AIN NEWS 1 : महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में कानिफनाथ मंदिर की 40 एकड़ भूमि पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया है। बोर्ड का कहना है कि यह भूमि एक दरगाह के रूप में पंजीकृत है, जबकि मंदिर ट्रस्ट ने इस भूमि के स्वामित्व के लिए ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं, जो ब्रिटिश काल के हैं। इस विवाद ने स्थानीय समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा दिया है और यह मामला अब वक्फ न्यायाधिकरण में पहुंच गया है।
वक्फ बोर्ड का दावा
वक्फ बोर्ड का कहना है कि यह भूमि 2005 में वक्फ अधिनियम के तहत पंजीकृत है। उनका आरोप है कि इस भूमि पर एक दरगाह स्थित है, इसलिए इसे वक्फ के तहत रखा गया है। स्थानीय मुस्लिम निवासियों का कहना है कि यह भूमि उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है।
मंदिर ट्रस्ट की प्रतिक्रिया
मंदिर ट्रस्ट, जिसका नेतृत्व श्रीहरि अम्बेकर कर रहे हैं, ने इस मामले में अपनी बात रखते हुए कई ऐतिहासिक दस्तावेज पेश किए हैं। अम्बेकर का कहना है कि 2005 में कुछ स्थानीय मुस्लिम निवासियों ने वक्फ अधिनियम के प्रावधानों का दुरुपयोग कर इस भूमि को वक्फ को हस्तांतरित करवा लिया। उनके अनुसार, यह भूमि पहले शंकरभाई की पत्नी बीबन को रखरखाव के लिए दी गई थी और इसे वक्फ के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।
विवाद की गहराई
विवाद तब और बढ़ गया जब यह आरोप लगा कि कानिफनाथ मंदिर को ध्वस्त करने और उसे दरगाह में बदलने का प्रयास किया गया। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि मामला वक्फ न्यायाधिकरण में पहुँच गया। न्यायाधिकरण ने आदेश दिया है कि कनिफनाथ मंदिर की संरचना में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, 19 मंदिर ट्रस्टों और ग्राम पंचायत के सदस्यों के वहां जाने पर रोक लगा दी गई है, जिससे स्थिति और भी नाजुक हो गई है।
स्थानीय समुदायों में तनाव
यह विवाद न केवल कानूनी लड़ाई का हिस्सा है, बल्कि इससे धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दे भी उभरे हैं। दोनों पक्षों का कहना है कि उनकी पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए यह लड़ाई जरूरी है। मंदिर ट्रस्ट और वक्फ बोर्ड के बीच चल रही इस कानूनी लड़ाई ने स्थानीय समुदायों में तनाव को बढ़ा दिया है।
निष्कर्ष
इस मामले ने महाराष्ट्र में धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दों को फिर से चर्चा में ला दिया है। सभी पक्षों के लिए यह आवश्यक है कि वे संवाद के माध्यम से समाधान की ओर बढ़ें, ताकि इस विवाद का शांतिपूर्ण हल निकाला जा सके।