AIN NEWS 1 | आज के मेडिकल क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को “भविष्य का डॉक्टर” कहा जा रहा है। एक्स-रे से लेकर कैंसर डिटेक्शन तक, AI ने हेल्थकेयर में कई चमत्कारी बदलाव किए हैं। लेकिन हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन ने यह सवाल उठाया है कि क्या AI पर अधिक भरोसा डॉक्टरों की स्किल्स को कमजोर कर सकता है।
पोलैंड के चार कॉलोनोस्कोपी सेंटर्स में 2021 में AI टूल्स का इस्तेमाल शुरू किया गया। इसका उद्देश्य असामान्य कोशिकाओं की पहचान को आसान बनाना था। शुरुआती डेटा में देखा गया कि बिना AI की मदद से एडेनोमा डिटेक्शन रेट 28% था। लेकिन AI पर लगातार निर्भर रहने के बाद यह घटकर 22% रह गया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि AI पर अत्यधिक भरोसा डॉक्टरों को कम फोकस्ड बना सकता है, जिम्मेदारी की भावना को घटा सकता है और खुद निर्णय लेने की क्षमता कमजोर कर सकता है। यही कारण है कि विशेषज्ञ इसे हेल्थकेयर सिस्टम के लिए गंभीर चुनौती मान रहे हैं।
पहले कई रैंडमाइज्ड ट्रायल्स में AI के इस्तेमाल से एडेनोमा डिटेक्शन बढ़ने की रिपोर्ट थी। लेकिन नए अध्ययन के लेखक डॉ. युइची मोरी के अनुसार, जो डॉक्टर लगातार AI के संपर्क में रहते हैं, वे बिना AI वाली कॉलोनोस्कोपी करते समय कमजोर प्रदर्शन कर सकते हैं। इसका मतलब है कि डॉक्टरों के हुनर में कमी का खतरा मौजूद है।
CARPL.AI के संस्थापक डॉ. विदुर महाजन का कहना है कि टेक्नोलॉजी को पूरी तरह रोकना समाधान नहीं है। उनका उदाहरण है कि जैसे गूगल मैप्स के बिना आज का ड्राइवर कम भरोसेमंद लगेगा, वैसे ही AI का सही इस्तेमाल डॉक्टरों को बेहतर प्रदर्शन करने में मदद कर सकता है। असली चुनौती यह है कि डॉक्टरों और टेक्नोलॉजी के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
AI ने हेल्थकेयर में नई ऊंचाइयां दी हैं, लेकिन पोलैंड की यह स्टडी दिखाती है कि जरूरत से ज्यादा भरोसा खतरनाक हो सकता है। इसलिए डॉक्टरों की ट्रेनिंग और हुनर को लगातार मजबूत बनाना उतना ही जरूरी है जितना AI को अपनाना। अन्यथा मशीनों पर निर्भर होने से इंसान अपनी विशेषज्ञता खो सकता है।
Disclaimer: खबर में दी गई जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी सुझाव को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।