AIN NEWS 1: प्रयागराज महाकुंभ में मुस्लिमों के प्रवेश को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। अखाड़ा परिषद ने महाकुंभ में गैर-हिंदुओं की एंट्री रोकने की मांग की है। परिषद के अध्यक्ष और महामंत्री का कहना है कि मेले की पवित्रता और सनातन धर्म की रक्षा के लिए यह जरूरी है। दूसरी ओर, प्रशासन और मुस्लिम समुदाय के लोग इस पर विरोध जता रहे हैं।
विवाद की शुरुआत कैसे हुई?
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने हाल ही में बयान दिया कि मक्का में हिंदुओं को प्रवेश नहीं मिलता, तो महाकुंभ में मुस्लिम क्यों आएं। उन्होंने कहा कि कई मुस्लिम अपना नाम बदलकर दुकानें लगाते हैं और खाने-पीने की चीजों में मिलावट करते हैं। परिषद का कहना है कि ऐसी गतिविधियां सनातन धर्म को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसी वजह से मेले में आधार कार्ड से पहचान की मांग की गई।
अखाड़ा परिषद का पक्ष
अखाड़ा परिषद के महामंत्री हरि गिरि ने कहा कि महाकुंभ में सिर्फ सनातन धर्म के अनुयायियों को ही प्रवेश मिलना चाहिए।
उन्होंने कहा, “कोई भी मुखौटा लगाकर गलत मंशा से महाकुंभ में प्रवेश कर सकता है। इससे हमारी संस्कृति और परंपरा दूषित हो सकती है।”
परिषद ने यह भी मांग की है कि उर्दू और फारसी जैसे शब्दों का उपयोग मेला क्षेत्र में न किया जाए।
मुस्लिम समुदाय का नजरिया
मुस्लिम समुदाय ने इस विवाद पर निराशा जाहिर की है।
गुलाम गौर हबीबी, जो कुंभ में दुकान लगाते थे, ने कहा, “पहले प्रशासन हमें पूरी मदद करता था। लेकिन अब सुनने में आ रहा है कि हमें रोक दिया जाएगा। यह गंगा-जमुनी तहजीब के खिलाफ है।”
मुस्लिम व्यापारी झूले और फूड स्टॉल लगाकर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं। 2013 के कुंभ मेले में लगभग 20% दुकानें मुस्लिम व्यापारियों की थीं।
प्रशासन का रुख
अपर मेला अधिकारी विवेक चतुर्वेदी ने कहा, “यह खबर भ्रामक है। सरकार की ओर से ऐसा कोई आदेश जारी नहीं हुआ है।” प्रशासन ने साफ किया है कि महाकुंभ में सभी के लिए समान नियम लागू होंगे।
इतिहास क्या कहता है?
महाकुंभ का इतिहास हिंदू और मुस्लिम समुदाय के मेल-जोल का गवाह रहा है।
मुगल सम्राट अकबर ने 1565 में प्रयागराज कुंभ मेले में भाग लिया था।
अकबर ने नागा साधुओं को शाही प्रवेश का नेतृत्व करने की अनुमति दी थी।
मुगल काल में कुंभ मेले को प्रशासनिक सहयोग मिलता रहा।
सोशल मीडिया और धार्मिक बयानबाजी
सोशल मीडिया पर इस विवाद ने जोर पकड़ लिया है। कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब मक्का में हिंदू नहीं जा सकते, तो महाकुंभ में मुस्लिम क्यों आएं।
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा, “जो राम को नहीं मानते, उन्हें राम के काम से क्या काम।”
साध्वी प्राची ने कहा, “अगर मक्का-मदीना में गैर-मुस्लिम नहीं जा सकते, तो महाकुंभ में गैर-हिंदुओं को प्रवेश क्यों मिले?”
प्रयागराज की जनसांख्यिकी और कुंभ में मुस्लिमों की भूमिका
प्रयागराज की कुल आबादी 60 लाख है, जिसमें 22% मुस्लिम हैं।
कुंभ मेले में मुस्लिम व्यापारी झूला, फूड स्टॉल और अन्य दुकानें लगाते हैं।
अखाड़ा परिषद के प्रस्ताव और बयान
4 नवंबर को अखाड़ा परिषद ने एक प्रस्ताव पास किया कि महाकुंभ में गैर-सनातनियों का प्रवेश वर्जित होना चाहिए।
अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने कहा, “अगर कोई चाय में थूकेगा, तो उसकी जीभ काट देंगे।”
परिषद ने यह भी कहा कि दुकानों पर मालिक का नाम लिखा जाना चाहिए ताकि संदेह की स्थिति न बने।
क्याकुंभ मेले में मुस्लिमों की एंट्री पर विवाद: अखाड़ा परिषद के बयान, इतिहास और सरकार का रुख कहता है मुस्लिम समुदाय?
मुस्लिम व्यापारी कहते हैं कि कुंभ मेले में उनकी भागीदारी हमेशा रही है।
कई मुस्लिम मानते हैं कि इस विवाद से शहर की गंगा-जमुनी तहजीब प्रभावित हो रही है।
क्या होगा आगे?
सरकार ने अभी तक इस विवाद पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। लेकिन महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन में इस तरह के मुद्दे धार्मिक सद्भाव पर असर डाल सकते हैं।
महाकुंभ हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण आयोजन है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व सभी धर्मों को जोड़ने का रहा है। ऐसे में इस विवाद का समाधान धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने के लिए जरूरी है।