AIN NEWS 1 | 2008 के चर्चित मालेगांव बम धमाके के मामले में 31 जुलाई 2025 को एनआईए (NIA) की स्पेशल कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस केस में मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि महज शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
इस फैसले के साथ ही एक लंबे समय से चले आ रहे संवेदनशील केस पर न्यायपालिका की अंतिम मोहर लग गई। फैसला सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों की ओर से कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चूक हुई और वे अपने दावे पुख्ता सबूतों के साथ अदालत में साबित नहीं कर सकीं।
जांच में खामियां, सबूतों में कमी
कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि इस केस की जांच में गंभीर त्रुटियां रही हैं। यहां तक कि यह भी साबित नहीं हो पाया कि धमाका बाइक में हुआ था या नहीं। पंचनामा में भी उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
जज ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “मामले में पुलिस और जांच एजेंसियों की कार्यशैली सवालों के घेरे में रही है। किसी भी केस में यदि सबूतों की कमी हो, तो केवल आशंका या धारणा के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”
बाइक साध्वी प्रज्ञा की थी या नहीं – साबित नहीं हो सका
केस में एक मुख्य पहलू यह था कि जिस बाइक में बम लगाया गया था, वह कथित रूप से साध्वी प्रज्ञा के नाम पर रजिस्टर्ड थी। हालांकि, जांच में यह भी सामने आया कि उस बाइक का चेसिस नंबर स्पष्ट रूप से पहचान में नहीं आ पाया।
इसके अलावा, बाइक पर जो नंबर प्लेट थी, वह भी गलत पाई गई। कोर्ट ने कहा कि यह साबित नहीं हो सका कि वह बाइक वास्तव में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर की ही थी।
क्या था मालेगांव ब्लास्ट केस?
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में एक दर्दनाक बम विस्फोट हुआ था। यह धमाका उस समय हुआ जब लोग नमाज के लिए जा रहे थे। इस विस्फोट में 6 लोगों की जान चली गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे।
घटना के अगले दिन 30 सितंबर को मालेगांव के आज़ाद नगर थाने में इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी। पहले इसकी जांच लोकल पुलिस ने शुरू की, लेकिन बाद में मामला महाराष्ट्र एटीएस (ATS) के हवाले कर दिया गया।
साध्वी प्रज्ञा का नाम कैसे आया सामने?
जांच में सामने आया कि जिस बाइक में बम लगाया गया था, वह एक LML Freedom मॉडल की बाइक थी। शुरू में इस बाइक पर जो नंबर प्लेट लगी थी, वह फर्जी निकली। इसके बाद जब असली नंबर खोजा गया तो दावा किया गया कि बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम रजिस्टर्ड थी।
इस दावे के आधार पर साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार किया गया। उनके अलावा लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और अन्य को भी आरोपी बनाया गया। इस केस में कुल 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से 7 लोगों पर मुकदमा चला।
अदालत की टिप्पणी और पीड़ितों के लिए मुआवज़ा
अदालत ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष ने आरोपों को साबित करने के लिए कोई निर्णायक सबूत पेश नहीं किए। कई गवाहों के बयान विरोधाभासी थे और जांच की प्रक्रिया भी संदेहास्पद रही।
फैसले के साथ ही कोर्ट ने मालेगांव ब्लास्ट में मारे गए लोगों के परिवारों को 2-2 लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये मुआवज़ा देने का आदेश भी दिया।
17 वर्षों की लंबी कानूनी लड़ाई का अंत
इस केस ने न केवल देशभर में सनसनी मचाई थी, बल्कि यह राजनीतिक गलियारों में भी लंबे समय तक चर्चा में रहा। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर इस दौरान सांसद भी बनीं और इस केस को लेकर कई बार विवादों में रहीं।
अब जबकि अदालत ने उन्हें और बाकी आरोपियों को बरी कर दिया है, यह एक लंबे इंतज़ार के बाद आया न्याय कहा जा सकता है — भले ही इसमें न्याय प्रणाली की कई कमजोरियां भी उजागर हुईं हों।
The NIA Court has acquitted Sadhvi Pragya Singh Thakur and six other accused in the 2008 Malegaon blast case due to lack of evidence. The court pointed out several investigative flaws, stating that the prosecution failed to prove key facts, such as the bomb being planted on a bike allegedly linked to Sadhvi Pragya. This landmark verdict comes 17 years after the tragic blast that killed six and injured over a hundred people. The case had been under national scrutiny and political debate for years.