AIN NEWS 1 | जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चशोती गांव में 14 अगस्त को बादल फटने से भारी तबाही मची। यह हादसा उस समय हुआ जब बड़ी संख्या में श्रद्धालु मचैल माता मंदिर यात्रा पर निकले हुए थे। देखते ही देखते गांव और आसपास का इलाका मलबे और बाढ़ के पानी से भर गया। इस प्राकृतिक आपदा ने पूरे इलाके को शोक में डूबा दिया।
अस्पताल में भर्ती मरीजों की स्थिति
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस आपदा में घायल हुए लोगों को जम्मू के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज (GMC) अस्पताल में भर्ती कराया गया। अब तक कुल 75 घायलों को अस्पताल में लाया गया, जिनमें से 24 मरीजों का ऑपरेशन किया गया। इनमें से सांबा जिले के विजयपुर निवासी 35 वर्षीय अशोक कुमार ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया।
अस्पताल के अनुसार, अब भी 47 मरीज भर्ती हैं, जिनमें से चार की हालत गंभीर बनी हुई है। वहीं, 20 मरीजों को इलाज के बाद छुट्टी दे दी गई, जबकि तीन मरीज बिना बताए अस्पताल छोड़कर चले गए। इसके अलावा चार अन्य लोग डॉक्टरों की सलाह के विपरीत अस्पताल से निकल गए।
मौत का आंकड़ा और बरामद शव
किश्तवाड़ हादसे में अब तक 61 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। अस्पताल में 11 शव और शरीर का एक अंग भी लाया गया, जिन्हें आवश्यक चिकित्सकीय औपचारिकताओं के बाद उनके परिजनों को सौंप दिया गया। मृतकों में अधिकतर लोग मंदिर यात्रा पर आए श्रद्धालु थे।
लापता लोगों की तलाश जारी
इस घटना में 100 से अधिक लोग घायल हुए और अभी भी करीब 50 लोग लापता हैं। लापता लोगों के परिजन बेसब्री से अपने प्रियजनों का इंतजार कर रहे हैं। राहत और बचाव कार्य लगातार जारी है, लेकिन पहाड़ी इलाका और मलबा होने के कारण बचाव कार्य में कठिनाइयां आ रही हैं।
तबाही का मंजर
बादल फटने से अचानक आई बाढ़ ने पूरे इलाके को तहस-नहस कर दिया।
10 से अधिक आवासीय मकान पूरी तरह बह गए या मलबे में दब गए।
6 सरकारी भवन और 2 मंदिर भी क्षतिग्रस्त हुए।
बाढ़ की चपेट में आकर 4 पवन चक्कियां और एक पुल टूटकर बह गए।
इसके अलावा एक दर्जन से अधिक वाहन भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए।
हादसे के समय वहां बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे, क्योंकि मचैल माता यात्रा 25 जुलाई से शुरू हुई थी और 5 सितंबर तक चलनी थी।
राहत और बचाव कार्य
प्रशासन, सेना और एनडीआरएफ की टीमें लगातार मलबा हटाने और लापता लोगों की तलाश में जुटी हैं। घायलों को तुरंत अस्पताल पहुंचाने के लिए हेलिकॉप्टर और एंबुलेंस की मदद ली जा रही है। हालांकि, इलाके का दुर्गम रास्ता और लगातार खराब मौसम राहत कार्य में बड़ी चुनौती बना हुआ है।
लोगों में डर और निराशा
गांव और आसपास के क्षेत्रों में इस हादसे के बाद माहौल बेहद गमगीन है। लापता लोगों के परिवारजन दिन-रात इंतजार कर रहे हैं। लोग लगातार प्रशासन से अपनों की जानकारी मांग रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस सफलता हाथ नहीं लगी।
विशेषज्ञों की राय
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, इस तरह की घटनाएं जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित निर्माण कार्यों के कारण बढ़ रही हैं। पहाड़ी इलाकों में बारिश का दबाव अचानक बादल फटने जैसी तबाही ला देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पहाड़ी क्षेत्रों में समय रहते आपदा प्रबंधन की ठोस योजना बनाई जाए, तो ऐसे हादसों से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
किश्तवाड़ की यह त्रासदी एक बार फिर हमें याद दिलाती है कि प्राकृतिक आपदाओं के सामने इंसान कितना असहाय हो जाता है। अचानक आई बाढ़ ने सैकड़ों परिवारों की खुशियां छीन लीं। अभी भी दर्जनों लोग लापता हैं और उनके परिवारजन उम्मीद की डोर पकड़े हुए हैं।
सरकार और प्रशासन राहत एवं बचाव कार्य में लगे हुए हैं, लेकिन इस दर्दनाक हादसे से प्रभावित परिवारों का दुख फिलहाल शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।



















