राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार (15 सितंबर) को इंदौर में आयोजित एक पुस्तक विमोचन समारोह में ऐसा बयान दिया, जिसने न केवल भारत की मजबूती को रेखांकित किया, बल्कि इंग्लैंड को भी अप्रत्यक्ष रूप से आईना दिखाया।
भारत की एकता पर ऐतिहासिक संदर्भ
भागवत ने अपने संबोधन में ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का जिक्र किया। चर्चिल ने आज़ादी के समय कहा था कि ब्रिटिश शासन के जाने के बाद भारत टिक नहीं पाएगा और बिखर जाएगा। लेकिन, भागवत ने गर्व के साथ कहा कि आज भारत ने उन भविष्यवाणियों को पूरी तरह गलत साबित कर दिया। आजादी के बाद से भारत न केवल कायम रहा, बल्कि और मजबूत होकर दुनिया के सामने खड़ा हुआ है।
उन्होंने कहा कि भारत की ताकत इसकी विविधता में है। हजारों भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं के बावजूद यह देश एक सूत्र में बंधा है। यही हमारी वास्तविक शक्ति है, जिसे बाहरी शक्तियां कभी समझ ही नहीं पाईं।
इंग्लैंड की वर्तमान स्थिति पर कटाक्ष
संघ प्रमुख ने इशारों-इशारों में ब्रिटेन पर तंज कसते हुए कहा कि आज वही इंग्लैंड विभाजन की स्थिति में है। स्कॉटलैंड, आयरलैंड और अन्य क्षेत्रों में अलगाव की आवाजें उठ रही हैं। यानी, जिसने कभी भारत के लिए भविष्यवाणी की थी कि यह देश टूट जाएगा, आज वही देश खुद विखंडन की ओर बढ़ रहा है।
भागवत ने आगे कहा, “हम भी कभी बंट गए थे, लेकिन भविष्य में हम उसे भी जोड़ लेंगे। भारत आगे बढ़ेगा, बंटेगा नहीं।” उनका यह कथन स्पष्ट रूप से भारत के पुनः एकीकरण की दिशा की ओर इशारा करता है।
प्राचीन भारत और विश्वगुरु की छवि
मोहन भागवत ने भारत की प्राचीन विरासत और गौरवशाली इतिहास का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जब भारत हजारों वर्षों तक विश्वगुरु था, तब दुनिया में बड़े युद्ध और संघर्ष नहीं हुए। भारत ने पूरी दुनिया को शांति, सहिष्णुता और समरसता का संदेश दिया।
उन्होंने बताया कि उस दौर में कोई भी खुद को सर्वोच्च साबित करने की होड़ में नहीं था। ज्ञान, आस्था और तर्क पर आधारित जीवन ही भारत की पहचान थी। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति को दुनिया आज भी सम्मान देती है।
आज के वैश्विक संघर्ष और भारत की भूमिका
भागवत ने कहा कि आज दुनिया भर में जो संघर्ष और युद्ध हो रहे हैं, उनकी जड़ ‘अहंकार और स्वार्थ’ हैं। हर कोई यह सोचता है कि वह आगे बढ़े और दूसरा पीछे रह जाए। यही मानसिकता युद्ध, हिंसा और टकराव को जन्म देती है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि पहले “गला काटने” या “जेब काटने” का काम केवल दरजी किया करते थे। लेकिन अब दुनिया के हर कोने में लोग इसी मानसिकता से एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने में लगे हैं।
भारत के संदर्भ में उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि आगे बढ़ना है तो साथ लेकर बढ़ो। यही भारत की आत्मा है और यही उसे विश्व में अद्वितीय बनाती है।
श्रद्धा और विश्वास पर आधारित जीवन
आरएसएस प्रमुख ने जीवन दर्शन पर भी विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि जीवन श्रद्धा और विश्वास के आधार पर चलता है। भले ही दुनिया में कई लोग खुद को आधुनिक और जड़वादी मानते हों, लेकिन अब वही लोग इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि श्रद्धा और विश्वास के बिना जीवन अधूरा है।
भागवत ने कहा कि भारत की संस्कृति इस संतुलन पर टिकी है — जहां आस्था भी है और तर्क भी। यही संतुलन हमें बाकी दुनिया से अलग करता है।
भारत का भविष्य – मजबूत और एकजुट
मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य के अंत में कहा कि आने वाले समय में भारत केवल आगे बढ़ेगा, कभी पीछे नहीं जाएगा। उन्होंने विश्वास जताया कि भारत न सिर्फ आंतरिक रूप से मजबूत होगा बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी अग्रणी भूमिका निभाएगा।
उनके बयान का सबसे अहम हिस्सा यह था कि “हम कभी बंट गए थे, लेकिन भविष्य में उसे भी जोड़ लेंगे।” इस कथन ने न केवल भारत की अखंडता की भावना को प्रकट किया, बल्कि यह भी संकेत दिया कि आने वाले वर्षों में भारत विश्व शांति का नेतृत्व करेगा।