तारीख: 12 फरवरी 2016
जगह: मय्यड़ गांव, हिसार, हरियाणा
जाट आरक्षण आंदोलन की शुरुआत:
12 फरवरी 2016 को मय्यड़ गांव में अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के नेता हवा सिंह सांगवान के नेतृत्व में एक बैठक हुई। बैठक में जाट समुदाय के लिए आरक्षण की मांग उठाई गई। हरियाणा सरकार के कृषि मंत्री ओपी धनखड़, जो खुद जाट समुदाय से आते थे, आंदोलनकारियों को समझाने पहुंचे। उन्होंने आरक्षण पर फैसला लेने के लिए 31 मार्च तक का समय मांगा, जिससे 13 फरवरी की रात आंदोलन थम गया।
सांपला में दूसरी बैठक:
14 फरवरी 2016 को रोहतक के सांपला में एक सर्व खाप पंचायत की बैठक हुई, जिसमें पूरे राज्य से जाट जुटे। ओपी धनखड़ इस बार जाटों को मनाने में नाकाम रहे और प्रदर्शनकारी रोहतक-दिल्ली नेशनल हाईवे जाम कर दिया। आंदोलन ने जल्द ही झज्जर, सोनीपत, भिवानी सहित हरियाणा के आठ जिलों में जोर पकड़ लिया।
हिंसा का फैलाव:
17 फरवरी तक आंदोलन शांतिपूर्ण था। हरियाणा सरकार ने सर्व खाप पंचायत के बड़े नेताओं को बातचीत के लिए चंडीगढ़ बुलाया। बातचीत विफल रही और आंदोलन की बागडोर युवा जाट नेताओं के हाथों में चली गई। 18 फरवरी को रोहतक और भिवानी में ’35 बिरादरी संघर्ष समिति’ ने आंदोलन के विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिससे जाट और गैर-जाटों के बीच तनाव बढ़ गया।
तीन अफवाहें और हिंसा की शुरुआत:
19 फरवरी को सोशल मीडिया पर तीन अफवाहें तेजी से फैलीं, जिनसे आंदोलन हिंसक हो गया:
- रोहतक में जाट युवाओं पर गैर-जाटों ने हमला किया और छोटूराम की मूर्ति तोड़ी।
- महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के गेट पर पुलिस ने जाट युवाओं पर लाठीचार्ज और फायरिंग की।
- सिख लड़कों ने कई जगहों पर जाट नौजवानों के साथ मारपीट की।
अफवाहों के बाद हिंसा:
अफवाहें फैलने के बाद रोहतक के अशोका चौक पर हिंसा भड़क उठी। जाट युवाओं की एक टोली को गैर-जाट व्यापारियों ने पीटकर अधमरा कर दिया। इसके बाद जाटों ने रोहतक में उत्पात मचाना शुरू कर दिया और वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु सिंह के घर पर हमला कर दिया।
सेना का हस्तक्षेप और गोलीबारी:
21 फरवरी को सेना को हालात संभालने के लिए फायरिंग की अनुमति मिली। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी के बावजूद आगे बढ़ना जारी रखा, जिससे सेना ने फायरिंग की, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई।
राजनीतिक परिणाम:
जाट आंदोलन के बाद भाजपा ने हरियाणा में जाटों को राजनीतिक रूप से न्यूट्रल करने की रणनीति बनाई। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जाट-गैर-जाट राजनीति के जरिए 40 सीटें जीतीं, लेकिन जाट नेता हार गए। भाजपा ने जाटों को दरकिनार कर बाकी समुदायों पर फोकस किया, जिससे वह सत्ता में बनी रही।
निष्कर्ष:
जाट आरक्षण आंदोलन ने हरियाणा की राजनीति और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा प्रभाव डाला। भाजपा ने इस