AIN NEWS 1 | देश के चर्चित शिक्षक खान सर ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण समिट में शिरकत की, जहां उन्होंने छात्रों के मुद्दों, बीपीएससी आंदोलन और राजनीति में आने की संभावनाओं पर अपनी राय साझा की।
उन्होंने कहा कि एक शिक्षक और छात्र का रिश्ता अभिभावक जैसा होता है। जब छात्रों को लगता है कि सिस्टम उनके साथ अन्याय कर रहा है, तो वे शिक्षक के पास आते हैं, और शिक्षक का कर्तव्य होता है कि वह उनकी आवाज़ उठाए। पटना के गर्दनीबाग में चल रहे बीपीएससी अभ्यर्थियों के आंदोलन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि छात्रों के साथ हो रहे अन्याय को पूरी दुनिया के सामने लाना जरूरी है।
‘हम जीत की गारंटी नहीं दे सकते, लेकिन संघर्ष जारी रहेगा’
खान सर ने कहा कि वे कोई राजनीतिक लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि सिर्फ छात्रों के अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम जीत की गारंटी नहीं दे सकते, लेकिन जितनी हमारी क्षमता है, उतना हम छात्रों के लिए लड़ेंगे।” उन्होंने यह भी बताया कि मामला कोर्ट में चल रहा है और उनके पास कई प्रमाण हैं, जिससे उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद है।
राजनीति को भारत में सबसे बड़ा ताकतवर मंच क्यों माना जाता है?
इस चर्चा के दौरान उनसे पूछा गया कि जब वे आंदोलनों में शामिल होते हैं और सरकार के खिलाफ बोलते हैं, तो क्या इसे राजनीति माना जाना चाहिए? इस पर खान सर ने जवाब दिया कि भारत में राजनीति को सर्वोच्च शक्ति माना जाता है, लेकिन उनकी लड़ाई किसी सरकार से नहीं है। वे सिर्फ स्वतंत्र संस्थानों और प्राधिकरणों से न्याय की मांग कर रहे हैं।
क्या खान सर राजनीति में आएंगे?
जब उनसे पूछा गया कि क्या वे भविष्य में खुलकर राजनीति में आएंगे, तो उन्होंने कहा कि यह सवाल उनसे अक्सर पूछा जाता है। उन्होंने कहा, “अकेले हम 140 करोड़ लोगों को नहीं बदल सकते। सवाल यह होना चाहिए कि 140 करोड़ लोग अपने हक की बात कब उठाएंगे?”
उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि कोरोना महामारी के समय में कुछ देशों में आम लोगों ने अपने नेताओं को लाइन में लगने के लिए मजबूर कर दिया था। लेकिन भारत में स्थिति अलग है, यहां एक गांव के मुखिया को भी लाइन में नहीं खड़ा किया जा सकता, जबकि भारत दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है।