AIN NEWS 1: भारत इस समय एक गंभीर आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है, जिसे सबप्राइम कर्ज संकट कहा जा रहा है। सबप्राइम लोन वे कर्ज होते हैं, जो उन लोगों को दिए जाते हैं जिनकी क्रेडिट हिस्ट्री कमजोर होती है या जिनकी आय का कोई स्थायी और दस्तावेजी प्रमाण नहीं होता। महामारी के बाद जिस तरह माइक्रोफाइनेंस नियमों में बदलाव किए गए और लोन लेना आसान हुआ, उसी अनुपात में कर्ज चुकाने की दर घटती गई।
68% परिवार लोन चुकाने में असमर्थ
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 68% परिवार लोन की किस्त समय पर नहीं चुका पा रहे हैं। यह स्थिति इस बात का संकेत है कि देश में एक बड़ा वित्तीय बुलबुला बन चुका है, जो कभी भी फट सकता है। यह संकट न सिर्फ उधार लेने वालों के लिए, बल्कि निवेशकों और वित्तीय संस्थानों के लिए भी खतरे की घंटी है।
सबप्राइम लोन और उनका जोखिम
सबप्राइम लोन वे होते हैं जिन्हें कम क्रेडिट स्कोर वाले या बिना स्थायी आमदनी वाले लोगों को दिया जाता है। भारत जैसे देश में, जहां 90% से ज्यादा लोग अनौपचारिक रोजगार में हैं, वहां ऐसे लोन की मांग बहुत अधिक है। खासकर ग्रामीण इलाकों में लोग नकद लेनदेन करते हैं, जिससे उनकी आय और खर्च का लेखाजोखा रखना मुश्किल हो जाता है।
माइक्रोफाइनेंस सिस्टम की बदलती तस्वीर
पहले माइक्रोफाइनेंस संस्थान समूहों को लोन देते थे, जहां प्रत्येक सदस्य को बाकी सदस्यों के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाता था। लेकिन महामारी के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से ये बैठकें बंद हो गईं और समूह की जवाबदेही खत्म हो गई। इससे लोन की वसूली में गिरावट आई।
द्वारा रिसर्च के अनुसार, अब लोगों को पता है कि समूह दबाव से बचा जा सकता है। जब समूह की एकजुटता नहीं होती, तो हर व्यक्ति अपने लिए लोन लेता है और समूह की सामूहिक जिम्मेदारी खत्म हो जाती है।
डिफॉल्ट के आंकड़े चौंकाने वाले
2023 के मध्य तक 91 से 180 दिनों तक लोन की किस्त नहीं चुकाने वालों का प्रतिशत 0.8% था, जो अब बढ़कर 3.3% हो गया है। यह दर्शाता है कि बहुत से लोग लोन चुकाने में अक्षम हो रहे हैं। कई परिवार पुराने लोन चुकाने के लिए नए लोन ले रहे हैं। कुछ को तो अपने बच्चों को स्कूल से निकालना पड़ा है ताकि खर्च कम किया जा सके।
नियमन में ढील से संकट और गहराया
2022 में RBI ने माइक्रोफाइनेंस की परिभाषा में बदलाव किया। अब सालाना 3 लाख रुपये तक कमाने वाला परिवार भी माइक्रोफाइनेंस लोन ले सकता है। शहरी इलाकों में यह सीमा और बढ़ा दी गई। इसके अलावा ब्याज दरों पर नियंत्रण हटा दिया गया और एक परिवार को दो से अधिक लोन लेने की छूट भी दे दी गई। इससे लोन लेना बहुत आसान हो गया, लेकिन इसका दुरुपयोग भी बढ़ा।
लोन का गलत इस्तेमाल
लोग अब लोन का उपयोग व्यवसाय शुरू करने या जीवन की बुनियादी जरूरतें पूरी करने की बजाय शादियों, फर्नीचर और इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं पर खर्च कर रहे हैं। ‘द्वारा’ के कार्यकारी निदेशक इंद्रदीप घोष के अनुसार, “हर समाज में स्टेटस दिखाने की होड़ होती है, और जब लोन लेना आसान हो जाए तो यह होड़ बहुत तेज हो जाती है।”
निवेशकों को गुमराह करने वाले आंकड़े
महामारी के बाद जब नियमों में ढील दी गई, तब निवेशकों को यह संकेत मिला कि भारत में माइक्रोफाइनेंस सुरक्षित और लाभकारी निवेश है। यूरोपीय निवेशकों सहित कई फंडों ने इस क्षेत्र में पैसा लगाया। बैंकों ने भी भारी मात्रा में लोन देना शुरू किया, लेकिन जमीनी हकीकत यह थी कि उधार लेने वालों की चुकाने की क्षमता स्थिर वेतन वृद्धि के अभाव में कमजोर थी।
ग्रामीण भारत में जानकारी की कमी
ग्रामीण इलाकों में लोग नकद में लेनदेन करते हैं। ऐसे में उनकी क्रेडिट योग्यता का आकलन करना लगभग असंभव है। क्रेडिट ब्यूरो के पास भी पर्याप्त डेटा नहीं होता, खासकर जब फिनटेक कंपनियों या गोल्ड लोन की बात हो। इससे लोन देने वालों के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि कौन ग्राहक वाकई लायक है।
माइक्रोफाइनेंस मॉडल का विघटन
नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने जिस माइक्रोफाइनेंस मॉडल की शुरुआत की थी, वह अब बिखरता नजर आ रहा है। समूह की जिम्मेदारी, सामाजिक दबाव और समय पर भुगतान का संतुलन अब खत्म हो गया है। इसका अर्थ है कि माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं को निगरानी और पुनर्नियोजन के लिए नए दृष्टिकोण अपनाने होंगे।
आगे का रास्ता: सरकार और RBI की भूमिका
विशेषज्ञ मानते हैं कि अब जरूरी है कि कुछ संस्थानों को विफल होने दिया जाए ताकि बाकी सिस्टम पर अनावश्यक बोझ न पड़े। सरकार को चाहिए कि वह कर्जदारों की मदद करे ताकि वे व्यवस्थित रूप से कर्ज चुका सकें। भारत के दिवालियापन कानून में इस प्रकार की व्यवस्था है, लेकिन इसे अभी तक व्यक्तियों पर लागू नहीं किया गया है।
RBI को चाहिए कि वह एक मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित करे जिससे निवेशक, संस्थान और सरकार को स्पष्ट डेटा मिल सके। भारत जैसे विविध और विशाल देश में हर क्षेत्र की आर्थिक स्थिति अलग होती है, इसलिए एकरूप नीतियों की बजाय स्थान-विशेष के अनुसार रणनीति बनानी होगी।
India is currently facing a severe subprime loan crisis, as the microfinance sector struggles with rising defaults and financial instability. With over 68% of borrowers finding it difficult to repay their loans, and regulatory changes post-pandemic worsening the situation, the risk of a financial collapse looms large. The Reserve Bank of India must implement stricter monitoring mechanisms, as unsecured microfinance loans grow unchecked. This subprime debt bubble could significantly affect investors, borrowers, and the broader economy, especially in rural India where formal income documentation is lacking.