Thursday, December 5, 2024

पिता को समझने में लगे 60 साल: एक पुत्र की जीवन यात्रा?

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AIN NEWS 1: पुत्र के नजरिये से पिता के साथ रिश्ते की जटिलता और बदलाव समय के साथ होते हैं। हर उम्र में पिता को लेकर महसूस होने वाली भावनाएं अलग-अलग होती हैं। यह लेख एक पुत्र के जीवन के विभिन्न पड़ावों में पिता के प्रति सोच में बदलाव को दर्शाता है।

4 वर्ष:

“मेरे पिताजी महान हैं।”

जब हम छोटे होते हैं, तो हमें अपने पिता में सब कुछ अच्छा ही नजर आता है। वे हमारे लिए सबसे बड़े हीरो होते हैं।

6 वर्ष:

“मेरे पिताजी सब कुछ जानते हैं, वह सबसे होशियार हैं।”

इस उम्र में हमें लगता है कि पिता के पास सभी सवालों का जवाब है। वे हमारे लिए सब कुछ सुलझा देने वाले होते हैं।

10 वर्ष:

“मेरे पिताजी अच्छे हैं, परंतु गुस्से वाले हैं।”

इस उम्र में हम अपने पिता की कमजोरियों को समझने लगते हैं। हम यह महसूस करते हैं कि वे कभी-कभी गुस्से में आ जाते हैं, लेकिन फिर भी उनका प्यार हमारे लिए अपरिवर्तित रहता है।

12 वर्ष:

“जब मैं छोटा था, तब मेरे पिता मेरे साथ अच्छा व्यवहार करते थे।”

बचपन में हम अपने पिता को बहुत आदर्श मानते हैं, लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते हैं, हमें उनके कुछ व्यवहारों को लेकर शंका होने लगती है।

16 वर्ष:

“मेरे पिताजी समय के साथ नहीं चलते। सच पूछो तो उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं है!”

इस उम्र में हमें लगता है कि पिता पुराने ख्यालों वाले हैं और हम उनसे आगे बढ़ चुके हैं। हमें लगता है कि वे अब नहीं समझ पाते हैं।

18 वर्ष:

“मेरे पिता दिनों-दिन चिड़चिड़े और अव्यवहारिक होते जा रहे हैं।”

किशोरावस्था में हमें अपनी आज़ादी की चाहत होती है और हमें लगता है कि पिता हमारे मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।

20 वर्ष:

“ओह! अब तो पिता के साथ रहना असहनीय हो गया है… मालूम नहीं मम्मी इनके साथ कैसे रह पाती हैं।”

इस उम्र में हम खुद को स्वतंत्र समझते हैं और पिता की आलोचना करने लगते हैं। हमें लगता है कि वे पुराने ढंग के हैं।

25 वर्ष:

“मेरे पिताजी बातों में मेरा विरोध करते हैं, कौन जाने, कब वे दुनिया को समझेंगे।”

जवानी में हमें लगता है कि पिता की सोच से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता, और वे हमारी बातों को समझने में असमर्थ हैं।

30 वर्ष:

“मेरे छोटे बेटे को संभालना मुश्किल हो रहा है… बचपन में मैं अपने पिता से कितना डरता था!”

अब जब हम खुद माता-पिता बनते हैं, तो हमें अपने पिता की कड़ी शिक्षा और अनुशासन की अहमियत समझ में आती है।

40 वर्ष:

“मेरे पिताजी ने मुझे कितने अनुशासन से पाला था, आजकल के लड़कों में कोई अनुशासन और शिष्टाचार नहीं है।”

इस उम्र में हमें महसूस होता है कि हमारे पिता ने हमें जो अनुशासन और संस्कार दिए, वही हमें जीवन में मार्गदर्शन देते हैं।

50 वर्ष:

“मुझे आश्चर्य होता है, मेरे पिता ने कितनी मुश्किलें झेलकर हम भाई-बहनों को बड़ा किया। आजकल तो एक संतान को बड़ा करने में ही दम निकल जाता है।”

अब जब हम खुद अपने बच्चों के साथ संघर्ष कर रहे होते हैं, तो हमें अपने पिता की कठिनाइयों का अहसास होता है।

55 वर्ष:

“मेरे पिताजी कितने दूरदृष्टि वाले थे, उन्होंने हम सभी भाई-बहनों के लिए कितना व्यवस्थित आयोजन किया था।”

अब हम यह समझते हैं कि हमारे पिता ने हमारे भविष्य के लिए कितनी सावधानी से योजना बनाई थी।

60 वर्ष:

“मेरे पिता महान थे, वे जिन्दा रहे तब तक हम सभी का पूरा ख्याल रखा।”

अब जब हम वृद्ध होते हैं, तो हमें अपने पिता की महानता और उनके द्वारा किए गए संघर्षों का पूरा मूल्य समझ में आता है।

निष्कर्ष:

पिता को पूरी तरह से समझने में एक जीवनभर का समय लगता है। यह यात्रा 60 साल की होती है, जिसमें हम हर चरण में अपने पिता को अलग नजरिए से देखते हैं। जब तक हम खुद उनकी स्थिति में नहीं पहुंचते, तब तक हमें उनके संघर्ष और समर्पण का सही मूल्य नहीं समझ आता।

 

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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