AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में स्थित सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर इस वर्ष जेठ माह में लगने वाला पारंपरिक मेला नहीं लग सका। यह पहला मौका है जब करीब 500 वर्षों से चली आ रही यह परंपरा टूटी है। हाईकोर्ट के आदेश के चलते प्रशासन ने मेला आयोजित करने की अनुमति नहीं दी। परिणामस्वरूप न तो मेले की रौनक दिखी, न ही वह भारी भीड़ जो हर साल उमड़ती थी।
हजारों की जगह केवल कुछ हजार जायरीन
इस बार मेले की पहली चौथी को सामान्यतः जहां 4-5 लाख लोग इकट्ठा होते थे, वहीं इस बार केवल 5 से 8 हजार जायरीन ही नजर आए। आमतौर पर यह सड़कें इतनी भीड़ से भर जाती थीं कि तिल रखने की जगह नहीं रहती थी, लेकिन अब खाली पड़ी रहीं और वाहन आराम से निकलते रहे।
इतिहास: दरगाह की स्थापना और मेले की परंपरा
इस स्थान का ऐतिहासिक महत्व है। कहा जाता है कि 11वीं सदी में युद्ध में मारे गए सालार मसूद गाजी की याद में 14वीं शताब्दी में फिरोजशाह तुगलक ने यहां एक किलेनुमा दरगाह का निर्माण कराया था। इसके बाद से ही यहां हर साल जेठ माह के हर रविवार को मेले की परंपरा शुरू हुई। यह मेला समय के साथ इतना बड़ा बन गया कि इसे धार्मिक स्थल के साथ-साथ व्यापारिक केंद्र भी माना जाने लगा।
हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की भागीदारी
मेले में हिंदू मेलार्थियों की संख्या मुस्लिमों से कई गुना अधिक होती थी। जहां मुस्लिम जायरीन सिन्नी आदि चढ़ाते थे, वहीं हिंदू त्रिशूल और लाल कपड़े में लिपटा नारियल लेकर मन्नतें मांगने आते थे। लोग संतान प्राप्ति, मानसिक और शारीरिक बीमारियों से राहत की कामना करते थे।
न आई बरात, न गड़े त्रिशूल व निशान
हर साल मेला रविवार को “बरात” के साथ शुरू होता था — यह बरात बिना दूल्हे के होती थी, लेकिन पूरी धूमधाम और दहेज का सामान साथ लाया जाता था। इसमें सौ से डेढ़ सौ जायरीन शामिल होते थे जो नाचते-गाते दरगाह पहुंचते थे और वहां निशान और त्रिशूल गाड़े जाते थे। इस बार बरात नहीं आई, न ही त्रिशूल और निशान लाए गए। जायरीन ने सादगी से जियारत की।
न कव्वाली, न गोला तमाशा
इस बार न तो कव्वाली का आयोजन हुआ, न गोला तमाशा देखा गया। कुछ स्थानों पर कव्वालों ने प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने भीड़ इकट्ठा न करने की चेतावनी दी। रात में रुकने की अनुमति नहीं थी और पुलिस तैनाती बहुत सख्त थी।
कड़ी सुरक्षा, रात भर रुकने की मनाही
मेले की संभावित भीड़ को रोकने के लिए 1500 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था। प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया कि कोई भी रात भर दरगाह परिसर में न रुके और कहीं भी भगदड़ जैसी स्थिति न बने। अधिकतर जायरीन को जंजीरी गेट से प्रवेश दिया गया जहां पुलिस की भारी मौजूदगी थी।
राजनीतिक हस्तियां भी पहुंचीं जियारत को
इस मौके पर श्रावस्ती सांसद राम शिरोमणि वर्मा ने दरगाह पहुंचकर जियारत की। उनके साथ सपा के पदाधिकारी भी मौजूद थे। उन्होंने दरगाह को आस्था का केंद्र बताया।
प्रशासन की अपील: सीमित संख्या में आएं जायरीन
ASP रामानंद कुशवाहा ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश अनुसार जायरीन के आने पर रोक नहीं है, लेकिन संख्या सीमित रखी जानी चाहिए। दरगाह प्रबंधक वकाउल्ला ने भी अपील की कि लोग कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए कम संख्या में जियारत करने आएं।
The cancellation of the centuries-old Salar Masood Ghazi Dargah fair in Bahraich, Uttar Pradesh, due to a High Court order, marks a significant shift in local traditions. For over 500 years, this religious fair attracted Hindu and Muslim pilgrims alike, becoming not just a spiritual event but also a major economic hub. This year, amid tight police security and restrictions, the traditional procession and rituals like carrying trishuls, nishans, and wedding processions without grooms did not take place. The restricted footfall and cancellation of celebrations at the historic shrine have stirred emotional responses and raised discussions on court interventions in religious traditions.