AIN NEWS 1: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता सुरेंद्र सागर को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। यह कदम तब उठाया गया, जब सुरेंद्र सागर ने समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक त्रिभुवन दत्त की बेटी से अपने बेटे की शादी कर ली। इस शादी में सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी शामिल हुए थे, जिससे बसपा को गहरा आघात पहुँचा।
शादी के बाद निष्कासन
सुरेंद्र सागर, जो 2007 से 2024 तक पांच बार बसपा के जिलाध्यक्ष रह चुके हैं, 27 नवंबर को सपा विधायक त्रिभुवन दत्त की बेटी से अपने बेटे का विवाह कर बैठे। शादी के बाद, बसपा सुप्रीमो मायावती ने कड़ा कदम उठाते हुए सागर को पार्टी से निष्कासित कर दिया।
मायावती का गुस्सा और सागर का आरोप
सुरेंद्र सागर ने इस फैसले को लेकर मायावती की आलोचना की है। उनका कहना है कि मायावती के फैसले पार्टी के लिए हानिकारक हो रहे हैं और वह गुस्से में आकर गलत निर्णय ले रही हैं। सागर ने यह भी कहा कि उनकी और सपा के त्रिभुवन दत्त से रिश्तेदारी को लेकर मायावती को गुस्सा आया, जिससे उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया।
पार्टी के फैसलों पर सवाल
सागर ने कहा कि मायावती के फैसले पार्टी को कमजोर बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 29 सालों से वह बसपा में थे और पार्टी के लिए काफी काम किया, लेकिन अब पार्टी के फैसले उनके समझ से बाहर हैं। उनका मानना है कि अगर मायावती सही फैसले लें, तो बसपा को फिर से मजबूत किया जा सकता है।
चंद्रशेखर रावण का टिकट वितरण
सागर ने यह भी आरोप लगाया कि बसपा में गलत टिकट वितरण की वजह से चंद्रशेखर रावण जैसे नेताओं को जीतने का मौका मिला। उनका कहना है कि रावण को जीतने का अवसर बसपा ने दिया, जबकि अगर वह सही टिकट वितरण करती, तो रावण कभी सांसद नहीं बन पाते।
बसपा में पहले भी हुई है ऐसी कार्रवाइयाँ
यह पहला मौका नहीं है जब बसपा ने किसी नेता को पार्टी से बाहर किया हो। इससे पहले मेरठ में भी तीन नेताओं को पार्टी से निकाल दिया गया था, जब उनका एक ऑडियो वायरल हुआ था जिसमें वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ बात कर रहे थे।
निष्कासन का असर
सुरेंद्र सागर के निष्कासन से यह साफ होता है कि बसपा में अब व्यक्तिगत रिश्तों और राजनीतिक विचारधाराओं के बीच का संतुलन काफी नाजुक हो चुका है। पार्टी के भीतर इस फैसले को लेकर असंतोष और आलोचना बढ़ सकती है, जिससे आने वाले समय में पार्टी के लिए चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
सागर का कहना है कि अगर मायावती अपने फैसले बदलती हैं तो पार्टी को फिर से मजबूत किया जा सकता है।