AIN NEWS 1 | भारत सदियों से विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और परंपराओं का संगम रहा है। यही विविधता इस देश की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है। लेकिन हाल ही में सोशल मीडिया और सार्वजनिक जगहों पर उभरा ‘आई लव मुहम्मद’ नारा देश में सामाजिक तनाव और अस्थिरता का कारण बनता दिखाई दे रहा है। 4 सितंबर 2025 को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के अवसर पर उत्तर प्रदेश के कानपुर में शुरू हुआ यह नारा अब कई शहरों तक फैल गया है और राष्ट्रीय एकता के लिए चिंता का विषय बन गया है।
ट्रेंड की शुरुआत: आस्था या उकसावा?
कानपुर में जुलूस के दौरान कुछ युवाओं ने पोस्टर और बैनर के माध्यम से ‘आई लव मुहम्मद’ नारा दिया। सोशल मीडिया पर यह तेजी से वायरल हुआ और बरेली, गुजरात, कर्नाटक और हैदराबाद जैसे अन्य शहरों में इसके समर्थन और विरोध में प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों के दौरान पथराव, लाठीचार्ज और गिरफ्तारियों की घटनाएं भी सामने आईं।
समर्थकों का मानना है कि यह नारा उनकी धार्मिक आस्था का प्रतीक है, जबकि आलोचक इसे सामाजिक सद्भाव को भंग करने वाला और उकसावे वाला कदम मानते हैं।
इस ट्रेंड के पीछे की वास्तविकता
यह नारा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो और पोस्टर अन्य समुदायों के प्रति नकारात्मक भावना बढ़ा रहे हैं। कुछ राजनेता इसे वोट बैंक की राजनीति के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे यह एक धार्मिक आंदोलन से ज्यादा साम्प्रदायिक तनाव का हथियार बन गया है।
‘आई लव मुहम्मद’ नारे की प्रमुख समस्याएँ
धार्मिक संवेदनशीलता पर असर
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां सभी धर्मों का समान सम्मान होता है। यह नारा विशेष धर्म की आस्था को बल देता है, जिससे अन्य समुदायों में असुरक्षा और असंतोष की भावना पैदा होती है। सार्वजनिक स्थानों पर इसका जोर-जोर से प्रचार सामाजिक तनाव बढ़ा रहा है।युवाओं का गलत दिशा में जाना
मुख्य रूप से युवा, खासकर मुस्लिम समुदाय के युवा, इस ट्रेंड से प्रभावित हो रहे हैं। इसे ‘इस्लामिक जेन जेड’ आंदोलन के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। इससे युवा शिक्षा, रोजगार और विकास के बजाय धार्मिक उन्माद की ओर बढ़ रहे हैं, जो उनके भविष्य और देश की प्रगति के लिए हानिकारक है।हिंसा और अशांति का बढ़ना
कानपुर, बरेली और गुजरात जैसे शहरों में इस नारे की वजह से हिंसक प्रदर्शन हुए हैं। पथराव, तोड़फोड़ और पुलिस कार्रवाई ने आम जनजीवन को प्रभावित किया है। यह भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धार्मिक वैमनस्य फैलाने) का उल्लंघन भी कर सकता है।
यह नारा क्यों गलत है?
धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन
भारत के संविधान के अनुसार सभी धर्मों को समान अधिकार हैं। इस तरह का नारा विशेष धर्म को ऊपर रखने का प्रयास करता है, जो अन्य समुदायों को अलग-थलग करता है और समाज में तनाव पैदा करता है।सामाजिक सद्भाव पर असर
यह नारा हिंदू-मुस्लिम संबंधों को कमजोर कर रहा है। सोशल मीडिया पर समर्थन और विरोध में बढ़ती बहस लोगों को धार्मिक आधार पर बाँट रही है।राजनीतिक दुरुपयोग
कई राजनेता इसे वोट बैंक बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। आस्था की बजाय यह सत्ता की राजनीति का हथियार बन गया है, जो समाज में और अधिक विभाजन पैदा कर रहा है।
राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव
यह नारा देश की एकता को गहरा नुकसान पहुँचा रहा है। भारत की ताकत उसकी विविधता में है, लेकिन इस तरह के नारों से सामाजिक दीवारें खड़ी हो रही हैं।
साम्प्रदायिक तनाव बढ़ना
कानपुर से शुरू होकर कई शहरों में फैल चुके प्रदर्शन समाज में अविश्वास और डर पैदा कर रहे हैं।आर्थिक और सामाजिक नुकसान
हिंसक प्रदर्शन व्यापार, पर्यटन और दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। बाजार बंद होने और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान से आर्थिक हानि हो रही है।भविष्य की पीढ़ियों पर असर
युवाओं को धार्मिक उन्माद की ओर धकेलना आने वाली पीढ़ियों को विभाजन की मानसिकता के साथ बढ़ा सकता है। यह देश के दीर्घकालिक विकास के लिए खतरा है।
समाधान की दिशा
कानूनी कार्रवाई: उकसावे वाले नारों और हिंसक प्रदर्शन पर रोक।
सामुदायिक जागरूकता: सभी धर्मों के लोगों को मिलकर राष्ट्रीय एकता के संदेश फैलाने की पहल।
सोशल मीडिया नियंत्रण: हिंसा और साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वाली सामग्री को हटाने के लिए प्लेटफॉर्म्स को जिम्मेदार बनाना।
‘आई लव मुहम्मद’ नारा देश में सामाजिक तनाव बढ़ा रहा है और एकता को कमजोर कर रहा है। आस्था व्यक्तिगत होनी चाहिए, न कि विभाजन का कारण। हमें ‘आई लव इंडिया’ जैसे नारे अपनाकर देश को एकजुट रखना चाहिए।