AIN NEWS 1 | उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के स्याना क्षेत्र में साल 2018 में हुई भीषण हिंसा के सात साल बाद आखिरकार न्याय की गूंज सुनाई दी है। 1 अगस्त 2025 को एडीजे-12 गोपाल जी की अदालत ने इस चर्चित मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने 39 में से 38 आरोपियों को दोषी करार देते हुए सजा सुनाई है।
क्या हुआ था 3 दिसंबर 2018 को?
घटना 3 दिसंबर 2018 की है, जब बुलंदशहर के स्याना तहसील के चिंगरावठी गांव में गौकशी की आशंका को लेकर भीड़ हिंसक हो उठी थी। गुस्साई भीड़ ने चिंगरावठी पुलिस चौकी पर हमला कर दिया, जिसमें भारी तोड़फोड़, आगजनी और पथराव हुआ। इस हिंसा में दो लोगों की जान गई — एक पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और दूसरा 20 वर्षीय युवक सुमित।
इस हिंसा ने न सिर्फ बुलंदशहर को बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश को झकझोर दिया था। सुबोध कुमार सिंह की शहादत से पुलिस विभाग समेत आम जनता में भारी आक्रोश पनपा।
अदालत का फैसला: न्याय की ओर एक बड़ा कदम
7 साल चली कानूनी प्रक्रिया के बाद एडीजे-12 कोर्ट ने 38 आरोपियों को दोषी मानते हुए सजा सुनाई है।
5 आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी गई है। इनमें प्रशांत नट, राहुल, जॉनी, लोकेन्द्र उर्फ मामा और डेविड शामिल हैं। इन सभी को इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या (IPC की धारा 302) का दोषी पाया गया।
33 अन्य आरोपियों को 7 साल की सजा सुनाई गई है। इन पर बलवा, हत्या का प्रयास, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान, सरकारी कार्य में बाधा जैसी गंभीर धाराएं (307, 147, 148, 149, 436, 332, 353) लगाई गई थीं। कोर्ट ने उन्हें आर्थिक दंड भी दिया है।
केस की जानकारी
इस पूरे मामले में पुलिस ने कुल 44 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इनमें से 5 आरोपियों की ट्रायल के दौरान मृत्यु हो गई और एक आरोपी नाबालिग था, जिसकी सुनवाई अलग से हो रही है। शेष 38 अभियुक्तों पर फैसला सुनाया गया है।
विशेष लोक अभियोजक यशपाल सिंह राघव के अनुसार, कोर्ट में पेश साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर यह स्पष्ट हो गया कि भीड़ द्वारा हिंसा पूर्व नियोजित थी और इसमें सभी अभियुक्तों की सक्रिय भागीदारी थी।
शहीद सुबोध सिंह की शहादत और उनका परिवार
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या पुलिसिंग के लिए एक काले दिन की तरह थी। वे न केवल एक जिम्मेदार अधिकारी थे बल्कि अपने सुलझे हुए व्यवहार के लिए भी जाने जाते थे। उनकी मौत ने न सिर्फ उनके परिवार को, बल्कि पूरे पुलिस विभाग को गहरा सदमा दिया था।
उनके बेटे श्रेय सिंह ने कोर्ट के फैसले पर संतोष जताते हुए कहा, “हमें विश्वास था कि एक दिन न्याय मिलेगा। हमने कोर्ट में सच्चाई को सामने लाया और न्याय व्यवस्था ने हमें मायूस नहीं किया। अगर दूसरा पक्ष हाईकोर्ट जाता है, तो हम भी वहां लड़ाई लड़ेंगे।”
घटना के बाद क्या हुआ था?
घटना के बाद प्रदेशभर में राजनीतिक और सामाजिक हलचल तेज हो गई थी। कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे थे और पुलिस-प्रशासन पर कार्रवाई का दबाव बना था। तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तत्काल जांच के आदेश दिए थे और SIT गठित कर दी गई थी।
इसके बाद बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हुईं और गवाहों के बयान दर्ज किए गए। पूरे केस की निगरानी उच्च अधिकारियों द्वारा की गई, जिससे ट्रायल प्रक्रिया लगातार चलती रही।
न्याय में देरी, लेकिन अंधेरा नहीं
हालांकि न्याय पाने में 7 साल लगे, लेकिन कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि कानून का हाथ लंबा होता है। इस केस में कोर्ट की सख्ती यह संदेश देती है कि जो भी कानून अपने हाथ में लेने की कोशिश करेगा, उसे उसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
The Bulandshahr violence case from 2018 has finally seen justice after 7 long years. A local court in Uttar Pradesh has sentenced 5 men to life imprisonment for the murder of Inspector Subodh Kumar Singh, while 33 others were sentenced to 7 years in prison for rioting, arson, and assault under multiple IPC sections. This verdict sends a strong message against mob violence and ensures that those involved in such high-profile public disorder cases will face strict legal consequences. The case revolved around alleged cow slaughter in the Siyana region and triggered a state-wide law and order crisis at the time.