AIN NEWS 1 | जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और मध्य रात्रि के समय वासुदेव और देवकी के घर श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था। यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है।
क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी?
हिंदू शास्त्रों में वर्णित है कि जब पृथ्वी पर पाप और अधर्म बढ़ गया था, तब भगवान विष्णु ने 8वें अवतार के रूप में श्रीकृष्ण का जन्म लिया। उनका जीवन केवल मथुरा और वृंदावन की लीलाओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने महाभारत में अर्जुन के सारथी बनकर धर्म की स्थापना की। जन्माष्टमी को केवल जन्मदिन नहीं, बल्कि धर्म, भक्ति और सत्य की जीत के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
इस वर्ष जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को मनाई जा रही है।
जन्माष्टमी व्रत तिथि: सूर्योदय से अष्टमी तिथि का प्रारंभ
जन्मोत्सव मुहूर्त: रात 12:00 बजे से 12:48 बजे तक
व्रत पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद, स्नान-पूजन और भगवान को भोग लगाने के बाद
ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिनके लिए रात में पूजा करना कठिन हो, वे दिन में भी श्रद्धा से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर सकते हैं।
जन्माष्टमी पर क्या करें? (पूजा विधि)
ब्रह्म मुहूर्त में उठें – स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
घर को सजाएं – मंदिर या पूजन स्थल को फूलों, आम्रपत्र और दीपक से सजाएं।
बाल गोपाल का झूला तैयार करें – भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को झूले में विराजमान करें।
पूजन सामग्री – तुलसी पत्ते, मक्खन, मिश्री, दूध, दही, फल और फूल का विशेष महत्व है।
मंत्रोच्चार और भजन – ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।
अर्धरात्रि जन्मोत्सव – ठीक 12 बजे भगवान का अभिषेक करें और झूला झुलाएं।
आरती और प्रसाद – आरती करें और भोग के बाद प्रसाद का वितरण करें।
व्रत पारण – अगले दिन पूजा और भोग के बाद व्रत तोड़ें।
जन्माष्टमी पर क्या न करें?
इस दिन अन्न ग्रहण न करें, केवल फलाहार करें।
व्रत के दौरान नकारात्मक विचार, झगड़ा या कटु वचन न बोलें।
शराब, मांसाहार और तामसिक भोजन से परहेज करें।
सोने से पहले भक्ति-कीर्तन या श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण करें।
व्रत की विधि और नियम
फलाहार: दूध, दही, फल और सूखे मेवे खाएं।
जल सेवन: आवश्यकता अनुसार जल या ज्यूस लिया जा सकता है।
रात का नियम: रात 12 बजे पूजा और आरती के बाद फलाहार न करें। जरूरत हो तो केवल दूध ले सकते हैं।
पारण: अगले दिन नहाकर भगवान को भोग लगाने के बाद ही व्रत पूरा करें।
जन्माष्टमी का महत्व
कष्टों से मुक्ति – श्रीकृष्ण की पूजा करने से जीवन के दुख और कष्ट दूर होते हैं।
समृद्धि और सुख – यह व्रत करने से घर में धन, सुख और शांति बनी रहती है।
आध्यात्मिक उन्नति – व्रत और उपवास से मन, शरीर और विचार शुद्ध रहते हैं।
जीत की प्राप्ति – इसे जयंती व्रत भी कहा गया है, जिससे हर कार्य में विजय मिलती है।
विशेष स्थानों पर जन्माष्टमी का उत्सव
मथुरा – श्रीकृष्ण का जन्मस्थान, यहां भव्य आयोजन होता है।
वृंदावन – रासलीला और भक्ति की अद्भुत झलक देखने को मिलती है।
द्वारका – श्रीकृष्ण का राज्य, यहां भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है।
पुरी – जगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजा होती है।
बच्चों, बुजुर्गों और रोगियों के लिए नियम
यदि कोई व्यक्ति व्रत का पालन पूरी तरह से नहीं कर सकता तो वह अपनी क्षमता और स्वास्थ्य के अनुसार फलाहार या केवल श्रद्धा से भी व्रत कर सकता है। भगवान के लिए भावनाएं सबसे महत्वपूर्ण हैं, कठोर नियम नहीं।
आधुनिक समय में जन्माष्टमी का महत्व
आज की व्यस्त जीवनशैली में जन्माष्टमी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि जीवन में संतुलन और सकारात्मकता का संदेश देती है। यह दिन हमें सिखाता है कि भक्ति, धर्म और सत्य की राह अपनाकर हर कठिनाई पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हर वर्ष हमें यह याद दिलाती है कि भगवान का जन्म केवल दुष्टों के नाश के लिए नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना के लिए हुआ। इस दिन व्रत-पूजा, भजन-कीर्तन और श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण करके हम न केवल आध्यात्मिक आनंद प्राप्त करते हैं बल्कि जीवन में शांति और समृद्धि भी लाते हैं।
Krishna Janmashtami 2025 is one of the most important Hindu festivals celebrated across India and worldwide. It marks the divine birth of Lord Krishna, the eighth incarnation of Lord Vishnu. Devotees observe fasting, perform special Janmashtami puja vidhi, sing bhajans, and celebrate Krishna’s midnight birth with joy. Knowing the Janmashtami date, vrat rules, significance, and rituals helps devotees follow traditions correctly and experience peace, prosperity, and divine blessings.