AIN NEWS 1 Mandi: पहाड़ों में हो रही लगातार भारी बारिश के बाद अब ब्यास नदी की तेज जलधारा में समाया हुआ प्राचीन पंचवक्त्र मंदिर भी मंगलवार को तीन दिन बाद अब पानी से बाहर आ गया। जैसे ही मंदिर के लोगों को दीदार हुए तो उनकी अपने सभी देवी-देवताओं के प्रति आस्था और भी ज्यादा प्रबल हो गई ।
बता दें छोटी काशी के इस 16वीं सदी में बने इस मंदिर को हालांकि इस मौजूदा समय में सिल्ट और मलबे से इसे चारों तरफ से घेर लिया है। मंगलवार को इस मंदिर का दरवाजा भी नहीं खुल पा रहा था और इसके अंदर सिर्फ नंदी बैल के सींग ही दिखाई दे रहे थे। इस मंदिर का अंदर का पूरा भाग ही पूरी तरह से सिल्ट से भर गया है। उधर, इस मंदिर तक किसी का पहुंचना भी काफ़ी ज्यादा कठिन हो गया है, चुके इस मंदिर तक जाने वाला पुल भी ब्यास नदी की तेज धारा में बह गया है।इधर वहा स्थानीय लोगों का कहना है कि भगवान शिव की इस नगरी मंडी में शिव का यह मंदिर हम सब लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। वहा स्थानीय निवासी डीएन कपूर, हरेंद्र सैणी आदि ने बताया कि यह मंदिर तो ब्यास का इतना अधिक तेज बहाव सहने के बाद भी पूरी तरह से सुरिक्षत है, जो यहां पर भगवान शिव की साक्षात मौजूदगी को ही प्रमाणित करता है। बता दें कि भगवान शिव को समर्पित है यह प्राचीन पंचवक्त्र मंदिर और यह सुकेती और ब्यास नदियों के संगम पर ही स्थित है। पंचवक्त्र महादेव मंदिर एक बहुत प्राचीन धार्मिक स्थल है। इसका निर्माण राजा अजबर सेन ने ही 16वीं सदी के पूर्वार्द्ध में ही करवाया था। यह मंदिर एक विशाल मंच पर खड़ा हुआ है और बहुत ही अच्छी तरह से सुसज्जित भी है। वैसे तो यह भूतनाथ और त्रिलोकीनाथ मंदिरों के जैसा ही बनाया गया है।
जान ले इस तरह से निकाले यहां से औट में फंसे हुए सभी पर्यटक
यहां पर एनएच कई स्थानों पर पूरी तरह से बाधित होने के बाद भी पुलिस के जवानों ने यहां हजारों पर्यटकों को पूरी तरह सुरक्षित निकाला है। पुलिस ने यहां थलौट की ओर से फोरलेन की पहली टनल में फसे हल्के वाहनों के लिए रास्ता निकाला और उन्हें वाया पंडोह चैलचौक होते हुए वहा से निकाला। वहीं, जो भी वाहन और पर्यटक नगवाईं, झेड़ी, पनारसा आदि स्थानों में ही फंसे थे, उनको कटौला कमांद होते हुए यहां से निकाला गया।