AIN NEWS 1 | 1857 की क्रांति भारतीय इतिहास का ऐसा मोड़ था, जिसने न केवल अंग्रेजी सत्ता को मजबूत किया बल्कि मुगल साम्राज्य के अंतिम अवशेषों को भी मिटा दिया। इस बगावत के बाद अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया और रंगून (अब म्यांमार) निर्वासित कर दिया।
दिल्ली का लाल किला, जो कभी मुगलों के वैभव और शाही ठाट-बाट का प्रतीक था, धीरे-धीरे वीरान हो गया। अंग्रेजों ने कई शहजादों और राजकुमारों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। यही वह क्षण था, जिसने मुगल खानदान के पतन और गुमनामी की शुरुआत कर दी।
शाही खून से भीख तक का सफर
बहादुर शाह ज़फर के बेटे मिर्ज़ा जवान बख्त का जन्म लाल किले में हुआ था। वे ऐसे दौर के गवाह बने, जब एक राजकुमार, जो कभी शाही जीवन जीता था, रात के अंधेरे में दिल्ली की गलियों में भीख मांगने को मजबूर हो गया।
अपनी पहचान छुपाने के लिए वे केवल अंधेरे में ही बाहर निकलते और गुमनामी में अपना जीवन गुजारते। यह कहानी बताती है कि किस तरह अंग्रेजों ने न केवल साम्राज्य छीन लिया बल्कि शाही वंशजों को गरीबी और अपमान से भरी जिंदगी जीने पर मजबूर कर दिया।
ख्वाजा हसन निज़ामी की किताब से एक और दर्दनाक किस्सा
प्रसिद्ध साहित्यकार ख्वाजा हसन निज़ामी ने अपनी किताब बेग़मात के आँसू में एक और शहजादे का ज़िक्र किया है। उनका नाम था कमर सुल्तान बहादुर, जिन्हें बहादुर शाह ज़फर का पोता माना जाता है।
कहा जाता है कि जब वे भीख मांगते, तो अक्सर यह दुआ करते –
“या अल्लाह! मुझे इतना अता कर कि मैं सिर्फ अपना भोजन खरीद सकूं।”
उनकी यह दयनीय हालत मुगल साम्राज्य की बर्बादी और उसके वारिसों की बेबसी की सबसे सजीव तस्वीर है।
मिर्ज़ा मुगल और अंग्रेजों की निर्दयता
बहादुर शाह ज़फर के पांचवें पुत्र मिर्ज़ा मुगल का भी अंत बेहद दुखद रहा। 1857 की क्रांति के दौरान उन्हें अंग्रेजों ने पकड़ लिया और बेरहमी से मार डाला। अंग्रेजों का उद्देश्य सिर्फ सत्ता हथियाना नहीं था, बल्कि वे चाहते थे कि मुगल खानदान की पूरी विरासत को ही मिटा दिया जाए।
आज के दौर में मुगल वंशज
आज भारत और पाकिस्तान में कई परिवार खुद को मुगल वंशज बताते हैं। लेकिन इनकी हालत बेहद साधारण और आम लोगों जैसी है।
ज्यादातर वंशज गुमनामी और गरीबी में जिंदगी बिता रहे हैं। उन्हें न तो सरकार की ओर से कोई सहायता मिली और न ही कोई विशेष मान्यता। उनकी पहचान अब केवल इतिहास की किताबों और परिवार की कहानियों तक ही सीमित रह गई है।
शहजादों की ऐतिहासिक भूमिका
मुगल काल में शहजादे सिर्फ उत्तराधिकारी नहीं होते थे, बल्कि महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाते थे।
वे सैन्य अभियानों का नेतृत्व करते थे।
कला, साहित्य और संगीत के संरक्षण में अहम भूमिका निभाते थे।
प्रशासन और दरबार की राजनीति में सक्रिय रहते थे।
लेकिन 1857 की क्रांति के बाद यह परंपरा पूरी तरह टूट गई और मुगल शहजादे इतिहास की गुमनाम परछाइयों में खोकर रह गए।