AIN NEWS 1 | रायबरेली में एक अजीबो-गरीब घटना सामने आई है, जहां पुलिस की लापरवाही और जल्दबाजी ने एक निर्दोष व्यक्ति को जेल की हवा खिलवा दी। यह घटना उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले की है, जहां एक व्यक्ति 7 लाख रुपये से भरा बैग लेकर पुलिस स्टेशन पहुंचा, लेकिन पुलिस ने उसे ही लुटेरा समझकर जेल में डाल दिया।
घटना का विवरण
गौरव उर्फ दीपू, जो कि रायबरेली के जमुनीपुर चरुहार का निवासी है, को सड़क किनारे एक बैग मिला जिसमें नोट भरे हुए थे। ईमानदारी दिखाते हुए गौरव वह बैग लेकर गदागंज थाने पहुंचा, ताकि इसे पुलिस को सौंप सके। मगर, पुलिस ने बिना जांच किए उसे ही लुटेरा बताकर जेल भेज दिया। गौरव को इस मामले में 12 दिन तक जेल में रखा गया।
स्थानीय विरोध और जांच का खुलासा
ये रायबरेली निवासी गौरव उर्फ दीपू हैं,
इनको रास्ते में 1 बैग मिला,
इसमें 7 लाख रुपए थे।
उसने प्रधान को बताया और ये बैग लेकर थाने पहुंचा।
पुलिस ने उसको ही 8 लाख रुपए की लूट में जेल भेज दिया।
12 दिन बाद वो जेल से छूटा है।दारोगा जी अनुसूचित जाति कोटे से नौकरी पाए हैं। pic.twitter.com/YbobkCALDj
— The Deepak Shukla (@ShieldOfMahadev) September 8, 2024
जब स्थानीय लोगों ने गौरव की गिरफ्तारी के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया, तब वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर मामले की जांच शुरू हुई। जांच में यह खुलासा हुआ कि गौरव लूट में शामिल नहीं था, बल्कि उसने ईमानदारी से बैग पुलिस को सौंपने की कोशिश की थी। पुलिसकर्मियों ने बिना सोचे-समझे और वाहवाही लूटने के चक्कर में गौरव को लूटेरे के तौर पर पेश किया।
गौरव की आपबीती
जेल से रिहा होने के बाद गौरव ने बताया कि उसे बिना किसी कारण जेल में डाल दिया गया था। उसने कहा, “मुझे दो दिन तक थाने में रखा गया और फिर रात के समय जंगल में ले जाकर बैग के साथ मेरा वीडियो रिकॉर्ड किया गया। उसके बाद मुझ पर झूठे आरोप लगाए गए।” गौरव ने यह भी बताया कि वह रास्ते में RO का पानी लेने जा रहे थे, तभी उन्हें बैग मिला। प्रधान के कहने पर वह बैग लेकर थाने पहुंचा था, लेकिन उसे फंसा दिया गया।
पुलिस का बयान
पुलिस का कहना है कि गौरव ने बैग मिलने की सही समय पर जानकारी नहीं दी, इसलिए उसकी भूमिका संदिग्ध मानी गई। पुलिस ने कहा है कि जांच तथ्यों के आधार पर की जा रही है, और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी निर्दोष को सजा न मिले।
यह घटना उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है, जहां बिना जांच के ही निर्दोष व्यक्ति को दोषी बना दिया गया।