति को सुलझाने के लिए दोनों देशों को बातचीत के रास्ते खोलने चाहिए। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वतंत्र है, और अमेरिका को इस बात को समझना चाहिए। दोनों देशों को मिलकर एक ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे उनके मजबूत संबंध प्रभावित न हों और वैश्विक शांति और स्थिरता भी बनी रहे।