स्टार्टअप सेक्टर पर संकट के बादल! कहीं भारत में भी तो नहीं आने वाली है मंदी?

देश के स्टार्टअप सेक्टर के लिए 2022 मायूसी भरा साल साबित हुआ है।

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स्टार्टअप सेक्टर की फंडिंग में गिरावट

दुनियाभर में स्टार्टअप सेक्टर पर संकट

भारत में स्टार्टअप सेक्टर में भारी छंटनी

AIN NEWS 1: देश के स्टार्टअप सेक्टर के लिए 2022 मायूसी भरा साल साबित हुआ है। दुनियाभर में जिस तरह से स्टार्टअप सेक्टर में छंटनी हुई है, उससे भारत भी बच नहीं पाया है। भारत के स्टार्टअप सेक्टर में भी इस साल करीब 15 हजार लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं। इसकी बड़ी वजह ग्लोबल इकॉनमी में छाई सुस्ती है। हाल ही में बायजूस ने अपनी कुल वर्कफोर्स का 5 फीसदी यानी 2500 कर्मचारियों को निकालने की बात कही है। ये सब कहीं ना कहीं इस बात को पुख्ता तौर पर साबित करता है कि ग्लोबल मंदी आने पर भारत के भी कई सेक्टर्स पर इसका बुरा असर होगा।

घट गए स्टार्टअप सेक्टर के सौदे

स्टार्टअप सेक्टर के हालात और खराब होने की आशंका अब इसलिए भी बढ़ गई है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में स्टार्टअप्स को 205 सौदों से केवल 2.7 अरब डॉलर की रकम जुटाने में सफलता हासिल हुई है। फंडिंग का ये स्तर बीते 2 साल में सबसे कम है। वैश्विक स्तर पर देखें तो क्रंचबेस के मुताबिक जुलाई सितंबर तिमाही में वेंचर फंडिंग 81 अरब डॉलर रही है। जो जुलाई-सितंबर 2021 के 171 अरब डॉलर के मुकाबले 90 अरब डॉलर कम है। यही नहीं अप्रैल-जून 2022 के मुकाबले में भी इस बार फंडिंग 33 फीसदी घटकर 40 अरब डॉलर रह गई है।

स्टार्टअप सेक्टर में घटी यूनिकॉर्न बनने की रफ्तार

PWC की रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई-सितंबर तिमाही में महज दो स्टार्टअप ही यूनिकॉर्न बन सके हैं। ये हालात तब हैं जबकि वैश्विक आर्थिक रफ्तार में अभी केवल सुस्ती आई है और हालात मंदी जैसे नहीं हैं। लेकिन अगर मंदी की आशंका सही साबित होती है तो फिर अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि किस तरह के हालात पैदा हो सकते हैं।
मंदी की आहट भर से ही निवेशक और फाउंडर्स दोनों सावधानी बरत रहे हैं। जुलाई से सितंबर के दौरान हरेक सौदे की औसत फंडिंग साढ़े 4 करोड़ डॉलर रही है। इस तिमाही में दुनियाभर में महज 20 यूनिकॉर्न बन पाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि निवेश के सभी फेज में गिरावट देखी गई है जिसमें शुरुआती फेज से लेकर विकास तक शामिल हैं। स्टार्टअप्स के सामने संकट इतना गहरा चुका है कि कई सौदे मंजूर होने के बावजूद अगर शुरु नहीं हो पाए हैं तो वो पूरे नहीं हो रहे हैं। यही नहीं फंडिंग अगर मिल भी रही है तो उसमें नई शर्तों को जोड़ा जा रहा है और कुछ मामलों में फंडिंग की रकम को घटाया जा रहा है।

मंदी के गहरे बादल छाने लगे

अगर इस साल फंडिंग का ट्रेंड देखें तो जनवरी-मार्च तिमाही में 506 सौदे हुए जिसमें करीब 12 अरब डॉलर आए थे। लेकिन तीसरी तिमाही में सौदों की संख्या 334 रह गई और केवल 2.7 अरब डॉलर आए हैं। फंडिंग में कमी का ये सिलसिला अगले 2 से 3 साल तक जारी रह सकता है। इसकी एक बड़ी वजह लगातार बढ़ती ब्याज दरें हैं जिनके अगले साल के आखिर तक इसी तरह बढ़ने की संभावना है। ऐसे में अगले साल अगर मंदी की आशंका सच हो गई तो फिर स्टार्टअप के लिए फंड जुटाना ज्यादा मुश्किल हो जाएगा। वैसे भी IMF और वर्ल्ड बैंक दोनों ही खतरनाक मंदी आने की आशंका जाहिर कर चुके हैं।

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