AIN NEWS 1: भारत में दशकों से लंबित जातीय जनगणना को लेकर अंततः केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय ले लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति (CCPA) ने यह घोषणा की है कि आगामी जनगणना में जातीय गणना भी की जाएगी। यह फैसला 1931 के बाद पहली बार भारत में जातीय जनगणना का मार्ग प्रशस्त करेगा। आजाद भारत में यह अपनी तरह की पहली जातीय गणना होगी।
जातीय जनगणना की पृष्ठभूमि
भारत में अंतिम जातीय जनगणना 1931 में हुई थी। इसके बाद से देश में केवल जनसंख्या, भाषा और धर्म आधारित डेटा ही एकत्र किया गया है, लेकिन जातियों का विस्तृत और आधिकारिक आंकड़ा कभी दोहराया नहीं गया। आजादी के बाद विभिन्न सरकारों ने इसे लागू करने में हिचक दिखाई। हालांकि, सामाजिक न्याय और समानता के मुद्दों पर आधारित राजनीति के चलते इस विषय ने समय-समय पर जोर पकड़ा।
फैसले का राजनीतिक महत्व
यह निर्णय ऐसे समय पर लिया गया है जब बिहार जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और देश भर में जातीय प्रतिनिधित्व की मांग तेज होती जा रही है। विपक्षी दलों, खासकर क्षेत्रीय पार्टियों, ने लंबे समय से जातीय जनगणना की मांग की है। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों के नेताओं ने विभिन्न अवसरों पर इसे आवश्यक बताया है।
सरकार की घोषणा और प्रक्रिया
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि यह जनगणना पूरी तरह पारदर्शी तरीके से होगी और इसे भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त की देखरेख में संपन्न कराया जाएगा। यह अधिकारी सीधे गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करते हैं। यह जनगणना केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले संविधान के अनुच्छेद 246 की सातवीं अनुसूची की सूची-1 की प्रविष्टि संख्या 69 के अंतर्गत की जाएगी।
पिछली सरकारों का रुख
केंद्रीय मंत्री वैष्णव ने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस ने हमेशा जातीय जनगणना का विरोध किया है। वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन जरूर दिया था, लेकिन बाद में केवल एक सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC) कराई गई, जिसमें कई त्रुटियां पाई गई थीं।
राज्य सरकारों के सर्वेक्षण और उस पर विवाद
हाल के वर्षों में कई राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर जाति आधारित सर्वेक्षण कराए हैं। कर्नाटक, बिहार, ओडिशा जैसे राज्यों में इसे लागू किया गया। लेकिन केंद्र सरकार का मानना है कि यह विषय केवल केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है और राज्यों द्वारा की गई गणना में पारदर्शिता की कमी रही है, जिससे समाज में भ्रम की स्थिति बनी।
जनता और विपक्ष का दबाव
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि केंद्र सरकार जनता और विपक्ष के दबाव में यह निर्णय लेने को मजबूर हुई है। उन्होंने कहा कि अब सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि यह प्रक्रिया कब और कैसे पूरी की जाएगी।
सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम
गृहमंत्री अमित शाह ने इस निर्णय को सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि यह कदम समाज के हर वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व दिलाने में मदद करेगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि इससे वंचित वर्गों को पहचान और योजनाओं में भागीदारी सुनिश्चित होगी।
जनगणना में देरी के कारण
हर दशक में होने वाली जनगणना इस बार कोविड-19 महामारी के कारण टाल दी गई थी। महामारी के बाद भी विभिन्न कारणों से यह प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी। अब जबकि सरकार ने निर्णय ले लिया है, इसकी औपचारिक प्रक्रिया जल्द ही शुरू की जा सकती है। सरकार ने 2025-26 के बजट में इसके लिए ₹574.80 करोड़ आवंटित किए हैं। हालांकि, पूरी जनगणना और एनपीआर प्रक्रिया पर ₹13,000 करोड़ से अधिक खर्च होने की संभावना है।
क्या है SECC और उसकी सीमाएं
सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC) को 2011 में किया गया था लेकिन इसमें जातियों की पहचान और संख्या को लेकर स्पष्टता नहीं थी। इसके डेटा को सार्वजनिक नहीं किया गया था, और अनेक जगहों पर इसके आंकड़ों में विरोधाभास पाए गए। यही कारण है कि सामाजिक संगठन और राजनीतिक दल लंबे समय से एक पूर्ण जातीय जनगणना की मांग कर रहे थे।
भविष्य की योजना और चुनौतियां
केंद्र सरकार की योजना है कि इस बार की जनगणना डिजिटल माध्यम से की जाएगी। इसके लिए मोबाइल ऐप और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म विकसित किए जा रहे हैं। हालांकि, इसमें कई तकनीकी और सामाजिक चुनौतियां होंगी — जैसे जातियों की पहचान, वर्गीकरण, और डेटा का विश्लेषण करना। फिर भी सरकार का कहना है कि यह कार्य पारदर्शी और वैज्ञानिक तरीके से किया जाएगा।
जनगणना के संभावित लाभ
जातीय गणना से समाज में व्याप्त असमानताओं को आंकड़ों के जरिए समझने में मदद मिलेगी। इससे विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की नीति निर्धारण और क्रियान्वयन में सहूलियत होगी। यह देश की सामाजिक संरचना को समझने और सबको उचित प्रतिनिधित्व देने का मजबूत आधार बन सकती है।
केंद्र सरकार का यह निर्णय भारतीय राजनीति और सामाजिक न्याय की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह न केवल ऐतिहासिक है बल्कि समावेशी विकास की दिशा में भी एक निर्णायक कदम है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस प्रक्रिया को किस तरह से आगे बढ़ाती है और समाज को इससे क्या लाभ मिलता है।
India is set to conduct a caste-based census for the first time since 1931, following a landmark decision by the Modi-led Union Cabinet. This move is expected to provide transparent and comprehensive caste data through the upcoming national census. The caste enumeration will support social justice, better policy implementation for OBCs and marginalized communities, and align with long-standing political demands. The government has allocated Rs 574.80 crore in the 2025-26 budget for the census, with total costs expected to exceed Rs 13,000 crore. This caste census is seen as a turning point in India’s data-driven governance and inclusive development.