Friday, January 24, 2025

लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला?

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बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: “लाउडस्पीकर धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं, नियमों का पालन जरूरी”

Bombay High Court’s Landmark Verdict: Loudspeakers Not Essential to Religion

AIN NEWS 1: बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के नियमों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। न्यायमूर्ति ए. एस. गडकरी और न्यायमूर्ति एस. सी. चांडक की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि शोर का अत्यधिक स्तर मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।

अदालत ने कहा कि किसी भी धार्मिक उद्देश्य के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल जरूरी नहीं है। यदि ऐसा करने की अनुमति नहीं दी जाती, तो इससे किसी भी व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा।

याचिका का आधार और अदालत का निर्देश

यह फैसला मुंबई के कुर्ला इलाके की दो आवासीय संघों – जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और शिवसृष्टि कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटीज एसोसिएशन लिमिटेड – द्वारा दायर याचिका पर सुनाया गया। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का उल्लंघन करता है।

अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकरों को ध्वनि सीमा के दायरे में लाने के लिए ठोस कदम उठाए। इनमें स्वचालित ‘डेसिबल लिमिट’ निर्धारित करने वाली ध्वनि प्रणालियों का उपयोग शामिल है।

पुलिस और प्रशासन के लिए सख्त निर्देश

बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को यह निर्देश दिया कि ध्वनि प्रदूषण के मामलों में त्वरित कार्रवाई करें। अदालत ने यह भी कहा कि किसी शिकायतकर्ता की पहचान उजागर किए बिना उसकी शिकायत पर कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि उन्हें किसी तरह की दुर्भावना या घृणा का सामना न करना पड़े।

अदालत ने पुलिस आयुक्त को सभी थानों को निर्देश जारी करने के लिए कहा, ताकि धार्मिक स्थलों पर लगे लाउडस्पीकरों के खिलाफ शिकायत मिलने पर तुरंत कार्रवाई हो।

संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन नहीं

पीठ ने स्पष्ट किया कि लाउडस्पीकर का उपयोग धार्मिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा नहीं है। अदालत ने कहा कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं करता।

ध्वनि प्रदूषण मानकों का पालन जरूरी

अदालत ने कहा कि आवासीय क्षेत्रों में दिन के समय ध्वनि का स्तर 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए। सभी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि वे इन मानकों का पालन करें।

जनहित के लिए फैसला

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह निर्णय जनहित में लिया गया है। शोर प्रदूषण से न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि यह समाज में शांति भंग करने का कारण भी बनता है।

The Bombay High Court has ruled that the use of loudspeakers is not an essential part of any religion, emphasizing that noise pollution laws must be strictly enforced. The court directed the police and authorities to take immediate action against violations and ensure compliance with sound pollution regulations under the Noise Pollution (Regulation and Control) Rules, 2000. This landmark judgment reinforces public health and environmental preservation while balancing religious practices.

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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