AIN NEWS 1 | गाजियाबाद के जिला मुख्यालय पर आज एक बड़ा और संवेदनशील घटनाक्रम देखने को मिला, जब वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक समाचार पत्र भारत का बदलता शासन की समाचार संपादक अपूर्वा चौधरी ने पुलिस प्रशासन के खिलाफ आमरण अनशन शुरू कर दिया। उनका आरोप है कि थाना मधुबन बापूधाम की पुलिस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया, उत्पीड़न किया और उनके अधिकारों का हनन किया।
🧾 क्या है पूरा मामला?
27 जून 2025 को अपूर्वा चौधरी अपने वाहन से जुड़ी एक दुर्घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए थाना मधुबन बापूधाम पहुंची थीं। उन्होंने आरोप लगाया कि वहां उन्हें एक दबंग व्यक्ति ने थाना प्रभारी की मौजूदगी में शारीरिक और मानसिक रूप से अपमानित किया, लज्जा भंग करने की कोशिश की और जान से मारने की धमकी दी।
अपूर्वा का कहना है कि पुलिस न केवल मूकदर्शक बनी रही, बल्कि उन्हें थाने से जबरन खींचकर बाहर निकाला गया और शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया गया। पुलिस ने यह भी कहा कि उनकी सोशल मीडिया पोस्ट तुरंत डिलीट की जाए, वरना अंजाम भुगतने होंगे।
📮 शिकायत और प्रशासनिक प्रतिक्रिया
28 जून को अपूर्वा ने इस पूरे मामले की लिखित शिकायत गाजियाबाद के पुलिस आयुक्त को दी। उन्हें आश्वासन दिया गया कि कार्रवाई की जाएगी, लेकिन कई दिनों के बाद भी कोई ठोस कदम न उठाए जाने के कारण उन्होंने 1 जुलाई से आमरण अनशन शुरू करने का फैसला किया।
अपूर्वा चौधरी ने स्पष्ट किया:
“यह लड़ाई सिर्फ मेरे लिए नहीं है, यह हर उस व्यक्ति के लिए है जो पुलिस के अत्याचार का शिकार होता है और न्याय नहीं मिलता। जब तक मेरी मांगें पूरी नहीं होतीं, मैं अपना अनशन जारी रखूँगी, चाहे इसके लिए मुझे अपनी जान क्यों न देनी पड़े।”
📌 अपूर्वा चौधरी की तीन मुख्य मांगें:
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तत्काल निलंबन: थाना प्रभारी और शामिल पुलिसकर्मियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाए।
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निष्पक्ष जांच: मामले की स्वतंत्र, निष्पक्ष और तेज़ जांच की जाए और दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।
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संरक्षण: पत्रकारों और आम नागरिकों के खिलाफ इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस और प्रभावी नीतियाँ बनाई जाएं।
📱 सोशल मीडिया और समाज की प्रतिक्रिया
इस घटना ने सोशल मीडिया पर भी भारी हलचल पैदा कर दी है। पत्रकार समुदाय और नागरिक समाज के कई लोग अपूर्वा चौधरी के समर्थन में सामने आए हैं। ट्विटर और फेसबुक पर #JusticeForApoorva ट्रेंड कर रहा है।
वहीं, कई लोग पुलिस प्रशासन की चुप्पी पर सवाल उठा रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि ऐसे अधिकारियों को सेवा में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।
📢 प्रशासन की चुप्पी और सवाल
अब तक पुलिस आयुक्त कार्यालय की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई है। इस मामले में प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठाए जा रहे हैं। पत्रकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि कार्रवाई नहीं हुई तो वे सामूहिक प्रदर्शन करेंगे।
⚖️ एक पत्रकार की लड़ाई या एक आंदोलन की शुरुआत?
अपूर्वा चौधरी का यह अनशन सिर्फ एक व्यक्तिगत संघर्ष नहीं, बल्कि यह पुलिस व्यवस्था की जवाबदेही, नारी सम्मान, और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक चेतावनी है।
यह सवाल अब पूरे समाज के सामने है — क्या हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक महिला पत्रकार को न्याय मांगने के लिए अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ेगी?
On July 1, 2025, journalist Apoorva Chaudhary, editor of the Hindi daily Bharat Ka Badalta Shasan, began an indefinite hunger strike in Ghaziabad against alleged police misconduct at Madhuban Bapudham police station. She claims police officers misbehaved with her and tried to suppress her voice through threats. Despite submitting a written complaint to the police commissioner, no action was taken, forcing her to protest. The issue has sparked widespread discussion on social media and raised serious concerns about press freedom and police accountability in India.