Jammu Kashmir में 34 साल के बाद निकला मुहर्रम का जुलूस !
आपको बता दे कि जम्मू-कश्मीर की फिजा अब पूरी तरह से बदल चुकी है। 34 साल के लंबे इंतजार के बाद शांति से निकाला गया मुहर्रम का यह जुलूस जम्मू और कश्मीर की बदलती फिजा को बयां कर रहा था। साथ ही अलगाववाद की आग में वादी को वर्षों तक जलाकर अपनी सियासी रोटियां सेंकने वालों को भी जवाब दे रहा था कि विकास के पथ पर बढ़ रही ये घाटी अब किसी के भड़काने पर नहीं सुलगेगी।
प्रशासन ने जुलूस निकालने के लिए सुबह छह से आठ बजे तक का समय निर्धारित किया था, लेकिन जुलूस में शामिल होने वालों की संख्या और स्थिति को देखते हुए सुबह 11बजे तक की अनुमति दी गई थी। मुहर्रम के जुलूस पर पारंपरिक मार्ग से प्रतिबंध हटाने पर कश्मीर के लोगों ने प्रशासन की सराहना की। प्रशासन ने जुलूस की आयोजक यादगार-ए-हुसैन कमेटी के समक्ष शर्त रखी थी कि इस दौरान कोई राजनीतिक या राष्ट्रविरोधी नारेबाजी नहीं होनी चाहिए। इसका असर भी दिखा।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी जुलूस में शामिल हुऐ
बता दे कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भी मुर्हरम के जुलूस में हिस्सा लेने श्रीनगर पहुंचे, जहां उपराज्यपाल पुराने शहर के बुट्ट कदल इलाके में सैकड़ों शिया लोगों के साथ शामिल हुए। इसके अलावा 29 जुलाई को श्री नगर में मुहर्रम के शोक काल के दसवें दिन भी जुलूस में भाग लेते नजर आएं बता दे कि कश्मीर में वर्ष 1989 में मुहर्रम के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जिया उल हक की मौत के कारण कश्मीर में हालात को देखते हुए आठ मुहर्रम का जुलूस निकालने की इजाजत नहीं दी गई थी। इसके बाद घाटी में वर्ष 1990में आतंकी हिंसा और अलगाववाद का दौर शुरू हो गया था। और अब 34 साल के बाद मुहर्ऱम का जुलुस निकला हे।
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि गुरुवार को दिन कश्मीर में शिया भाइयों के लिए ऐतिहासिक दिन है। 34वर्ष बाद पारंपरिक मार्ग गुरु बाजार से डलगेट तक मुहर्रम का जुलूस निकाला गया है, क्योंकि कश्मीर में अब आतंकी हिंसा और अलगाववाद का दौर खत्म हो चुका है।