AIN NEWS 1 | मुगल काल को भारत के इतिहास का स्वर्णिम दौर कहा जाता है। यह सिर्फ राजनीतिक ताकत या स्थापत्य कला (जैसे लाल किला, ताजमहल, फतेहपुर सीकरी) के लिए ही प्रसिद्ध नहीं था, बल्कि उस समय की शाही जीवनशैली और रानियों की सुंदरता भी दुनिया भर में चर्चा का विषय थी।
कहा जाता है कि बाबर से लेकर औरंगजेब तक, मुगल दरबार की रानियां और शहजादियां इतनी धनवान थीं कि उन्हें पूरे प्रांत का टैक्स उनकी निजी आय के रूप में मिलता था। इस अपार धन-दौलत से वे अपने सौंदर्य और रूप-रंग को निखारने के लिए दुनिया की सबसे महंगी और अनोखी चीज़ों का इस्तेमाल करती थीं।
नूरजहां और इत्र की खोज
मुगल दरबार की सबसे प्रसिद्ध बेगमों में से एक थीं नूरजहां, जहांगीर की पत्नी। उनकी सुंदरता और कलात्मकता का इतिहास आज भी गवाही देता है। एक बार वे गुलाब की पंखुड़ियों से भरे हमाम (स्नानघर) में स्नान कर रही थीं। स्नान के दौरान उन्होंने देखा कि पानी की सतह पर एक खास तरह का सुगंधित तेल तैर रहा है। इस अनोखी सुगंध ने उन्हें इतना आकर्षित किया कि उन्होंने इसे इत्र बनाने में इस्तेमाल करना शुरू किया।
यहीं से गुलाब और अन्य फूलों से इत्र बनाने की परंपरा की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे यह इत्र मुगल रानियों और शहजादियों के सौंदर्य प्रसाधन का सबसे अहम हिस्सा बन गया।
दांत और होंठों की देखभाल
मुगल रानियां सिर्फ चेहरे की सुंदरता पर ही ध्यान नहीं देती थीं, बल्कि संपूर्ण पर्सनालिटी का ख्याल रखती थीं।
दांत और मसूड़े: दांतों की सफाई के लिए नीम की दातून का इस्तेमाल किया जाता था। इसके अलावा मोती, कपूर और कस्तूरी से बना एक खास पाउडर भी मसूड़ों को मजबूत और सांसों को सुगंधित बनाए रखने के लिए प्रयोग होता था।
होंठ: होंठों पर प्राकृतिक लालिमा लाने के लिए पान का सेवन किया जाता था। यह न सिर्फ स्वाद में आनंद देता था बल्कि होंठों को गुलाबी भी बनाता था।
त्वचा की देखभाल का राज
मुगल रानियों की चमकदार और कोमल त्वचा के पीछे उनका ब्यूटी रूटीन बेहद खास था।
दूध और केसर: त्वचा को निखारने और ग्लो बनाए रखने के लिए दूध और केसर का लेप लगाया जाता था।
रत्नों का पाउडर: मोती, पन्ना और फिरोजा जैसे कीमती रत्नों को पीसकर पाउडर बनाया जाता था। इसे स्किन टोन सुधारने और चेहरे को चमकदार बनाने के लिए लगाया जाता था।
चंदन और हल्दी: चंदन पाउडर को गुलाबजल, दूध और हल्दी के साथ मिलाकर फेस पैक तैयार किया जाता था। यह न सिर्फ त्वचा को ठंडक देता था बल्कि मुंहासे और दाग-धब्बे भी दूर करता था।
आंखों का मेकअप: आंखों को खूबसूरत दिखाने के लिए काजल और चंदन के साथ रत्नों का पाउडर मिलाकर इस्तेमाल किया जाता था।
औषधीय पौधों का महत्व
मुगल रानियां केवल सौंदर्य प्रसाधन तक ही सीमित नहीं थीं, वे औषधीय पौधों का भी उपयोग करती थीं।
सहजन (मोरिंगा): इसकी पत्तियों का प्रयोग पहले औषधीय कामों में होता था, लेकिन बाद में इसे त्वचा की सेहत और जवां लुक बनाए रखने के लिए भी इस्तेमाल किया जाने लगा।
गुलाबजल: यह ताजगी और नमी के लिए हर ब्यूटी रूटीन का अहम हिस्सा था।
शाही जीवनशैली और प्राकृतिक प्रोडक्ट्स
मुगल दरबार की रानियां और शहजादियां पूरी तरह प्राकृतिक और आयुर्वेदिक सामग्रियों पर निर्भर रहती थीं।
इत्र और सुगंधित क्रीम: रोज़मर्रा की दिनचर्या में सुगंध बेहद जरूरी थी। हर रानी के पास अलग-अलग फूलों से बने इत्रों का संग्रह होता था।
गुलाबजल और दूध: ये दोनों चीजें स्किनकेयर का आधार थीं।
रत्न और मोती: सजने-संवरने के लिए ही नहीं बल्कि ब्यूटी ट्रीटमेंट का हिस्सा भी थे।
चंदन और हल्दी: इन्हें फेसपैक के रूप में प्रयोग कर त्वचा को स्वस्थ और आकर्षक रखा जाता था।
नतीजा – शाही सौंदर्य का रहस्य
मुगल रानियों की सुंदरता केवल मेकअप का परिणाम नहीं थी, बल्कि यह एक संपूर्ण जीवनशैली का हिस्सा थी। प्राकृतिक सामग्रियों, औषधीय पौधों और शाही विलासिता ने मिलकर उनकी सुंदरता को ऐसा निखार दिया था कि उनकी कहानियां आज भी हमें आकर्षित करती हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि मुगल रानियां अपने समय की असली “ब्यूटी आइकॉन” थीं। उनका ब्यूटी रूटीन आज के आधुनिक स्किनकेयर और कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है।