AIN NEWS 1: 1924 में प्रयाग में अर्धकुंभ के दौरान ब्रिटिश सरकार ने संगम में स्नान पर रोक लगाई। यह निर्णय फिसलन और संभावित दुर्घटनाओं से बचने के लिए लिया गया था। इस पर मदन मोहन मालवीय ने विरोध जताते हुए जल सत्याग्रह शुरू किया। उनकी दृढ़ता देखकर जवाहरलाल नेहरू भी सत्याग्रह में शामिल हो गए।
नेहरू ने अपनी आत्मकथा ‘मेरी कहानी’ में लिखा है, “संगम पहुंचने पर देखा कि पुलिस ने रास्ता रोकने के लिए लकड़ियों का घेरा बना रखा था। हमने धरना दिया। फिर घेरा पार कर गंगा में डुबकी लगाई। मालवीय जी अंत तक सत्याग्रह पर डटे रहे। उनके गंगा में कूदते ही पूरा मेला संगम में डुबकी लगाने उमड़ पड़ा। ब्रिटिश सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।”
अंग्रेजों का कुंभ से कमाई का खेल
🌟 प्रेरणादायक विचार
“आपकी मेहनत ही आपकी सबसे बड़ी ताकत है, इसे आजमाने से कभी न डरें।”
📰 आज के मॉर्निंग न्यूज़ ब्रीफ में आप पढ़ेंगे:
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Morning News Brief : IPL 21 मार्च से; केजरीवाल बोले- केंद्र झुग्गीवालों को मकान दे, चुनाव लड़ना छोड़ दूंगा; मोदी बोले- मैं युवाओं का परम मित्र
1801 में इलाहाबाद पर अंग्रेजों का कब्जा होने के बाद कुंभ मेले को आय का साधन बना दिया गया। तीर्थयात्रियों पर टैक्स लगाया गया। 1894 और 1906 के कुंभ में विभिन्न सेवाओं पर वसूला गया टैक्स निम्नलिखित था:
बाल और दाढ़ी कटाने पर टैक्स: नाइयों ने 10,000 से अधिक रुपये चुकाए।
गाय और बछड़ा दान पर टैक्स: गाय दान पर 152-176 रुपये, बछड़ा दान पर 976-1098 रुपये।
दूध और फूल पर टैक्स: दूध पर 700-1,000 रुपये, फूल बेचने वालों से 1,600 रुपये।
फेरीवालों और गाड़ी वालों से टैक्स: 1,000-3,000 रुपये तक।
चांदी के कलश में लंदन भेजा गया गंगाजल
1827-1833 के दौरान अंग्रेज कस्टम अधिकारी की पत्नी फेनी पाकर्स ने अपनी किताब में लिखा कि कुंभ के दौरान कई महिलाएं गंगा में अपनी पहली संतान को भेंट करने का वचन देती थीं।
1902 में जयपुर के महाराजा माधव सिंह द्वितीय ने अपने जहाज ओलंपिया से 8,000 लीटर गंगाजल चांदी के कलशों में भरकर लंदन भेजा। यह गंगाजल उनके धार्मिक और सामाजिक आयोजनों के लिए इस्तेमाल होता था।
अंग्रेजों के दौर की सुरक्षा और व्यवस्थाएं
अंग्रेजी हुकूमत कुंभ मेले को संगठित करने में गंभीर थी।
लूट-मार से बचाव: तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए विशेष सराय बनाई जाती थीं।
नियम और इश्तेहार: 1870 में फरमान जारी हुआ कि कोई भी अजनबी शिविर में न ठहरे।
सफाई व्यवस्था: हर वॉशरूम के पास मरक्यूरिक परक्लोराइड के घड़े रखे जाते थे।
पुलिस की परीक्षा: कुंभ की ड्यूटी के लिए अधिकारियों को परीक्षा देनी होती थी।
साधुओं का संघर्ष: रातों-रात खोदे कुएं
1918 के कुंभ में साधु-संतों ने पानी की कमी की शिकायत की। जब अंग्रेजों ने कुआं खोदने की अनुमति नहीं दी, तो अखाड़ों ने रातों-रात कुएं खोद दिए। अंग्रेजों ने इन्हें बंद करवा दिया।
नागा साधुओं पर ईसाई अफसरों की आपत्ति
1888 में ब्रिटिश अखबार मख्ज़ान-ए-मसीही में नागा साधुओं की शोभायात्रा को लेकर एक रिपोर्ट छपी। इसमें उनके नग्न प्रदर्शन को “अश्लील” कहा गया। ईसाई संगठनों ने इसे रोकने की मांग की। ब्रिटिश सरकार ने जवाब दिया, “नागा साधु हिंदू समाज में पवित्र माने जाते हैं। हम धार्मिक परंपराओं में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।”
महामारियों से लड़ाई: अंग्रेजों के प्रयास
1906 के कुंभ में हैजा फैलने पर सरकार ने चार अस्पताल बनाए।
मुख्य अस्पताल में 100 बेड और अन्य तीन में 25-25 बेड थे।
हैजा से 281 मरीजों में से 207 की मौत हुई।
1918 के कुंभ में महामारी नियंत्रण के लिए विशेष दवाइयों और चिकित्सा उपकरणों की व्यवस्था की गई।
कुंभ मेले का इतिहास न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत के दौर में जनता के संघर्ष और शासन की रणनीतियों को भी उजागर करता है। गंगा के प्रति श्रद्धा, संगम पर स्नान का महत्व, और साधु-संतों का समर्पण कुंभ को आज भी अनूठा बनाता है।