AIN NEWS 1 नई दिल्ली: जैसा कि आप सभी जानते है दिल्ली में इस समय पॉल्यूशन एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। लेकीन यह अकेले पराली जलाने से ही दिल्ली के वायु प्रदूषण के स्तर में इतनी खतरनाक वृद्धि नहीं हो सकती थी, इसमें अगर वाहन उत्सर्जन सहित स्थानीय कारकों ने पहले से ही राष्ट्रीय राजधानी के आसमान को इतना ज्यादा जहरीला नहीं बनाया होता. दिल्ली में चल रही जहरीली वायु की गुणवत्ता पर एक नवीनतम रिपोर्ट में यह पूरी बात सामने आई है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने मिडिया को बताया है कि उनकी रिपोर्ट में आख़िर क्या पाया गया है कि पूरे दिल्ली-एनसीआर में ही पीएम2.5 का स्तर 2 नवंबर को केवल 24 घंटों के भीतर ही ‘चौंकाने वाला और अभूतपूर्व’ 68 प्रतिशत तक बढ़ गया था.पीएम2.5 के स्तर में भी काफ़ी बढ़ोतरी एक ऐसे समय में दर्ज की गई थी, जब दिल्ली के पीएम2.5 के स्तर में ही पराली जलाने की भूमिका धीरे-धीरे काफ़ी कम हो रही है. सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफएआर) और डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट इन दिल्ली द्वारा ही दर्ज किए गए आंकड़ों से साफ़ पता चला है कि पिछले कुछ दिनों में दिल्ली के पीएम2.5 सांद्रता में पराली जलाने की हिस्सेदारी 25 से 35 प्रतिशत के रेंज में ही रही है, जो कि पिछले वर्षों की तुलना में काफ़ी कम है. जैसे-जैसे यह पराली जलाना अपने चरम पर पहुंचेगा, इसके बढ़ने की संभावना और भी ज्यादा है.यह पूछे जाने पर कि क्या इसका मतलब यह है कि आंतरिक प्रदूषण कारक हवा की गुणवत्ता में भी गिरावट का कारण बन रहे हैं, रॉयचौधरी ने कहा, “बिल्कुल. इसका पूरा मतलब है कि आने वाला अधिकांश प्रदूषण स्थानीय स्रोतों से ही है. अगर हम इस तथ्य पर कोई ध्यान नहीं देते हैं और अपना ध्यान एक कारण पर ही केंद्रित रखते हैं, तो हम समस्या का सही समाधान कभी नहीं ढूंढ पाएंगे.”सीएसई की अर्बन लैब के विश्लेषण में दिल्ली की जहरीली हवा के पीछे कुछ प्रमुख कारकों को सूचीबद्ध किया गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष के इस समय के दौरान प्रदूषण के स्तर में यह जो भी वृद्धि असामान्य नहीं है और आमतौर पर उत्तर भारतीय राज्यों में ही किसानों द्वारा सर्दियों की फसल पर काम शुरू करने से पहले ही पराली जलाने से जुड़ी हुई होती है दिल्ली की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) में भी उछाल के पीछे दिल्ली-एनसीआर में धुएं की आवाजाही में ही मदद करने वाले मौसम संबंधी कारक भी हैं. सीएसई के अर्बन लैब के प्रमुख अविकल सोमवंशी ने भी कहा, “लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कम समय में यह तीव्र वृद्धि हवा की गुणवत्ता को गंभीर श्रेणी में ले जाने में काफ़ी सक्षम है क्योंकि स्थानीय स्रोतों से बेसलाइन प्रदूषण पहले से ही बहुत अधिक है.”लगातार पांच इन दिनों तक वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) के गंभीर श्रेणी में रहने के बाद से दिल्ली में प्रदूषण का स्तर मंगलवार की सुबह को थोड़ा कम हुआ और यह ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच गया. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक मंगलवार को भी शाम 4 बजे 394 था, जो सोमवार शाम 4 बजे 421ही दर्ज किया गया था.
क्या सिर्फ पराली की आग ही है दिल्ली के पॉल्यूशन का कारण… क्या कहते है एक्सपर्ट, दिल्ली की इस जहरीली हवा के लिए आख़िर कौन है जिम्मेदार!
जैसा कि आप सभी जानते है दिल्ली में इस समय पॉल्यूशन एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है। लेकीन यह अकेले पराली जलाने से ही दिल्ली के वायु प्रदूषण के स्तर में इतनी खतरनाक वृद्धि नहीं हो सकती थी, इसमें अगर वाहन उत्सर्जन सहित स्थानीय कारकों ने पहले से ही राष्ट्रीय राजधानी के आसमान को इतना ज्यादा जहरीला नहीं बनाया होता.