Thursday, November 21, 2024

जिंदगी के फैसलों की मार्मिक कहानी: एक ट्रेन यात्रा में संघर्ष और सुलह?

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AIN NEWS 1: सर्द नवंबर की रात थी। मैं एक ट्रेन के डिब्बे में अकेला बैठा था। ठंड के कारण मैंने कई लेयर्स पहने हुए थे, लेकिन सामने वाली सीट पर बैठी एक युवती ने सिर्फ एक साड़ी पहन रखी थी। उसके पास एक झोला था और डिब्बे में यात्री बहुत कम थे, जिससे सन्नाटा था।

उस युवती ने इधर-उधर देखा और हमारी नजरें कई बार टकराईं। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह इतनी रात को अकेले क्यों यात्रा कर रही थी और उसे छोड़ने कोई नहीं आया था। मैंने धीरे से उससे पूछा, “आप कौनसे स्टेशन से चढ़ी हैं?” उसने बहुत धीमी आवाज में जवाब दिया, जिसे मैंने ठीक से नहीं सुना। मैंने दुबारा नहीं पूछा और चुप रहा। फिर मैंने पूछा, “आपको कहाँ तक जाना है?” उसने कहा, “लखनऊ।” इस बार मैंने स्पष्ट सुना और बातचीत शुरू की।

रात के दस बज चुके थे और ठंड बढ़ रही थी। मैंने अपने बैग से कंबल निकाला और ओढ़ लिया। युवती को ठिठुरते देखकर, मैंने उसे अपना कंबल दे दिया। उसने धन्यवाद कहा और कंबल ले लिया।

मैंने पूछा, “आपको कोई छोड़ने नहीं आया?” उसने कहा, “घर पर कोई नहीं था।” जब मैंने पूछा, “आपके पति क्या करते हैं?” उसने कहा, “क्लर्क हैं।” मैंने पूछा, “वह घर पर नहीं थे?” उसने कहा, “नहीं, ड्यूटी पर थे।”

मैंने पूछा, “आपको अकेले जाने की अनुमति मिली?” उसने कहा, “मैं अपनी मर्जी से जा रही हूं।” मैंने सोचा कि शायद आपके पति से झगड़ा हुआ है, तो उसने कहा, “नहीं, मेरा मायका गांव में है, लेकिन वहां कोई नहीं है।”

जब मैंने पूछा, “लखनऊ में आपका कौन है?” उसने कहा, “मामा के लड़के, जो बैंक में हैं।” मैंने फिर पूछा, “क्या आपके पति ने आपको मारा-पीटा है?” उसने कहा, “नहीं, बस एक बार गुस्से में कुछ कहा।”

कुछ समय बाद मेरे फोन की रिंग बजी और मैंने कहा, “हां, बोलो, क्या है।” युवती ने सुना और पूछा, “इतनी रात को आप किसे डांट रहे थे?” मैंने कहा, “मेरी पत्नी थी।” उसने पूछा, “आप नाराज होकर आए हैं?” मैंने कहा, “हां।” उसने पूछा, “फोन पर क्या पूछ रही थी?” मैंने कहा, “खाया-पीया कि नहीं।” उसने कहा, “फिर भी आप डांट रहे थे?” मैंने कहा, “ऐसी औरत किसी को न मिले।”

उसने पूछा, “क्यों, क्या हुआ?” मैंने कहा, “बात-बात में मेरी मां को ताने मार दिए।”

थोड़ी देर बाद युवती गुसलखाने गई और एक नौजवान पीछे आ रहा था, जो पागल सा लग रहा था। दो अन्य लोग उसे डांटकर भगा दिया। युवती ने मुझसे लिपटकर रोना शुरू कर दिया और थोड़ी देर बाद शांत हुई।

मैंने देखा कि उसका मोबाइल गिर पड़ा था। उसे लौटाते हुए मैंने कहा, “आपके पास मोबाइल है और आपने बंद किया हुआ है। यह गलत है।” मैंने मोबाइल ऑन किया और देखा कि किसी का फोन आ रहा था। उसने फोन उठाया और कहा, “मैं ट्रेन में हूं, लखनऊ जा रही हूं।” उधर से आवाज आई, “प्लीज वापस आ जाओ।” उसने कहा, “तुम्हारे लिए कांच का जग मायने रखता है, मुझे नहीं।” और फोन काट दिया।

सुबह साढ़े चार बजे ट्रेन लखनऊ पहुंची। मैंने युवती से कहा, “अब सोच-समझकर फैसला करें कि आपको अपने घर लौटना है या रिश्तेदार के यहां रहना है।” उसने कहा, “गलती मेरी भी थी।” और फिर मोबाइल की बेल बजी, जिससे उधर से आवाज आई, “प्लीज वापस आ जाओ।” उसने रोते हुए कहा, “ठीक है।”

मैंने उसे एक टिकट लाकर दिया और उसने ट्रेन पकड़ ली। इस घटना से मुझे एक परिवार को टूटने से बचाने की संतोषजनक भावना मिली। सोचते हुए मैं भी अपने घर की ओर लौट गया, जहां मेरे बच्चे और पत्नी मेरा इंतजार कर रहे थे।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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