AIN NEWS 1 | भारत में हिंदू-मुस्लिम संबंध हमेशा से चर्चा का विषय रहे हैं। समाज में भाईचारा और आपसी विश्वास बनाए रखने को लेकर कई बार बहस होती रही है। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने एकता और सद्भाव के संदेश को और मजबूती दी है।
भागवत ने स्पष्ट किया कि भारत की संस्कृति में इस्लाम हमेशा से मौजूद रहा है और आगे भी रहेगा। उन्होंने कहा कि हिंदू और मुसलमान एक-दूसरे से अलग नहीं हैं, बल्कि उनकी पूजा-पद्धति अलग है। यही कारण है कि आपसी एकता पर सवाल उठाने की जरूरत ही नहीं है।
हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर मोहन भागवत का नजरिया
आरएसएस के शताब्दी समारोह के दौरान एक सवाल के जवाब में भागवत ने कहा:
“हिंदू और मुसलमान पहले से ही एक हैं। इनके बीच सिर्फ पूजा करने के तरीके अलग हैं। लेकिन पूजा-पद्धति के अंतर से समाज में कोई दूरी नहीं आनी चाहिए।”
“इस्लाम भारत में प्राचीन काल से है, आज भी है और हमेशा रहेगा। यह सोचना कि इस्लाम यहां से खत्म हो जाएगा, हिंदू दर्शन का हिस्सा नहीं है।”
उनका मानना है कि भारत की असली ताकत आपसी विश्वास और विविधता में एकता है।
इस्लाम के स्थान पर भागवत का बयान
भागवत ने कहा कि भारत में इस्लाम ने हमेशा अपनी जगह बनाई है और यह आगे भी रहेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंदू और मुसलमानों को एक-दूसरे पर भरोसा करना चाहिए।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा –
“किसी भी जगह या सड़क का नाम आक्रांताओं के नाम पर नहीं होना चाहिए। लेकिन मुस्लिम नाम होने का मतलब आक्रांता नहीं है। एपीजे अब्दुल कलाम या अब्दुल हमीद जैसे महान लोगों के नाम पर जगहें ज़रूर होनी चाहिए।”
आपसी विश्वास और सद्भाव की वकालत
भागवत ने अपने भाषण में कहा कि हिंदू और मुस्लिम समाज को आपसी अविश्वास से बाहर निकलना होगा।
उनका कहना था कि धार्मिक आस्था व्यक्तिगत पसंद है।
किसी भी धर्म में प्रवेश के लिए जबरदस्ती या प्रलोभन नहीं होना चाहिए।
समाज का असली काम एक-दूसरे की मदद करना और इंसानियत को बढ़ावा देना है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि गुजरात भूकंप और केरल बाढ़ जैसी आपदाओं के समय आरएसएस ने हमेशा सभी धर्मों और समुदायों के लोगों की मदद की है।
जनसांख्यिकीय असंतुलन और धर्मांतरण पर चिंता
मोहन भागवत ने अपने बयान में जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या पर भी बात की। उनका कहना था कि –
धर्मांतरण और अवैध प्रवासन (Illegal Migration) समाज के संतुलन को बिगाड़ते हैं।
सरकार घुसपैठ रोकने की कोशिश कर रही है, लेकिन इसमें समाज की भी भूमिका होनी चाहिए।
“नौकरियां हमारे लोगों को मिलनी चाहिए, जिनमें मुसलमान भी शामिल हैं – न कि अवैध प्रवासियों को।”
बांग्लादेश-भारत संबंधों पर विचार
भागवत ने यह भी माना कि भारत और बांग्लादेश के लोगों का DNA एक जैसा है, लेकिन उन्होंने साफ कहा कि –
हर देश के अपने कानून होते हैं।
यदि कोई प्रवास करना चाहता है, तो उसे इन कानूनों का पालन करना चाहिए।
हिंसा और आरएसएस पर लगाए गए आरोपों का जवाब
अक्सर आरएसएस पर हिंसा में शामिल होने के आरोप लगाए जाते रहे हैं। लेकिन इस पर मोहन भागवत ने कहा –
“हिंसा करने वाला संगठन कभी भी देशभर में 75 लाख जगहों तक नहीं पहुंच सकता।
अगर हम हिंसक होते तो इस स्तर पर जनता का विश्वास हमें कभी नहीं मिलता।
आरएसएस का मकसद केवल समाज सेवा और संगठन की शक्ति को बढ़ाना है।”
मोहन भागवत का यह बयान भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया है।
उन्होंने साफ कहा कि इस्लाम भारत का हिस्सा है और हमेशा रहेगा।
हिंदू-मुस्लिम एकता पर किसी तरह का सवाल नहीं उठना चाहिए।
आस्था और पूजा-पद्धति अलग हो सकती है, लेकिन इंसान और समाज एक ही हैं।
यह बयान उन तमाम भ्रांतियों और मतभेदों को दूर करने का प्रयास है, जो लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर छाए रहते हैं।
इस्लाम 7वीं शताब्दी से है तो पुरातन काल से कैसे हुआ चाचा गांझा फूंकने लगें हैं शायद जो मन में आए बयान दे दो RSS का ही नास हो गया पदाधिकारी निकृष्ट है इन्होंने तो राष्ट्र से पहले इस्लाम को रखा अभी तो RSS में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बना इनकी औकात नहीं थी को राष्ट्र को इस्लाम से ऊपर रखते ये भी हम सनातनियों के संस्कार है जो अपने धर्म से भी ऊपर राष्ट्र को रखते हैं