AIN NEWS 1 | पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रही है। हालात ऐसे हो गए हैं कि अपने देश को दिवालियापन से बचाने के लिए शहबाज शरीफ सरकार को इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) के सामने बार-बार मदद की गुहार लगानी पड़ रही है। आईएमएफ से लोन तो मिल रहा है, लेकिन इसके बदले में सख्त शर्तें भी लगाई जा रही हैं।
ताज़ा रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईएमएफ ने पाकिस्तान सरकार को साफ-साफ निर्देश दिया है कि वह तुरंत स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (SBP) के बोर्ड से फाइनेंस सेक्रेटरी को हटा दे। यही नहीं, IMF ने यह भी कहा है कि सेंट्रल बैंक में खाली पड़े डिप्टी गवर्नर के पदों को तुरंत भरा जाए और बैंकिंग सेक्टर में बड़े सुधार लागू किए जाएं।
IMF की शर्तें – पाकिस्तान पर कड़ा दबाव
आईएमएफ ने पाकिस्तान सरकार से कहा है:
फाइनेंस सेक्रेटरी को SBP बोर्ड से हटाया जाए।
दोनों खाली पड़े डिप्टी गवर्नर पद तुरंत भरे जाएं।
1962 के बैंकिंग कंपनियां अध्यादेश में संशोधन किया जाए, ताकि पाकिस्तान की संघीय सरकार को वाणिज्यिक बैंकों का निरीक्षण करने का अधिकार न रहे।
IMF का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि पाकिस्तान का सेंट्रल बैंक सरकार के दबाव से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से काम कर सके।
पाकिस्तान को क्यों देनी पड़ रही है IMF की शर्तें?
पाकिस्तान वर्तमान में IMF के 7 अरब डॉलर के लोन प्रोग्राम को लागू कर रहा है। इस प्रोग्राम के तहत IMF किस्तों में फंड जारी करता है, लेकिन शर्त यह है कि पाकिस्तान हर बार सुधारों के वादे को पूरा करे।
अगली किस्त के तौर पर पाकिस्तान को करीब 1 अरब डॉलर मिलने हैं। लेकिन यह राशि तभी जारी होगी जब पाकिस्तान IMF की इन नई शर्तों का पालन करेगा।
IMF फाइनेंस सेक्रेटरी को क्यों हटाना चाहता है?
साल 2022 में IMF के दबाव के बाद पाकिस्तान सरकार ने SBP को स्वायत्तता दी थी और फाइनेंस सेक्रेटरी के वोटिंग अधिकार छीन लिए थे। इसके बावजूद वे SBP बोर्ड के सदस्य बने हुए हैं। IMF का मानना है कि उनकी मौजूदगी सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता को कमजोर करती है और नीतिगत फैसलों में सरकारी दखल बढ़ाती है।
IMF चाहता है कि SBP पूरी तरह से एक स्वतंत्र संस्था बने, जो राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर सिर्फ आर्थिक स्थिरता और मौद्रिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित कर सके।
डिप्टी गवर्नर पद क्यों हैं अहम?
फिलहाल SBP में तीन डिप्टी गवर्नर पदों में से दो खाली पड़े हैं। IMF का कहना है कि इतनी बड़ी संस्थान में लंबे समय तक शीर्ष पद खाली रहना नीतिगत फैसलों और बैंकिंग सुधारों को प्रभावित करता है। यही कारण है कि IMF ने साफ चेतावनी दी है कि इन पदों पर नियुक्ति तुरंत की जाए।
सितंबर में होने वाला IMF का अगला मिशन
रिपोर्ट्स के मुताबिक, IMF का अगला समीक्षा मिशन सितंबर के तीसरे हफ्ते में पाकिस्तान पहुंच सकता है। इस दौरान IMF यह जांच करेगा कि पाकिस्तान ने उसकी शर्तों पर कितना अमल किया है। अगर सुधारों में ढिलाई पाई गई तो पाकिस्तान को अगली किस्त रोककर बड़ा झटका दिया जा सकता है।
पाकिस्तान की मुश्किलें क्यों बढ़ रहीं हैं?
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार बेहद कम है।
महंगाई दर रिकॉर्ड स्तर पर है।
राजनीतिक अस्थिरता के कारण सुधारों की प्रक्रिया बार-बार अटक रही है।
IMF के दबाव में पाकिस्तान को पेट्रोल-डीजल की कीमतें और टैक्स लगातार बढ़ाने पड़ रहे हैं।
इन सब वजहों से आम जनता पर बोझ और बढ़ रहा है, लेकिन सरकार के पास IMF की शर्तें मानने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।
पाकिस्तान और IMF के बीच यह खींचतान दिखाती है कि जब किसी देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कर्ज पर निर्भर हो जाती है, तो उसकी नीतियां और फैसले भी बाहरी ताकतों के हाथों में चले जाते हैं। अब देखना यह होगा कि शहबाज शरीफ सरकार IMF की शर्तों पर कितना अमल करती है और क्या पाकिस्तान अपनी डगमगाती अर्थव्यवस्था को संभाल पाता है या नहीं।