Saturday, November 23, 2024

Hyper Sensitive: क्या हाइपर सेंसिटिविटी बीमारी है या सिर्फ मन का भ्रम?

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AIN NEWS 1 | कुछ लोग सामान्य से अधिक संवेदनशील होते हैं, छोटी-छोटी बातों पर परेशान हो जाते हैं या बार-बार बीमार पड़ते हैं। इस व्यवहार को साइकोलॉजिकल टर्म में ‘हाइपर सेंसिटिव’ कहा जाता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, हाइपर सेंसिटिव लोग किसी भी चीज को गहराई से समझने और महसूस करने की कोशिश करते हैं। हालांकि, जब संवेदनशीलता अत्यधिक बढ़ जाती है, तो यह जीवन को नेगेटिव रूप से प्रभावित करने लगती है। सवाल यह उठता है कि क्या हाइपर सेंसिटिविटी एक बीमारी है?

हाइपर सेंसिटिविटी: बीमारी या स्वाभाविक गुण?

डॉक्टर्स का कहना है कि यह एक स्वाभाविक नेचर हो सकता है, लेकिन जब इस तरह का व्यवहार सोशल, प्रोफेशनल, या व्यक्तिगत जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगे, तो यह एक बीमारी का रूप ले सकता है। ऐसे लोग संबंध बनाने और काम करने में कठिनाइयों का सामना करते हैं।

क्यों होता है कोई इतना सेंसिटिव?

डॉक्टर्स के अनुसार, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं:

  1. तनाव: लगातार मानसिक तनाव या चिंता में रहने वाले लोग अधिक सेंसिटिव हो जाते हैं।
  2. पारिवारिक माहौल: यदि किसी का पारिवारिक माहौल नकारात्मक हो, जैसे केवल अभाव की बातें हों या एक-दूसरे पर तंज कसा जाता हो, तो यह व्यक्ति को अत्यधिक संवेदनशील बना सकता है।
  3. जिम्मेदारियों का बोझ: अत्यधिक जिम्मेदारियां भी किसी को अधिक सेंसिटिव बना सकती हैं।

क्या पढ़ाई का अधिक होना सेंसिटिविटी को बढ़ाता है?

अक्सर कहा जाता है कि अधिक पढ़ाई करने वाले लोग संवेदनशील हो जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे किसी विषय को गहराई से समझने और देखने की क्षमता रखते हैं। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि पढ़ाई बेकार है। यह संवेदनशीलता का सिर्फ एक पक्ष हो सकता है।

क्या जिम्मेदारियों से भी सेंसिटिव बिहेवियर विकसित होता है?

जिन लोगों पर हाई पोस्ट या अच्छे रिजल्ट की जिम्मेदारी होती है, उन पर साइकोलॉजिकल दबाव बढ़ता है, जो उन्हें सेंसिटिव बना सकता है। इसके अलावा, जिन बच्चों को बचपन में माता-पिता का अधिक प्यार मिला होता है, वे भी आगे चलकर ज्यादा सेंसिटिव हो सकते हैं। ऐसे लोगों में अक्सर ओवरथिंकिंग और अन्य मानसिक समस्याएं देखी जाती हैं।

नतीजा

हाइपर सेंसिटिविटी अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, लेकिन जब यह जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करने लगे, तो इसे मैनेज करना जरूरी हो जाता है। बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए इस संवेदनशीलता को समझना और इससे निपटने के उपायों को अपनाना जरूरी है।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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