AIN NEWS 1 | हिंदू धर्मशास्त्रों में ब्रह्मांडीय समय को चार युगों में बांटा गया है — सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। इन युगों के माध्यम से न केवल समय का चक्र दर्शाया गया है, बल्कि यह भी बताया गया है कि धर्म, पाप-पुण्य का संतुलन, और मनुष्य का व्यवहार व क्षमता किस तरह बदलती रही है।
हर युग में धर्म के चार स्तंभ (सत्य, तप, दया और शौच) धीरे-धीरे कमजोर होते गए, जिससे मानव जीवन की गुणवत्ता और समाज का स्वरूप भी प्रभावित हुआ।
सतयुग – धर्म और सत्य का शिखर
यह युग सभी युगों में सबसे पवित्र और शांतिपूर्ण था।
धर्म के चारों स्तंभ – सत्य, तप, दया, और शौच – पूर्ण रूप से मजबूत थे।
समाज छल-कपट, लालच और हिंसा से मुक्त था।
🔹 मानव जीवन की विशेषताएं
औसत ऊंचाई: 32 फीट
जीवनकाल: लगभग 1 लाख वर्ष
पाप: 0%, पुण्य: 100%
🔹 पौराणिक उदाहरण:
भगवान विष्णु ने इसी युग में वराह और नरसिंह अवतार लिए। ऋषि-मुनियों की तपस्या से ब्रह्मांड में सकारात्मक ऊर्जा फैली रहती थी। यह युग पूर्ण धर्म का प्रतीक है।
त्रेतायुग – मर्यादा और कर्तव्य का युग
अब धर्म का एक स्तंभ कमजोर पड़ गया।
विलासिता और भौतिक सुखों की शुरुआत हुई।
समाज में नैतिकता बनी रही, लेकिन स्वार्थ बढ़ने लगा।
🔹 मानव जीवन की विशेषताएं
औसत ऊंचाई: 21 फीट
पाप: 25%, पुण्य: 75%
🔹 पौराणिक उदाहरण:
भगवान श्रीराम ने त्रेतायुग में जन्म लिया और रामायण की कथा इसी युग में घटित हुई। उन्होंने रावण का वध करके धर्म की पुनः स्थापना की। यह युग मर्यादा पुरुषोत्तम के आदर्शों का प्रतीक है।
द्वापरयुग – धर्म-अधर्म का संघर्ष
अब धर्म के केवल दो स्तंभ ही बचे थे।
समाज में छल, युद्ध, ईर्ष्या और स्वार्थ बढ़ गए।
धार्मिकता और अधर्म के बीच सीधा संघर्ष दिखाई देने लगा।
🔹 मानव जीवन की विशेषताएं
औसत ऊंचाई: 11 फीट
पाप: 50%, पुण्य: 50%
🔹 पौराणिक उदाहरण:
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार द्वापरयुग में हुआ। महाभारत का युद्ध और भगवद्गीता का ज्ञान इसी काल की देन हैं। इस युग में पांडवों और कौरवों के बीच धर्म-अधर्म की लड़ाई हुई, जो आज भी जीवन की सीख के रूप में हमारे साथ है।
कलियुग – अंधकार और भौतिकवाद का युग
धर्म का केवल एक स्तंभ बचा है – वह भी डगमगाता हुआ।
लोभ, द्वेष, अधर्म और स्वार्थ ने समाज को घेर लिया है।
व्यक्ति अधिकतर भौतिक सुखों और झूठी चमक-दमक में उलझ गया है।
🔹 मानव जीवन की विशेषताएं
औसत ऊंचाई: 5.5 फीट
पाप: 75%, पुण्य: 25%
मान्यता:
कलियुग में मोक्ष केवल हरि नाम-स्मरण, भक्ति, और सत्कर्मों के माध्यम से संभव है।
धार्मिकता अभी भी समाप्त नहीं हुई है, लेकिन उसका प्रभाव बहुत सीमित हो गया है।
समाज पर युगों का प्रभाव
धार्मिक गिरावट: धर्म के चारों स्तंभ सतयुग से लेकर कलियुग तक क्रमशः कमजोर होते गए।
मानव क्षमताओं में कमी: शरीर की ऊंचाई, जीवनकाल और नैतिक सहनशक्ति में गिरावट आई।
आध्यात्मिकता से भटकाव: पहले जहां ध्यान और तपस्या प्राथमिकता थी, अब भौतिक वस्तुएं और सुख-सुविधाएं केंद्र में हैं।
असमानता और संघर्ष: युद्ध, असंतुलन और सामाजिक द्वंद्व का प्रभाव द्वापरयुग से शुरू होकर कलियुग में चरम पर है।
क्या सिखाते हैं ये युग हमें?
चारों युग हमें यह संदेश देते हैं कि समय चाहे जैसा भी हो, सत्य, दया और तपस्या जैसे गुण कभी नहीं खोने चाहिए।
आज के कलियुग में भी यदि मनुष्य भक्ति, सेवा और ईमानदारी से जीवन जीए, तो वह सतयुग जैसी पवित्रता प्राप्त कर सकता है।
Hindu mythology defines time in four eras: Satyug, Tretayug, Dwaparyug, and Kalyug. Each yug reflects a gradual decline in dharma and a rise in sin. Satyug, with 100% virtue and 32-foot-tall humans, symbolizes purity, while Kalyug, with 75% sin and 5.5-foot-tall humans, represents moral decay. The transitions are vividly captured in epics like Ramayana and Mahabharata. This article presents a comparative study of human height, dharma’s strength, and sin-virtue ratio through the lens of Hindu philosophy.