AIN NEWS 1: पिछले 200 वर्षों में विश्व ने कई भयंकर परिवर्तन देखे हैं, जिनसे हर समाज और देश को नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में हिंदू समाज का विधिक अस्तित्व समाप्त हो गया। इस लेख में हम इस प्रक्रिया और वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करेंगे, ताकि हम हिंदू समाज की स्थिति को सही ढंग से समझ सकें।
1. स्वतंत्रता के बाद का हिंदू समाज:
15 अगस्त 1947 के बाद जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो नेहरू के नेतृत्व में कई कानूनी और राजनीतिक बदलाव हुए। इन परिवर्तनों ने हिंदू समाज के पारंपरिक और विधिक अस्तित्व को समाप्त कर दिया। इसका मतलब यह है कि हिंदू समाज की पारंपरिक इकाइयों जैसे कुल, गांव, खाप, संप्रदाय, और परिषदों को कानूनी मान्यता नहीं मिली। इसके परिणामस्वरूप, हिंदू समाज अब केवल एक भावना या विचार बनकर रह गया है, जिसे किसी कानूनी या औपचारिक ढांचे में नहीं रखा गया।
2. वर्तमान स्थिति का विश्लेषण:
आज हिंदू समाज की स्थिति एक ऐसे विचारधारा या भावना के रूप में रह गई है, जो राजनीतिक और सामाजिक संघर्षों का हिस्सा बन चुकी है। यह भी देखा गया है कि हिंदुत्व का नाम लेकर या उसकी आड़ में विभिन्न समूह और राजनीतिक ताकतें अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर रही हैं। परिणामस्वरूप, हिंदू समाज और उसकी पारंपरिक मान्यताओं का विधिक अस्तित्व समाप्त हो चुका है।
3. पारंपरिक ढांचे की अनुपस्थिति:
हिंदू समाज की पारंपरिक इकाइयों को विधिक मान्यता न मिलने के कारण, आज केवल एक विचार या भावना बची है। ये पारंपरिक इकाइयां जैसे कुल, गांव, खाप, संप्रदाय और परिषदें अब कानूनी रूप से अस्तित्व में नहीं हैं। राज्य, राजनीति, और राजशास्त्र के पुराने ढांचे भी अब अप्रासंगिक हो चुके हैं। इसके चलते, हिंदू समाज के पारंपरिक तत्वों की विधिक स्थिति की कोई स्वीकृति नहीं है।
4. राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष:
वर्तमान में, हिंदुत्व एक राजनीतिक संघर्ष की वस्तु बन गया है। हिंदू समाज के पारंपरिक धार्मिक तत्व अब एक अत्यंत सीमित संख्या में ही बच पाए हैं। इस स्थिति को देखते हुए, यह आवश्यक हो गया है कि हिंदू समाज और उसके विचारों को सही ढंग से समझा जाए और इस पर उचित ध्यान दिया जाए।
5. राज्य तंत्र के अनुकूलन की आवश्यकता:
आज के समय में, राज्य तंत्र द्वारा ही अच्छा या बुरा तय होता है। इसलिये, हिंदू धर्म और समाज के अनुकूल राज्य तंत्र का निर्माण करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। पिछले 77 वर्षों में इस दिशा में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई है। इसलिए, भविष्य में हिंदू समाज की स्थिति को सुधारने के लिए, राज्य तंत्र को हिंदू धर्म और उसकी मान्यताओं के अनुकूल बनाना आवश्यक है।
6. भविष्य की दिशा:
अंततः, हिंदू समाज की वर्तमान स्थिति और उसकी विधिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, या तो इसका पुनर्गठन होगा या फिर विभिन्न समूह हिंदुत्व के नाम पर इसे प्रभावित करने का प्रयास करेंगे। यह एक प्रकार का राजनीतिक संघर्ष बन चुका है, जो आने वाले समय में और भी जटिल हो सकता है।
इस प्रकार, हिंदू समाज की पारंपरिक और विधिक स्थिति पर विचार करते हुए, हमें यह समझना चाहिए कि आज के समय में इसका अस्तित्व एक विचार और भावना के रूप में ही बचा है। इसके साथ ही, राज्य तंत्र को हिंदू धर्म के अनुकूल बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाना आवश्यक है, ताकि हिंदू समाज की पारंपरिक मान्यताओं और उसकी पहचान को संरक्षित किया जा सके।