AIN NEWS 2 | अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कूटनीति और ऊर्जा नीति को लेकर हाल ही में एक बड़ा विवाद सामने आया। NATO महासचिव मार्क रुटे ने यह दावा किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर रूस का तेल खरीदने को लेकर टैरिफ लगाने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन संकट पर उनकी रणनीति समझने के लिए फोन पर बातचीत की थी।
लेकिन भारत सरकार ने इस दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया है। विदेश मंत्रालय ने इसे “बेबुनियाद और पूरी तरह निराधार” बताया और कहा कि इस तरह के दावे न केवल गलतफहमियां पैदा करते हैं, बल्कि भारत की छवि को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
विदेश मंत्रालय का सख्त बयान
विदेश मंत्रालय ने साफ शब्दों में कहा कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच इस तरह की कोई फोन वार्ता कभी हुई ही नहीं। मंत्रालय ने जोर दिया कि इस दावे का कोई आधार नहीं है और यह पूरी तरह कल्पना पर आधारित है।
मंत्रालय ने साथ ही NATO जैसी संस्था से अपेक्षा जताई कि वे सार्वजनिक मंच से बयान देते समय अधिक जिम्मेदारी और सटीकता का पालन करें। उन्होंने कहा कि इस तरह की “कथित बातचीत” को सच मान लेना अस्वीकार्य है।
विदेश मंत्रालय का कहना है कि ऐसे बयानों से न केवल भारत के प्रधानमंत्री की छवि प्रभावित होती है, बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अनावश्यक भ्रम भी पैदा होता है।
भारत की ऊर्जा नीति पर मंत्रालय का रुख
विदेश मंत्रालय ने इस मौके पर भारत की ऊर्जा नीति को लेकर भी स्पष्ट संदेश दिया। मंत्रालय ने कहा कि भारत अपने ऊर्जा आयात के फैसले राष्ट्रीय हित और आर्थिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए करता है।
भारत का मानना है कि उसके नागरिकों के लिए सस्ती और भरोसेमंद ऊर्जा सुनिश्चित करना प्राथमिकता है। यही कारण है कि भारत तेल और गैस से जुड़े फैसले अपने आर्थिक हितों को ध्यान में रखते हुए करता रहेगा, न कि बाहरी दबाव के आधार पर।
क्यों उठा यह विवाद?
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब NATO महासचिव मार्क रुटे ने यह बयान दिया कि भारत और रूस के बीच यूक्रेन पर चर्चा हुई थी। उनका दावा था कि यह बातचीत उस समय हुई जब अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीदने के कारण टैरिफ लगाने का फैसला किया था।
लेकिन भारत ने तुरंत इस बयान को खारिज कर दिया और कहा कि यह दावा न केवल तथ्यहीन है, बल्कि कूटनीतिक शिष्टाचार के खिलाफ भी है।
भारत और रूस के रिश्तों का संदर्भ
भारत और रूस दशकों से एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार रहे हैं। रक्षा, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग में दोनों देशों के संबंध मजबूत हैं। हालांकि यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने हमेशा कहा कि उसका निर्णय केवल उसके राष्ट्रीय हित और ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लिया जाएगा।
भारत ने बार-बार दोहराया है कि वह किसी भी एक पक्ष के दबाव में नहीं आएगा और अपनी नीतियां स्वतंत्रता और रणनीतिक स्वायत्तता के आधार पर तय करेगा।
NATO पर सवाल
भारत ने NATO जैसी अहम अंतरराष्ट्रीय संस्था से अपेक्षा जताई कि वे बिना प्रमाण के बयान देने से बचें। विदेश मंत्रालय का कहना है कि जब NATO के स्तर का कोई नेता ऐसा दावा करता है, तो इसका असर वैश्विक स्तर पर पड़ता है।
भारत ने चेतावनी दी कि इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना बयान भविष्य में कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।
भारत का दो टूक संदेश
भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि:
प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन के बीच कथित फोन कॉल की खबरें पूरी तरह झूठी और निराधार हैं।
भारत अपनी ऊर्जा नीति और आयात से जुड़े फैसले केवल अपने राष्ट्रीय हित और आर्थिक सुरक्षा के आधार पर करेगा।
किसी भी बाहरी दबाव या दावे का असर भारत की नीतियों पर नहीं पड़ेगा।
NATO जैसे संगठनों को सार्वजनिक मंच पर बयान देते समय जिम्मेदारी और पारदर्शिता का पालन करना चाहिए।
विशेषज्ञों की राय
कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस विवाद से यह संदेश जाता है कि भारत किसी भी प्रकार के दबाव में आने को तैयार नहीं है। चाहे वह अमेरिका हो, NATO हो या कोई अन्य देश, भारत अपनी विदेश नीति और ऊर्जा नीति को स्वतंत्र रूप से संचालित करता रहेगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस घटना ने भारत की छवि को और मजबूत किया है कि वह एक स्वतंत्र वैश्विक शक्ति है जो अपने फैसले खुद लेती है।



















