AIN NEWS 1 मुजफ्फरनगर। फुलत के मौलाना कलीम सिद्दीकी की कहानी एक दिलचस्प यात्रा का उदाहरण है, जिसने चिकित्सा की राह छोड़कर धार्मिक शिक्षा की दिशा में अपने कदम बढ़ाए और एक महत्वपूर्ण मदरसे की स्थापना की। कलीम सिद्दीकी ने मेरठ से बीएससी की पढ़ाई की और एमबीबीएस डॉक्टर बनने के लिए सीपीएमटी में 57वीं रैंक हासिल की, लेकिन उन्होंने चिकित्सा के बजाय धार्मिक शिक्षा को चुना और एक मदरसा शुरू किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कलीम सिद्दीकी, जो कि किसान अमीन सिद्दीकी का बेटा था, ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा फुलत के एक मदरसे से प्राप्त की। इसके बाद उसने पिकेट इंटर कॉलेज, खतौली से विज्ञान में इंटरमीडिएट की पढ़ाई की और मेरठ कॉलेज से बीएससी की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उसने एमबीबीएस डॉक्टर बनने के लिए सीपीएमटी परीक्षा दी और 57वीं रैंक प्राप्त की। हालांकि, उसने डॉक्टर बनने के बजाय लखनऊ के दारुल उलूम नदवतुल उलमा में दीनी तालीम (धार्मिक शिक्षा) प्राप्त की।
मदरसा स्थापना और विकास
कलीम सिद्दीकी ने 1998 में फुलत में जामिया इमाम शाह वलीउल्लाह इस्लामिया की स्थापना की। इस मदरसे ने ढाई दशकों में अपनी पहचान बनाई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त की। मदरसा खाड़ी देशों से तीन करोड़ रुपये की फंडिंग के साथ-साथ हवाला के माध्यम से भी धन प्राप्त करता था। इसके कारण, मदरसे की ऊंची इमारतें और आधुनिक सुविधाएं विकसित की गईं।
विवाद और कानूनी समस्याएं
मौलाना कलीम पर धर्मांतरण के आरोप भी लगाए गए। जून 2021 में एटीएस ने उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की और 21 सितंबर 2021 को उन्हें मेरठ से गिरफ्तार कर लिया। उनके खिलाफ धर्मांतरण और अन्य आरोपों में जांच की गई। गिरफ्तारी के बाद, कलीम को साल 2023 में जमानत मिल गई, लेकिन अदालत में पेशी के दौरान उन्हें न्यायिक हिरासत में लिया गया।
परिवार और मदरसा संचालन
मौलाना कलीम का परिवार दिल्ली के शाहीन बाग में रह रहा है। उनका बड़ा बेटा अहमद सिद्दीकी गांव की जमीन और मदरसे का संचालन करता है, जबकि दूसरा बेटा असजद सिद्दीकी दिल्ली में रहता है। मौलाना कलीम के बाद उनके बेटे मौलाना अहमद ने मदरसे की देखरेख संभाली है। वर्तमान में, मदरसे के हॉस्टल में विभिन्न राज्यों से तीन सौ छात्र और आसपास के क्षेत्रों से 250 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मदरसे में अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू समेत अन्य भाषाओं की शिक्षा प्रदान की जाती है।
ऐतिहासिक संदर्भ
फुलत में स्थापित प्राचीन मदरसा फैजुल इस्लाम को सिकंदर लोदी काल का माना जाता है। मौलाना कलीम सिद्दीकी ने 1987 में इस ऐतिहासिक मदरसे के पास जामिया इमाम शाह वलीउल्लाह इस्लामिया की स्थापना की थी। इस मदरसे में उत्तर प्रदेश, कश्मीर, और पंजाब से विद्यार्थी पढ़ने आते हैं।
अंतिम स्थिति
मौलाना कलीम सिद्दीकी और उनके ड्राइवर सलीम को धर्मांतरण के मामलों में दोषी ठहराया गया। कलीम को आजीवन कारावास और सलीम को 10 साल की सजा सुनाई गई। सलीम के तीन बेटे मजदूरी कर रहे हैं और उनका परिवार सलीम की बेगुनाही का दावा कर रहा है।
फुलत की नजर अब लखनऊ के फैसले पर टिकी हुई है, और मदरसे में लोगों की आवाजाही बनी हुई है। मौलाना कलीम सिद्दीकी की कहानी एक धर्मिक शिक्षक की पहचान को लेकर लोगों की विभिन्न रायों का प्रतिनिधित्व करती है।