AIN NEWS 1 | सर्व समाज गाज़ियाबाद के बैनर तले सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 को श्री ठाकुरद्वारा मंदिर, हापुड़ मोड़, गाज़ियाबाद में एक महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता का आयोजन किया गया। इस वार्ता का उद्देश्य था — धर्म स्वतंत्रता कानून (Freedom of Religion Act) के समर्थन में समाज की एकजुटता और जन-जागरूकता को बढ़ाना।
कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वामी जीवन ऋषि महाराज (नाथ संप्रदाय) ने की। इस अवसर पर अनेक धार्मिक और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि, संतगण और नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
स्वामी जीवन ऋषि महाराज का वक्तव्य — “भारत धर्मनिष्ठ भूमि है”
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए स्वामी जीवन ऋषि महाराज ने कहा —
“भारत एक धर्मनिष्ठ भूमि है, जहाँ सनातन परंपराएँ हमारी पहचान और संस्कृति की आत्मा हैं। धर्म स्वतंत्रता कानून समाज में बढ़ते अवैध धर्मांतरण के प्रयासों पर नियंत्रण लगाने के लिए एक आवश्यक कदम है। यह कानून किसी धर्म के विरोध में नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक अखंडता और आध्यात्मिक संतुलन की रक्षा के लिए लाया गया है।”
स्वामी महाराज ने आगे कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रत्येक नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता दी गई है — जिसमें न केवल धर्म परिवर्तन का अधिकार शामिल है, बल्कि अपने धर्म में सुरक्षित रहने की भी स्वतंत्रता निहित है।
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यदि धर्मांतरण छल, बल या प्रलोभन के आधार पर किया जा रहा है, तो यह व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है और समाज की सांस्कृतिक अस्मिता पर सीधा प्रहार है।
धर्म स्वतंत्रता कानून: आस्था नहीं, सुरक्षा की गारंटी
स्वामी जीवन ऋषि महाराज ने अपने वक्तव्य में कहा कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में लागू किए गए धर्म-स्वातंत्र्य कानून किसी की आस्था छीनने के लिए नहीं हैं, बल्कि नागरिकों को दबाव-मुक्त धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में बनाए गए हैं।
उन्होंने बताया कि इस कानून का उद्देश्य किसी धर्म विशेष पर प्रतिबंध नहीं, बल्कि उन ताकतों पर नियंत्रण है जो धोखे, पैसे या लालच के बल पर धर्म परिवर्तन करा समाज में असंतुलन पैदा कर रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती को बताया षड्यंत्र
स्वामी महाराज ने यह भी कहा कि धर्म-स्वातंत्र्य कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना एक सुनियोजित षड्यंत्र है, जिसका उद्देश्य भारत की मूल संस्कृति, परंपरा और सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करना है।
उन्होंने कहा —
“आज समय आ गया है कि समाज इन षड्यंत्रों को पहचाने। यह केवल एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि भारतीयता की आत्मा की रक्षा का विषय है।”
महाराज ने यह भी बताया कि जो शक्तियाँ भारत के सनातन मूल्यों को कमजोर करना चाहती हैं, वे इस कानून के खिलाफ माहौल बनाकर भारतीय संस्कृति को विखंडित करने की कोशिश कर रही हैं।
समाज से एकजुट होने का आवाहन
स्वामी जीवन ऋषि महाराज ने सर्व समाज गाज़ियाबाद से आग्रह किया कि सभी वर्ग, जाति, धर्म और पंथ से ऊपर उठकर इस कानून के समर्थन में आगे आएँ।
उन्होंने कहा कि यह आंदोलन केवल हिंदू समाज का नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज का है, जो अपनी सांस्कृतिक एकता और परंपरा की रक्षा के लिए समर्पित है।
उनके अनुसार —
“धर्म स्वतंत्रता कानून केवल हिंदू समाज की रक्षा का साधन नहीं, बल्कि भारतीयता की आत्मा को सुरक्षित रखने का एक संकल्प है।”
11 अक्टूबर को होगा विशाल प्रदर्शन
प्रेस वार्ता के अंत में सर्व समाज गाज़ियाबाद ने घोषणा की कि आगामी 11 अक्टूबर 2025 को गाज़ियाबाद में एक विशाल प्रदर्शन आयोजित किया जाएगा।
इस प्रदर्शन में पूरे जिले के प्रमुख क्षेत्रों — लोनी, खोड़ा, इंदिरापुरम, मोदीनगर और मुरादनगर — से पूज्य संत, सामाजिक कार्यकर्ता और धर्मनिष्ठ नागरिक शामिल होंगे।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य होगा समाज में धर्म स्वातंत्र्य कानून की सही समझ को फैलाना और लोगों को यह बताना कि यह कानून भारत के आध्यात्मिक ताने-बाने की रक्षा के लिए जरूरी है।
धर्म, संस्कृति और भारतीयता की एकता पर बल
इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि धर्मांतरण के नाम पर समाज में विभाजन पैदा करने वाली ताकतों को रोकना आवश्यक है।
भारत की विविधता उसकी शक्ति है, और यही विविधता तब तक जीवित रह सकती है जब तक धर्म और संस्कृति पर हमला नहीं होता।
कार्यक्रम में उपस्थित संतों ने एक स्वर में कहा कि धर्म की स्वतंत्रता तभी सार्थक है, जब वह छल-कपट और लालच से मुक्त हो।
उन्होंने समाज से आवाहन किया कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए जागरूकता फैलाएँ और धर्मांतरण के विरोध में एकजुट होकर खड़े हों।
गाज़ियाबाद में आयोजित यह प्रेस वार्ता एक स्पष्ट संदेश लेकर आई —
भारत की आत्मा उसकी संस्कृति और सनातन परंपराओं में बसती है, और इनकी रक्षा करना हर नागरिक का नैतिक कर्तव्य है।
धर्म स्वतंत्रता कानून का समर्थन केवल एक कानूनी विषय नहीं, बल्कि भारतीय समाज की आध्यात्मिक स्वाधीनता की घोषणा है।
आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर समाज की एकजुटता और जनसहभागिता यह तय करेगी कि भारत अपनी सांस्कृतिक पहचान को कितना सशक्त रूप से बचा सकता है।