Jayant Chaudhary slams nameplate and Aadhaar checks during Kanwar Yatra, calls it vigilantism
कांवड़ यात्रा पर दुकानदारों की जांच को लेकर जयंत चौधरी का तीखा हमला – बताया ‘विजिलेंटिज्म’
AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश में 11 जुलाई से कांवड़ यात्रा शुरू होने जा रही है। यात्रा की तैयारियों के साथ-साथ अब इस पर राजनीति भी गर्मा गई है। खासतौर पर उस नियम को लेकर, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर खाने-पीने की दुकानों पर नेम प्लेट लगाना अनिवार्य किया गया है।
इस नियम के लागू होते ही कुछ हिंदू संगठनों द्वारा दुकानदारों से उनका नाम पूछने और आधार कार्ड की जांच करने की घटनाएं सामने आ रही हैं। इस मुद्दे पर अब सियासत तेज हो गई है। जब इस संबंध में केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के मुखिया जयंत चौधरी से सवाल किया गया, तो उनका जवाब काफी तीखा और साफ था।
जयंत चौधरी का तीखा जवाब: “ये विजिलेंटिज्म है”
मुजफ्फरनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब पत्रकार ने जयंत चौधरी से पूछा कि “कुछ संगठन कांवड़ यात्रा से पहले ढाबे वालों की नेम प्लेट देख रहे हैं और आधार कार्ड भी जांच रहे हैं, इस पर आपकी क्या राय है?”, तो उन्होंने बिना हिचकिचाहट के जवाब दिया,
“ये तो विजिलेंटिज्म है… ये उनका काम नहीं है।”
जयंत का यह बयान स्पष्ट रूप से इस बात का विरोध करता है कि बिना किसी सरकारी अधिकार के कोई संगठन आम नागरिकों से पहचान पत्र मांग सकता है।
विजिलेंटिज्म का मतलब क्या होता है?
‘विजिलेंटिज्म’ का मतलब होता है – जब कोई व्यक्ति या समूह बिना किसी कानूनी अधिकार के खुद को न्यायिक अथॉरिटी समझने लगे और अपराधियों को दंडित करने लगे या कानून अपने हाथ में लेने लगे।
जयंत चौधरी के अनुसार, कांवड़ यात्रा के नाम पर कुछ संगठनों द्वारा दुकानदारों की पहचान पूछना और दस्तावेज मांगना इसी श्रेणी में आता है, जो संविधान और लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ है।
नेम प्लेट और पहचान संबंधी नया नियम क्या है?
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में यह निर्देश जारी किया है कि कांवड़ यात्रा मार्ग पर किसी भी खाद्य या पेय वस्तु की दुकान लगाने वालों को अपनी पहचान साफ-साफ बतानी होगी। इसके तहत दुकान के बाहर नेम प्लेट लगाना जरूरी है।
इस नियम का उद्देश्य सुरक्षा और पारदर्शिता बताया जा रहा है। हालांकि, इस नियम को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर बहस छिड़ गई है।
हिंदू संगठनों की भूमिका और सवाल
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, उत्तर प्रदेश के कई शहरों में कुछ हिंदू संगठन दुकानदारों की नेम प्लेट चेक कर रहे हैं और जिनके नाम मुस्लिम प्रतीत हो रहे हैं, उनसे आधार कार्ड भी मांगे जा रहे हैं।
यह प्रक्रिया आधिकारिक नहीं है और इसे लेकर विपक्षी नेताओं के साथ-साथ आम नागरिकों में भी चिंता बढ़ रही है कि क्या इस तरह की पहचान जांच धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं है?
क्या यह कानूनन सही है?
भारत के संविधान के अनुसार, किसी भी नागरिक से पहचान पत्र मांगने का अधिकार केवल अधिकृत सरकारी एजेंसियों (जैसे पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी आदि) को है। किसी प्राइवेट संगठन या धार्मिक समूह को यह अधिकार नहीं होता कि वह आम नागरिकों से उनका आधार कार्ड या नेम प्लेट की जानकारी मांगे।
इसलिए जयंत चौधरी द्वारा इसे विजिलेंटिज्म करार देना कानून और संविधान के नजरिए से एक गंभीर चेतावनी है।
कांवड़ यात्रा को लेकर बड़ी बैठक
इस विवाद के बीच, उत्तर प्रदेश सरकार ने 8 जुलाई को कांवड़ यात्रा को लेकर एक उच्चस्तरीय बैठक भी बुलाई। इस बैठक की अध्यक्षता मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने की, जिसमें यूपी पुलिस के डीजी राजीव कृष्ण समेत मेरठ, आगरा और बरेली जोन के अधिकारी भी शामिल हुए।
बैठक में यात्रा के दौरान सुरक्षा व्यवस्था, रूट डायवर्जन, भीड़ नियंत्रण, यातायात प्रबंधन और वेस्ट यूपी के प्रमुख मंदिरों की सुरक्षा पर विशेष चर्चा की गई।
राजनीति और समाज दोनों में गूंज
कांवड़ यात्रा एक धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जिसे लेकर आमतौर पर सरकारें हर साल विशेष व्यवस्थाएं करती हैं। लेकिन इस बार ‘नेम प्लेट और आधार कार्ड’ जैसी बातों के चलते यह एक राजनीतिक और सामाजिक बहस का मुद्दा बन गया है।
जयंत चौधरी का बयान न केवल सरकार के नियमों पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सत्तारूढ़ दल और विपक्ष के बीच धार्मिक आयोजनों को लेकर मतभेद किस हद तक बढ़ गए हैं।
Union Minister Jayant Chaudhary has strongly criticized the practice of checking Aadhaar cards and nameplates of food vendors on the Kanwar Yatra 2025 route, calling it an act of vigilantism. As some Hindu groups are allegedly verifying the identities of vendors based on their names and religion, Chaudhary has condemned such actions, stating that law enforcement should not be replaced by self-styled vigilantes. The UP government’s rule about mandatory nameplates has sparked political and social debates. This issue is now part of national discourse ahead of the sacred Kanwar Yatra in western Uttar Pradesh.