दलाई लामा की लद्दाख यात्रा से चीन की तिलमिलाहट एक बार फिर सामने आ गई है। शनिवार को जब दलाई लामा भारतीय वायुसेना के विमान से लेह पहुंचे, तो उनकी सुरक्षा को लेकर कड़े इंतजाम किए गए थे। लेकिन इस यात्रा ने चीन को नाराज़ कर दिया, खासकर तब जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर की बहुप्रतीक्षित चीन यात्रा भी जल्द होने वाली है।
बीजिंग स्थित चीनी दूतावास ने रविवार को तीखा बयान जारी कर भारत को चेतावनी दी। प्रवक्ता यू जिंग ने कहा कि भारत को ‘शिजांग’ यानी तिब्बत से जुड़ी संवेदनशीलता को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी और उनके पुनर्जन्म से जुड़ा मुद्दा चीन का “आंतरिक मामला” है, और इसमें किसी बाहरी दखल की कोई जगह नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि तिब्बत का मुद्दा भारत-चीन संबंधों में ‘कांटे’ की तरह बनता जा रहा है।
चीन ने यह भी आरोप लगाया कि भारत के पूर्व राजनयिकों, विशेषज्ञों और शिक्षाविदों के हालिया बयानों से उसकी संप्रभुता को चुनौती मिली है। साथ ही, यू जिंग ने दावा किया कि तिब्बत में लोग आज़ादी से अपनी संस्कृति, पहनावे और जीवनशैली को निभा रहे हैं। इन दावों को समर्थन देने के लिए उन्होंने कुछ तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर साझा कीं।
भारत सरकार ने इस मुद्दे पर अपनी तटस्थ नीति दोहराई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने साफ कहा कि भारत धार्मिक परंपराओं और विश्वासों से जुड़े मामलों में कोई आधिकारिक पक्ष नहीं लेता और धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता है।
चीन की नाराज़गी की एक बड़ी वजह केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू का बयान भी रहा, जिन्होंने दलाई लामा के जन्मदिन समारोह में भाग लिया था और सार्वजनिक रूप से कहा कि दलाई लामा और उनका धार्मिक संस्थान ही उत्तराधिकारी तय करने के लिए अधिकृत हैं।
दलाई लामा ने अपने 90वें जन्मदिवस पर इस विवाद को और स्पष्ट करते हुए कहा था कि उनका उत्तराधिकारी धार्मिक परंपरा के अनुसार चुना जाएगा, और इसमें चीन की कोई भूमिका नहीं होगी। इस बयान ने चीन की बेचैनी और बढ़ा दी।
गौरतलब है कि दलाई लामा 1959 से भारत में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं, जब तिब्बत में चीनी शासन के खिलाफ उनका विद्रोह असफल हुआ था। धर्मशाला स्थित तिब्बती निर्वासित सरकार और करीब 70,000 तिब्बती शरणार्थियों की मौजूदगी भारत को इस मुद्दे पर रणनीतिक बढ़त देती है।
Dalai Lama’s arrival in Ladakh has sparked sharp criticism from China, just ahead of Indian Foreign Minister Jaishankar’s planned China visit. China warned India not to play the “Tibet card” and called the Dalai Lama’s successor issue an internal matter. The growing tension over Tibet continues to act as a diplomatic thorn in India-China relations. With nearly 70,000 Tibetan refugees and the Tibetan government-in-exile based in Dharamshala, India holds significant strategic leverage in the ongoing geopolitical narrative.